मंगलवार, 22 जुलाई 2008

भारतीय संसद और सत्ताओं का सफ़र

23 जुलाई 2008


भारतीय संसद में आज़ादी के बाद सत्ता की सीढ़ियों पर अलग अलग दलों, विचारधाराओं और दृष्टिकोणों से देश को दिशा दी जाती रही है. इस दौरान कई विश्वास प्रस्ताव आए, कई सरकारें बचीं, कई गिरीं और कई राजनीतिक परिवर्तन देखने को मिले. आइए, प्रधानमंत्रियों के क्रम के ज़रिए इस संसदीय इतिहास की बानगी लें...



भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने पंडित जवाहर लाल नेहरु. पंडित नेहरू 15 अगस्त, 1947 को देश के प्रधानमंत्री बने और फिर लगातार 27 मई, 1964 तक देश की संसद में प्रधानमंत्री के तौर पर सत्तासीन रहे. इसी दौरान 1963 में संसद में पहला अविश्वास प्रस्ताव भी आया. नेहरू के ख़िलाफ़ यह अविश्वास प्रस्ताव लाए थे जेबी कृपलानी पर इस अविश्वास प्रस्ताव को करारी हार मिली.


नेहरू के बाद नाम आता है गुरज़ारीलाल नंदा का. नंदा अल्पकाल के लिए यानी लगभग दो-दो सप्ताहों के लिए दो बार देश के प्रधानमंत्री बने. एक बार नेहरू जी के बाद यानी 27 मई, 1964 से नौ जून, 1964 तक और फिर लालबहादुर शास्त्री के बाद गुलज़ारीलाल नंदा ने दोबारा 11 जनवरी, 1966 से 24 जनवरी, 1966 तक पद का दायित्व संभाला.



जय जवान, जय किसान का नारा देने वाले लाल बहादुर शास्त्री नौ जून, 1964 से 11 जनवरी, 1966 तक देश के प्रधानमंत्री रहे. लालबहादुर शास्त्री का ताशकंद में निधन हो गया था. उनके निधन के बाद दोबारा कुछ दिनों के लिए गुलज़ारीलाल नंदा को प्रधानमंत्री बनाया गया था पर लगभग दो सप्ताह तक यह ज़िम्मेदारी उठाने के बाद इंदिरा गांधी ने सत्ता की बागडोर संभाल ली.


जवाहरलाल नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं. इंदिरा गांधी 24 जनवरी, 1966 से 1971 तक और फिर दोबारा चुनकर 24 मार्च, 1977 तक भारत की प्रधानमंत्री रहीं. इसी दौरान पहली बार भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में आपातकाल भी लगाया गया. इंदिरा गांधी ने इस दौरान 12 अविश्वास प्रस्ताव देखे पर कोई भी सरकार को गिरा नहीं सका.



अभी तक भारत में एक ही पार्टी की सरकार क़ायम थी. पर राजनीतिक नेतृत्व में दलीय परिवर्तन आता है मोरार जी देसाई के प्रधानमंत्री बनने के साथ. जनता पार्टी की सरकार में मोरार जी देसाई ने 24 मार्च, 1977 से 28 जुलाई, 1979 तक प्रधानमंत्री का पद संभाला. उन्हें 15 जुलाई, 1979 को अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा जिसके बाद सरकार गिर गई.


पहले विश्वास प्रस्ताव की स्थिति पैदा होती है वर्ष 1979 में. चौधरी चरण सिंह 28 जुलाई, 1979 को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर आए लेकिन 20 अगस्त, 1979 को विश्वास मत का सामना किए बिना ही चरण सिंह ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया.


पहले दो बार प्रधानमंत्री रह चुकी इंदिरा गांधी 14 जनवरी, 1980 को कांग्रेस (आई) की नेता के तौर पर फिर से सत्तासीन होती हैं और 31 अक्टूबर, 1984 तक प्रधानमंत्री रहीं.

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इंदिरा गांधी के देहांत के बाद उनके बेटे राजीव गांधी युवा नेतृत्वकर्ता के तौर पर राजनीतिक पटल पर सामने आते हैं. राजीव गांधी 31 अक्टूबर, 1984 से दो दिसंबर, 1989 तक प्रधानमंत्री पद संभालते हैं.



