शनिवार, 26 जुलाई 2008

आओ लद्दाख चलें

26 जुलाई 2008
जम्मू-कश्मीर का लद्दाख़ क्षेत्र 96701 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है और इसकी क़रीब दो लाख की आबादी इसके दो ज़िलों में रहती है. लेह ज़िला बौद्ध बहुल है जबकि कारगिल में क़रीब 99 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है.1979 से पहले लद्दाख एक ही ज़िला था लेकिन तब उसे बाँटकर दो ज़िले बनाए गए. कुछ लोग आरोप लगाते हैं कि लद्दाख का ये विभाजन सांप्रदायिक आधार पर किया गया था.लद्दाख नवंबर से जून के महीनों में बाक़ी दुनिया से कट जाता है क्योंकि इसे बाक़ी दुनिया से जोड़ने वाले श्रीनगर-लेह मार्ग और लद्दाख-मनाली मार्ग बर्फ़ गिरने के कारण बंद हो जाते हैं.लद्दाख़ को बर्फ़ीला रेगिस्तान भी कहा जाता है और जाड़ों के मौसम में लेह और कारगिल का तापमान सामान्य से तीस डिग्री सेल्सियस और द्रास सेक्टर में तो साठ डिग्री सेल्सियस नीचे तक चला जाता है.लद्दाख़ अपनी उँचाई के लिए भी प्रसिद्ध है.अलबत्ता लद्दाख़ का राजनीतिक माहौल अवश्य गर्म रहता है और ये गर्माहट उसके अंदर कम बल्कि राज्य के जम्मू-कश्मीर क्षेत्रों में और राष्ट्रीय राजनीतिक पटल पर ज़्यादा महसूस की जाती है. लद्दाख़ के दोनों ज़िलों लेह और कारगिल के लोग इस क्षेत्र के लिए अलग-अलग माँग करते नज़र आते हैं. लद्दाख़ बुद्धिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष त्सेरिंग सिम्फेल कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर राज्य का फिर गठन किया जाना चाहिए. इसके तहत जम्मू और कश्मीर को अलग राज्य का दर्जा दिया जाए और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया जाए.
जबकि मुस्लिम बहुल कारगिल के लोग इसका विरोध करते हैं और कहते हैं कि लद्दाख जम्मू-कश्मीर के साथ साथ भारत का ही एक हिस्सा रहना चाहिए और तभी उसके विकास पर ध्यान दिया जाना चाहिए.

बौद्ध माँग
सिम्फेल कहते हैं कि ये कोई सांप्रदायिक माँग नहीं है. हम लद्दाख क्षेत्र के लिए केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा इसलिए माँगते हैं क्योंकि इसके दो ज़िलों लेह और कारगिल को "शेख़ अब्दुल्ला ने 1979 में सांप्रदायिक आधार पर ही विभाजित किया था."
"हम इन ज़िलों का एकीकरण इसलिए चाहते हैं क्योंकि इससे बौद्ध बहुल लेह और मुस्लिम बहुल करगिल दोनों ही ज़िलों के एक होने से सांप्रदायिक समरसता बनेगी."सिम्फेल के अनुसार, उनकी यह माँग राष्ट्रविरोधी भी नहीं है क्योंकि भारत में 1956 में केवल 14 राज्य थे जब राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफ़ारिशों पर नए राज्य बनाए गए थे. लेकिन जम्मू-कश्मीर राज्य को इस आयोग के दायरे से बाहर रखा गया था.राज्यों का पुनर्गठन मुख्य रूप से भाषा के आधार पर हुआ था. उसके बाद भी राज्यों के पुनर्गठन का सिलसिला बंद नहीं हुआ है और दो साल पहले ही तीन नए राज्य उत्तराँचल, झारखंड और छत्तीसगढ़ बनाए गए हैं.जम्मू-कश्मीर में भी तीनों ही क्षेत्रों में अलग अलग भाषाएँ बोली जाती हैं, अलग-अलग संस्कृति है, अलग-अलग जातीय समुदाय के लोग रहते हैं और तीनों ही क्षेत्रों की भौगोलिक संरचना भी एक दूसरे से बिल्कुल अलग है.


मुस्लिम माँग

लेह के बौद्ध लोगों के उलट करगिल के मुस्लिम लोग लद्दाख़ के लिए केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा दिए जाने के ख़िलाफ़ नज़र आते हैं.करगिल के मुसलमानों के एक प्रमुख संगठन इमाम ख़ुमैनी मेमोरियल ट्रस्ट के अध्यक्ष असग़र क़रबलाही कहते हैं कि लद्दाख़ जम्मू-कश्मीर की एक हिस्सा है और उसी के साथ उसका अस्तित्व बरक़रार रहना चाहिए. करबलाही कहते हैं कि लद्दाख़ बिना शर्त भारत का हिस्सा रहना चाहिए लेकिन जम्मू-कश्मीर के एक हिस्से के रूप में ही इसका समुचित विकास संभव है.
"लद्दाख़ का लेह ज़िले में तो पहले से ही बहुत विकास हो चुका है लेकिन कागिल तक लोगों की पहुँच मुश्किल होने की वजह से वह अभी तक बहुत पिछड़ा हुआ है."करगिल के मुसलमान कट्टर रूप से भारत के समर्थक माने जाते हैं और 1999 में पाकिस्तान की तरफ़ से घुसपैठ के मौक़े पर उन्होंने भारतीय सेना का साथ दिया था.करबलाही कहते हैं कि लद्दाख़ के भविष्य के बारे में कोई फैसला करने से पहले करगिल के लोगों की भी राय ली जानी चाहिए और करगिल के लोग एक वृहत्तर लद्दाख़ यानी ग्रेटर लद्दाख़ के हिमायती हैं न कि उसे एक केंद्रशासित प्रदेश बनाने के.

कश्मीर की ख़ूबसूरती तो जगज़ाहिर है. इन्हीं ख़ूबसूरत इलाक़ों में से एक लद्दाख है. देखिए लद्दाख और आसपास के कुछ मनोरम नज़ारे (सभी तस्वीरें: दिनेश कुमार)




































साभार बीबीसी

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