सोमवार, 9 जून 2008

एक अनोखा फैसला

09 जून 2008
आज ऑफिस में एक स्क्रिप्ट पर काम करते समय एक चौंकाने वाली जानकारी सामने आई। चौकाने वाली इसलिए कह रहा हूं क्योंकि मुझे इस खबर के बारे में ज़रा भी अंदाजा नहीं था। खबर ये थी कि मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल और जिले इंदौर में कुंआरी लड़कियां बिना शादी के ही मां बनने का गौरव हासिल कर रही हैं। इस वाक्य की गलत व्याख्या मत करिएगा। दरअसल इन इलाकों की लड़कियां शादी-ब्याह जैसे सामाजिक बंधन में बंधे बिना ही बच्चों को गोद लेकर अपनी ममता का हकदार चुन रही हैं। सामाजिक बंधनों से मुक्त रहते हुए भी मां होने का एहसास इन युवतियों को सालता नहीं बल्कि इसकी खुशी उनके चेहरे पर साफ देखी जा सकती है। सामाजिक मान्यताओं के उलट, कुंआरी लड़कियों में जीवनसाथी के बिना ही मां बनने की इस चाहत को रोकने के लिए कोई कानूनी बंदिश हो ऐसा भी नहीं है। (ऐसा मैं उस अधिवक्ता की बाइट के आधार पर कह रहा हूं जो हमारे रिपोर्टर ने ली थी)लिहाजा घर गृहस्थी के बंधन से परे किसी बच्चे को अपनाकर उसकी मां बनने की चाहत बहुत सी युवतियों में घर कर गई है। भोपाल स्थित 'मातृछाया' नाम की बच्चे गोद देने वाली एक संस्था की मानें तो पिछले एक साल में आठ से दस बिन ब्याही लड़कियां बच्चा गोद लेने के लिए उसके ऑफिस के चक्कर लगा चुकी हैं। हालांकि ये काम इतना आसान नहीं है। आवेदक युवती को अपने परिवार के सहमति पत्र के साथ-साथ बच्चे के सुरक्षित भविष्य की गांरटी भी देनी होती है। अगर युवती ऐसा करने में नाकाम रहती है तो संस्था उसे बच्चा गोद देने से मना कर देती है। हमारे समाजिक ढांचे में बिन ब्याही मां की राह आसान नहीं होती। रीति रिवाजों की मुखालफत कर अपनी जिन्दगी अपने ढंग से जीने की छूट भारतीय समाज आसानी से नहीं देता। ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या हिन्दुस्तानी परिवार अपनी बिन ब्याही बेटियों को उनकी ममता का हकदार चुनने की आजादी दे पायेंगे।

POST BY-
ANIL KUMAR VERMA

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