इसके बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में नई सरकार बनी. दो दिसंबर, 1989 को प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के कुछ दिन बाद ही यानी 21 दिसंबर को देश की संसद में विश्वास प्रस्ताव आया और विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार ने ध्वनि मत से विश्वास मत हासिल किया. वीपी सिंह 10 नवंबर, 1990 तक प्रधानमंत्री रहे. सात नवंबर को ही प्रधानमंत्री को दोबारा विश्वास मत हासिल करने के लिए प्रस्ताव सदन के समक्ष रखना पड़ा पर वीपी सिंह अपनी कुर्सी नहीं बचा सके.



10 नवंबर, 1990 को चंद्रशेखर ने जनता दल (एस) के नेता के तौर पर प्रधानमंत्री का पद संभाला और छह दिन बाद ही यानी 16 नवंबर को सदन में दूसरा विश्वास मत प्रस्ताव आया. चंद्रशेखर ने विश्वास मत हासिल किया और 21 जून, 1991 तक देश के प्रधानमंत्री रहे.



पीवी नरसिंहराव ने 21 जून, 1991 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. 15 जुलाई को नरसिंहराव की सरकार ने सदन में विश्वास मत हासिल कर लिया. विवादित झारखंड मुक्ति मोर्चा सांसद रिश्वत कांड नरसिंहराव के इसी कार्यकाल में बहुमत की गणित के लिए चर्चा का विषय बना. इस दौरान आया अविश्वास प्रस्ताव नरसिंहराव सरकार को नहीं गिरा सका.



इसके बाद सत्ता ने नई करवट ली और भारतीय जनता पार्टी की अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनी. अटल बिहारी वाजपेयी ने 16 मई को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. ये सरकार 13 दिनों में गिर गई. 28 मई, 1996 को विश्वास मत से पहले ही अटल बिहारी वाजपेयी ने इस्तीफ़ा देने की घोषणा कर दी.



इसके बाद एचडी देवेगौड़ा के नेतृत्व में सरकार बनी. इस तरह एक बार फिर जनता दल के नेता को सत्ता की शीर्ष पद मिली. 12 जून, 1996 को सातवाँ विश्वास मत देवेगौड़ा ने हासिल किया. हालांकि देवेगौड़ा अगला विश्वास मत हासिल नहीं कर सके. 11 अप्रैल, 1997 को देवेगौड़ा विश्वास मत हार गए.



देश एक बार फिर अल्पकालिक प्रधानमंत्रियों का दौर देख रहा था. एचडी देवेगौड़ा के बाद इंद्र कुमार गुजराल ने प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली. उन्होंने 22 अप्रैल, 1997 को विश्वास मत हासिल किया और 19 मार्च, 1998 तक जनता दल की सरकार को आगे बढ़ाया.


मार्च, 1998 में देश की 12वीं लोकसभा के लिए मतदान हुआ और अटल बिहारी वाजपेयी 19 मार्च, 1998 को देश के नए प्रधानमंत्री बने. उन्होंने 28 मार्च को सदन में विश्वास मत हासिल किया पर 13 महीने की सरकार 1999 में गिर गई. वर्ष 1999 का यह विश्वास मत ऐतिहासिक माना जाता है. अटल सरकार एक वोट से गिर गई. 1999 में फिर से आम चुनाव हुए और केंद्र में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार आई जिसने पाँच साल पूरे भी किए.



वर्ष 2004 में जब आम चुनाव हुए तो जनादेश एनडीए के ख़िलाफ़ गया. केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाला यूपीए गठबंधन सत्तासीन हुआ. इस सरकार को वामपंथी दलों से भी बाहर से समर्थन मिल रहा था पर भारत-अमरीका परमाणु क़रार पर पैदा हुए गतिरोध के कारण जुलाई, 2008 में वामपंथी ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया. 22 जुलाई को मनमोहन सिंह सरकार ने विश्वास प्रस्ताव हासिल कर लिया।

साभार बीबीसी

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