रविवार, 22 मार्च 2009
प्यार को प्यार ही रहने दो...
22 मार्च 09
प्यार आखिर क्या है..पूजा है..आस्था है..विश्वास है..एक तपस्या है या फिर जुनून..प्यार मन में छुपी एक कोमल भावना है या फिर आराधना..कुछ भी हो..प्यार तो प्यार है..वक्त बदला..दौर बदला..रहने सहने खाने पीने का तौर बदला..पर प्यार नहीं बदला ना बदलेगा..हां प्यार की भावाभिव्यक्ति के तरीके जरूर बदल गए हैं..आज का प्यार बोल्ड है..कुछ भी हो प्यार है जरूर इंसान की जरूरत बनकर..प्यार कोई फर्ज नहीं..कोई कर्ज नहीं..कोई वादा भी नहीं जो निबाहते ही जाओ..प्यार तो मन के किसी कोमल हिस्से में छिपी वो निर्मल झरझर नदी हैं..जो बहती ही रहती है..सदियों से प्यार अनगिनत रूप लेकर आता रहा है..कभी राधा बनकर तो कभी मीरा बनकर..पूजा और तपस्या के रूप में..प्यार कभी एक वादा बना ताजमहल के रूप में तो अनारकली के लिए खता बन गया और सीता के लिए सजा..जो अग्नि परीक्षा के बाद भी कम नहीं हुई..आजकल प्यार एक फैशन बन गया है..जो नित नए परिधान में नई सजधज के साथ चहकता है, महकता है और फिर बदल जाता है..एक मौसम की तरह..प्यार कोई मौसम नहीं एक आराधना है..एक सपना है..पर सपना भी कैसा..प्यार वो सपना तो हो, जो रुपहली रातों के सतरंगी रथ पर सवार होकर पलकों की गलियों में उतर जाए..पर वो सपना नहीं जो हकीकत बनते ही जहरीला हो जाए..बेमानी हो जाए..बदरंग हो जाएम..जैसा कि अक्सर होता है..सपने अक्सर हकीकत बनते ही अपना महत्व खो देते हैं..फिर चाहे वो प्यार भरे ही सपने क्यों ना हों...मनचाहा खो जाए..अनचाहा मिल जाए तो दिल कराहता है..पर मनचाहा मिल जाए तो भी कुछ दिनों बाद वो अनचाहा बन जाता है..संतोष कहां है प्यार में..प्यार कोई मंजिल तो नहीं जो पा ली जाए..प्यार तो एक यात्रा है..जो निरन्तर चलती रहती है..सतत अनवरत किसी साधना की तरह...प्यार एक रूप अनेक..प्यार कितने रंग बदलता है..रंग बिरंगे रिश्तों में ढलता है..पुरुष नारी का प्यार..मां बेटे का प्यार..पति-पत्नी का प्यार..प्रेमी-प्रेमिका, मित्र..ना जाने कितने नाम हैं,इन रिश्तों के..पर प्यार किसी रिश्ते का मोहताज नहीं..बल्कि रिश्ते ही प्यार के मोहताज हैं..जिन रिश्तों में प्यार आधारशिला नहीं बनता..वो रिश्ते टूट जाते हैं..जबकि प्यार बिना किसी रिश्ते के भी जिंदा रहता है...रिश्तों में प्यार हो तो अच्छा है..और प्यार को रिश्ते का नाम मिल जाए तो सोने पे सुहागा..पर सबसे अच्छा है कि प्यार कोकोई नाम ना दिया जाए..ना ये पूछा जाए कि प्यार आखिर क्या है..क्यों ना प्यार को प्यार ही रहने दिया जाए...
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3 टिप्पणियां:
रिश्तों में प्यार हो तो अच्छा है..और प्यार को रिश्ते का नाम मिल जाए तो सोने पे सुहागा..पर सबसे अच्छा है कि प्यार कोकोई नाम ना दिया जाए..ना ये पूछा जाए कि प्यार आखिर क्या है..क्यों ना प्यार को प्यार ही रहने दिया जाए... बहुत ही सुंदर बात कही है ....badhaaee
सुन्दर व्याख्या की है।
प्यार को प्यार ही रहने दो... इसको रिश्तों का नाम न दो... काफी अच्छा फ्लो है... लेख क्या है कविता है... प्यार की तरह ही झर-झर... कल-कल अभिव्यक्ति है... सुंदर अतिसुंदर
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