बुधवार, 18 मार्च 2009

वरुण तूने ये क्या किया ?


18 मार्च 09
भारतीय राजनीति के पर्दे पर यदाकदा नुमायां होने वाले वरुण गांधी आजकल हॉट आइटम बने हुए हैं। चारों तरफ उन्हीं की चर्चा है। अखबारों में संपादकीय लिखे जा रहे हैं तो टेलीविजन की दुनिया में भी उन्हें लेकर बहस का दौर चल रहा है। चुनावी माहौल की गर्मी के बीच अपने संसदीय क्षेत्र में एक सभा के दौरान जाति विशेष पर की गई टिप्पणी ने वरुण को सुर्खियों में ला खड़ा किया है। नेता कम मेनका गांधी के बेटे के रूप में ज्यादा पहचाने जाने वाले वरुण ने रातों रात अपनी पहचान बदल डाली। मंदिर मुद्दा फुस्स होने के बाद आतंकवाद और मंहगाई जैसे बासी मुद्दों के साथ चुनावी मैदान में कसमसा रही बीजेपी की दशा शायद वरुण गांधी से देखी नहीं गई इसीलिए उन्होंने हिन्दुत्व के मुद्दे को नए तेवर के साथ नई धार देने की कोशिश कर डाली। उनकी कोशिश की सफलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शिवसेना प्रमुख बाला साहेब ठाकरे ने वरुण गांधी को असली हिन्दू करार देते हुए उनकी बातों से सहमति जता डाली। पीलीभीत में वरुण ने जो कुछ भी कहा उसका यहां जिक्र करना ज़रूरी नहीं लगता लेकिन उन बातों ने वरुण को विहिप के फायर ब्रांड नेता प्रवीण भाई तोगड़िया और गुजरात में बीजेपी के खेवनहार नरेन्द्र मोदी को भी पीछे छोड़ दिया। ये अलग बात है कि हिंदुत्व को नई धार देने की वरुण की ये कोशिश खुद उनके और बीजेपी के गले की फांस बन गई। वरुण गांधी ने जो कुछ पीलीभीत में कहा वो अमर्यादित तो था ही साथ ही भावनाओं को भड़काने वाला भी था लेकिन अहम बात ये है कि क्या ये सब कुछ वरुण की स्वाभाविक प्रतिक्रिया थी या फिर इसके पीछे बीजेपी की कोई सोची समझी रणनीति थी। क्या चुनावी सभाओं में बीजेपी नेताओं को कुछ बी बक देने की आजादी हैं। क्या पार्टी हाईकमान की ओर से अपने उम्मीदवारों को किसी तरह के निर्देश नहीं दिए गए हैं। उन्हें क्या, कितना और कैसे बोलना है, क्या इसकी तमीज उन्हें सिखानी पड़ेगी और अगर ऐसा है तो फिर ऐसे नेताओं को पार्टी ने टिकट क्यों दिया। सामाजिक सद्भावना और समरसता बनाए रखने की जिम्मेदारी निभाने की कसमें खाने वाले नेता क्या इतने गैर जिम्मेदाराना बयान दे सकते हैं। ये मामला सिर्फ वरुण को कठघरे में खड़ा नहीं करता बल्कि पूरी बीजेपी की जवाबदेही तय करता है। चुनाव आयोग तो वरुण के खिलाफ अपने अधिकारों के तहत ही एक्शन ले सकता है लेकिन क्या सिर्फ वहीं काफी होगा वरुण को उनकी गलती का एहसास दिलाने के लिए। ऐसा लगता तो नहीं क्योंकि अभी तक तो वरुण छाती ठोककर इस पूरे मामले को राजनीतिक साजिश करार देते आ रहे हैं। बीजेपी के रवैए से भी ऐसा नहीं लगता कि उसे वरुण के किए पर कोई अफसोस है। यूं तो भारतीय लोकतंत्र में हर किसी को अपनी बात कहने का हक है लेकिन उसके भी अपने तरीके और सीमाएं हैं और वरुण ने निश्चय ही उन सीमाओं को भी लांघ गए हैं। वरुण के भाषण से एक बात तो शीशे की तरह साफ हो गई कि हमारी रहनुमाई का दम भरने वाले किसी भी राजनीतिक दल के पास कोई ऐसा मुद्दा नहीं बचा जो देश और समाज का विकास कर सके। जाति और धर्म के ज़रिए ही ये पार्टियां सत्ता के गलियारे नापने की फिराक में रहती हैं। या यूं कहें कि इसी ताने बाने के बीच वो अपना राजनीतिक अस्तित्व खड़ा करने की कूवत रखते हैं। ये बात पहले भी कई बार साबित हो चुकी है और वरुण गांधी के मामले ने इसे और पुख्ता कर दिया है। ये हमारे लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं है।

2 टिप्‍पणियां:

Aadarsh Rathore ने कहा…

वरुण गांधी के इस भाषण को पाकिस्तान में जिओ न्यूज़ और दूसरे चैनल लगातार दिखा रहे हैं। इससे देश की छवि धूमिल हुई है। वरुण को कठोर सज़ा मिलनी चाहिए ताकि दुनिया को भी दिखे और सबक लेकर कोई दोबारा इस तरह की हरकत न करे।

बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण ने कहा…

समझ नही पड़ रहा कि वरुण अपने आपको गांधी किस अर्थ में कह रहा है। महात्मा गांधी से तो उसका दूर-दूर तक का संबंध नहीं लगता। उसे तो अपने-आपको गोड्से कहना चाहिए। क्या उसे इस नाम से अपने आपको जोड़कर गर्व होगा? उसके इस भाषाणबाजी से तो ऐसा ही लगता है कि होगा।

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