गुरुवार, 26 मार्च 2009
जंग 80 और 40 की...
26 मार्च 09
कांग्रेस के नेतृत्व में चल रही केन्द्र की यूपीए सरकार में पड़ी दरार ने अब खाई का रूप ले लिया है। बिहार में आरजेडी और एलजेपी के साथ सीटों का झगड़ा इस कदर बढ़ा कि यूपीए के भीतर ही एक नए मोर्चे ने जन्म ले लिया। बिहार में कांग्रेस के खिलाफ झण्डा बुलंद कर जब लालू ने एलजेपी के मुखिया रामबिलास पासवान को गले लगाया और कांग्रेस के लिए केवल तीन सीटें छोड़ने का ऐलान किया तो कांग्रेस ने पलटवार करते हुए बिहार की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर इन महारथियों को तिलमिलाने के लिए मजबूर कर दिया। उन्होंने कांग्रेस को सबक सिखाने की ठान ली और एक ऐसे साथी की तलाश में लग गए जो इस काम में उनका साथ दे सके। उनकी तलाश समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव पर जाकर खत्म हुई। केन्द्र की सत्ता के लिए दशा और दिशा तय करने वाले उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के साथ उनकी खटपट को लालू और पासवान ने हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की ठान ली। उन्होंने केन्द्र में बाहर से कांग्रेस का सहयोग कर रहे मुलायम के साथ चुनावी समझौता कर यूपीए के भीतर ही एक नए मोर्चे का गठन कर डाला। बिहार में लालू और पासवान के लिए मुलायम चुनाव प्रचार करेंगे तो यूपी में लालू और पासवान मुलायम के महारथियों को सहयोग करेंगे। यूपी की 80 और बिहार की 40 सीटें यानि कुल मिलाकर 120 सीटें ही केन्द्र के सिंहासन के लिए राजा तय करेंगी। देखा जाए तो इन 120 सीटों पर कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ नहीं है इनमें से ज्यादातर सीटें ऐसी हैं जहां हाथ का साथ देने वाला कोई नहीं है। ऐसे में अगर पार्टी को मजबूती देने की कवायद मे लगे राहुल बाबा और सोनिया मैडम इन 120 सीटों में से कुछ पर भी कांग्रेसी झण्डा फहराने में कामयाब रहे तो लालू-पासवान और मुलायम जैसे क्षेत्रीय क्षत्रपों के लिए ये डूब मरने वाली बात होगी क्योंकि इन्ही सीटों को लेकर ये तीनों ही नेता कांग्रेस की औकात को लेकर काफी कुछ बोल चुके हैं। अब कांग्रेस के साथ रहकर भी उसके खिलाफ चुनाव लड़ने को तैयार लालू-पासवान और मुलायम की ये तिकड़ी चुनावी गलियारे में क्या गुल खिलाती है, ये देखने वाली बात होगी। वैसे लालू-पासवान और मुलायम द्वारा की गई मौके की इस यारी पर आप क्या कहेंगे...
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2 टिप्पणियां:
ऐसे मौकापरस्त नेताओं की बदौलत ही भारतीय राजनीति का बेड़ागर्क हो रहा है। मतदाताओं को ऐसे नेताओं को कड़ा सबक सिखाना चाहिए। नतीजे आने के बाद अगर कांग्रेस की स्थिति अगर मजबूत हुई तो देखिएगा यही नेता कांग्रेस के साथ सत्ता की मलाई चाटते नजर आयेंगे।
कांग्रेस की औकात तो देखेंगे ही साथ ही इन तीनों नेताओं की भी देखेंगे। जिस थाली में खाते हैं। उसी में छेद करते हैं। अभी तक मंत्री बने घूम रहे थे तो बड़ा अच्छा लग रहा था अब वही कांग्रेस बुरी लगने लगी है। वाह रे राजनीति...
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