27 अगस्त 2008
बिहार एक बार फिर बाढ़ की चपेट में है। राज्य के मधेपुरा, अररिया, सुपौल और सहरसा ज़िलों में कोसी नदी की लहरें कहन बनकर विनाशलीला कर रही है। नदी का तटबंध टूटने से लगभग 25 लाख लोग प्रभावित हुए हैं। अब तक लगभग 40 लोगों की मौत हो चुकी है लेकिन जानमाल की क्षति का सही आकलन बाढ़ के उफान के थमने के बाद ही हो सकेगा। बाढ़ के कारण हज़ारों हेक्टेयर भूमि पर खड़ी फसलों को नुकसान पहुँचा है।
लोग भूखे और बेघर होकर सरकारी मदद की आस में जी रहे हैं। मदद दी जा रही है लेकिन शायद नाकाफी है। बचाव कार्य के लिए 200 कश्तियाँ और 25 मोटर वाली नावें इस्मेताल की जा रही हैं। प्रभावित इलाक़ों तक खाने के पैकेट पहुँचाने के लिए तीन हेलीकॉप्टरों की मदद ली गई है। बाढ़ की चपेट में आए एक तिहाई बिहार को फौरी राहत पहुंचाने के लिए मुझे तो ये मदद नाकाफी ही लगती है। जिस तरह से बाढ़ की त्रासदी की शिकार जनता हेलीकॉप्टरों की गड़गड़ाहट सुन राहत सामग्री के लिए दौड़ लगाती है वो दिल को दर्द ही देती है। चूड़ा,गुड़,दिया-सलाई, मोमबत्ती,नमक और सत्तू के लिए लोग जी-जान लगा देते हैं। हेलीकॉप्टर के पीछे भागते वक्त न चोट की परवाह न दर्द की। किसी भी तरह से एक पैकेट हासिल करना होता है। जिससे परिवार के पेट की आग शान्त की जा सके। लहरों के इस कहर के बीच भूल जाइए..बीमारों को..लाचारों को...जो ज़िंदा हैं...खड़े हैं उन तक भी राहत पहुंचाना कोई आसान काम नहीं।
तबाही का ये मंजर हर साल ऐसा ही होता है। हर बार हजारों करोड रुपए बाढ़ राहत के नाम पर खर्च कर दिए जाते हैं लेकिन राहत मिलती नजर नहीं आती। इसी वर्ष जनवरी महीने में पटना में अनिवासी भारतीयों के एक सम्मेलन को संबोधित किया था। इस सम्मेलन में कलाम साहब ने उम्मीद जताई थी कि 2015 तक बिहार राज्य को देश के सबसे विकसित राज्य के रूप में पहचाना जाएगा। तत्कालीन राष्ट्रपति महोदय यह भी कह चुके हैं कि हरित क्रांति की शुरुआत अब बिहार राज्य से किए जाने की ज़रूरत है। प्रश् यह है कि क्या बाढ़ में डूबे हुए बिहार को देखकर इस बात की कल्पना भी की जा सकती है कि यही राज्य वह राज्य है जिसके बारे में भारत के महान स्वप्नदर्शी राष्ट्रपति ने देश के सबसे विकसित राज्य बनाए जाने का सपना देख रखा था? क्या इस प्रलयकारी बाढ़ के दृश्य देखने के पश्चात किसी अनिवासी भारतीय व्यवसायी से यह उम्मीद की जा सकती है कि वह ऐसी प्राकृतिक विपदाओं को देखने के बावजूद बिहार में पूंजी निवेश भी करेगा।
मैनें हिन्द युग्म ब्लाग पर भूपेन्द्र राघव जी की एक कविता पढी थी जिसका जिक्र यहां करना चाहूंगा......
जीवन दायी देखो कैसा जीवन ग्राही बन गया,
लहर लहर बन गयी कहर, एक तबाही बन गया
बह गये सब खेत मवेशी, खोर लवारे बह गये,
बह गये सब चौका चूल्हे, घर उसारे तक बह गये,
जल में डूबा छितिज छोर, जाने कहाँ से उफन गया
जीवन दायी देखो कैसा जीवन ग्राही बन गया...
टूट गयीं सब सडकें पुल पथ, टूट गये सब पेड़ रूख,
आंतें टूटी बहुत अबोध हाय! सह न सकीं जो विकट भूख,
कितनों की सिन्दूर चूड़ियाँ, कितनों का यौवन गया,
जीवन दायी देखो कैसा जीवन ग्राही बन गया।
सभी फोटो साभार बीबीसी
मंगलवार, 26 अगस्त 2008
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