05 मई 09
मैं ये सोचकर उसके दर से उठा था
कि वो रोक लेगी मना लेगी मुझको
हवाओं में लहराता आता था आंचल
कि दामन पकड़कर बिठा लेगी मुझको
कदम ऐसे अंदाज में उठ रहे थे
कि आवाज देकर बुला लेगी मुझको
मगर उसने रोका ना उसने बुलाया
न दामन ही पकड़ा न मुझको बिठाया
न आवाज ही दी न वापस बुलाया
में आहिस्ता आहिस्ता बढ़ता ही आया
यहां तक कि उससे जुदा हो गया मैं...
मंगलवार, 5 मई 2009
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
4 टिप्पणियां:
ab apane pyar ke liye aap dua keejiye, ki wo rahe hamesha yahi chahiye...
ab aap apane pyar ki khushiyon ke liye bas dua keejiye...
किसी सरिता सी बहती हुई मनोभावनाएँ
---
चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें
बहुत खूब .
एक टिप्पणी भेजें