03 सितम्बर 2008
कल शाम घऱ पर बैठा बिहार में आई बाढ़ के चलते पैदा हुए हालातों के बारे में सोच रहा था। ताजा स्थिति जानने के लिए टेलीविजन का रिमोट हाथ में लिया और चैनल सर्च करने लगा। आईबीएन-7 पर जाकर हाथ ठिठक गया। जिंदगी की रेल नाम से एक प्रोग्राम चल रहा था। सार ये था कि किस तरह से कोसी के प्रलय से बचने के लिए लोग भेड़ बकरियों की तरह ट्रेन में ठुंसे भाग रहे हैं। क्या ट्रेन की छत और क्या डिब्बे,क्या इंजन और क्या दरवाजे सभी जगह जान हथेली पर लिए लोग भाग निकलना चाहते हैं। कोसी के आगोश से दूर...किसी सुरक्षित जगह...जहां जिन्दगी के बारे में सोच सकें। सोच सकें कि अब आगे क्या...प्रोग्राम देखकर आंखे भर आईं। दिल में हाहाकार मच गया। लगातार विकास की नई गाथा लिखने को तैयार हिन्दुस्तान के गांवों की...गरीबों की...लाचारों की असल तस्वीर देख मन विचलित हो गया। भ्रष्ट सरकारी तंत्र, सुस्त कार्यशैली और अदूरदर्शिता ने आज बिहार को शोक संतप्त होने के लिए मजबूर कर दिया है। अधिकारियों का कहना है कि सेना की 20 कंपनियाँ, 11 हेलिकॉप्टरों और 1300 नौकाओं के माध्यम से बाढ़ प्रभावितों को बचाने और राहत शिविरों तक पहुँचाने के अभियान में जुटी हुई हैं लेकिन सरकारी दावे से अलग प्रभावित इलाक़ों से ख़बरें आ रही हैं कि लाखों बाढ़ पीड़ित अब भी राहत का इंतज़ार कर रहे हैं और राहत कार्य में व्यवस्था की बेहद कमी है। इस बीच बिहार में बाढ़ राहत के कार्य में जुटी संस्थाओं में से एक – ऐक्शन एड – का कहना है कि बाढ़ में मारे गए लोगों की संख्या 2000 के आस-पास हो सकती है, सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ मरने वालों की संख्या अब भी 100 से कम है। पंद्रह दिनों से एक ही कपड़ा पहनकर बिलख रहे लोग अपने रिश्तेदारों की मौत का मातम मना रहे हैं लेकिन उनकी मौत किसी सरकारी आंकड़े में दर्ज नहीं है। बात करें कारण की कि आखिर ये हालात पैदा क्यों हुए तो भारत सरकार की अदूरदर्शिता भी उजागर होती है।
यहां बीबीसी हिन्दी पर आए एक लेख का जिक्र करना चाहूंगा...
कहा जा रहा है कि कि कोसी नदी ने धारा बदल ली इसलिए बिहार में प्रलयंकारी बाढ़ कि स्थिति पैदा हुई है। ये बात बिल्कुल बेबुनियाद है। हमे याद रखना चाहिए कि नदी ने ख़ुद धारा नहीं बदली बल्कि प्राकृतिक धारा को रोक कर बनाए गए बराज या तटबंध के टूटने के कारण ये स्थिति पैदा हुई है। ब्रिटिश हुकूमत सौ वर्षों तक इस बात पर विचार करती रही कि बिहार का शोक कही जाने वाली इस नदी की धारा को नियंत्रित करने के लिए बराज बनाया जाए या नहीं। ब्रितानी सरकार ने तटबंध नहीं बनाने का फ़ैसला इस बिना पर किया कि तटबंध टूटने से जो क्षति होगी उसकी भरपाई करना ज़्यादा मुश्किल साबित होगा लेकिन आज़ादी के बाद भारत सरकार ने नेपाल के साथ समझौता कर 1954 में बराज बनाने का फ़ैसला कर लिया। उस समय पचास के दशक के शुरुआती वर्षों में इस तटबंध के ख़िलाफ़ स्थानीय लोगों ने विरोध प्रदर्शन तक किए थे। आज भी विशेषज्ञों का एक तबका ये मानता है कि कोसी की धारा के साथ कृत्रिम छेड़छाड़ इस तरह की भयानक स्थिति के लिए ज़िम्मेदार है। तटबंध बनाकर नदी की धारा को नियंत्रित दिशा दी गई। अब जब अतिरिक्त पानी के दबाव में तटबंध का जो हिस्सा टूटेगा उसी से होकर नदी बहेगी जो बिल्कुल स्वाभाविक है। इसलिए ये कहना बिल्कुल ग़लत है कि नदी ने ख़ुद धारा बदली। जब बांध बनाया गया तो पिछले सौ वर्षों के इतिहास को ध्यान में रखा गया और पानी का औसत बहाव मापने की कोशिश की गई। इस हिसाब से ये कहा गया कि तटबंध साढ़े नौ लाख घन फुट प्रति सेकेंड (क्यूसेक) पानी के बहाव को बर्दाश्त कर सकता है। ये भी बताया गया कि बांध की आयु 25 वर्ष है जो बिल्कुल अवैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित है। हम पिछले इतिहास के आधार पर भविष्य की गणना नहीं कर सकते। कौन जानता है कि बांध बनने के अगले ही साल सबसे ज़्यादा पानी का दबाव उसे झेलना पड़े। ख़ैर इस वर्ष तो हद हो गई क्योंकि जब 18 अगस्त को बांध टूटा तो पानी का बहाव महज एक लाख 44 हज़ार क्यूसेक था। कोसी पर बना तटबंध सात बार टूट चुका है और बाढ़ से तबाही पहले भी हुई है। वर्ष 1968 में तटबंध पाँच जगहों से टूटा था और उस समय पानी का बहाव नौ लाख 13 हज़ार क्यूसेक मापा गया था। हालाँकि पहली बार 1963 में ही तटबंध टूट गया था। वर्ष 1968 में कोसी तटबंध बिहार के जमालपुर में टूटा था और सहरसा, खगड़िया और समस्तीपुर में भारी नुकसान हुआ था। नेपाल में यह तटबंध 1963 में डलबा, 1991 में जोगनिया और इस वर्ष कुसहा में टूट चुका है। बांध टूटने का एक बड़ा कारण कोसी नदी की तलहटी में तेज़ी से गाद का जमना भी है। इसके कारण जलस्तर बढ़ता है और तटबंध पर दबाव पड़ता है। इस बार कोसी ने जो कहर बरपाया है उससे बिहार का नक्शा बदलने का खतरा पैदा हो गया है। बिहार में बाढ़ का क़हर बरपा रही कोसी नदी का जलस्तर कहीं-कहीं कुछ कम हुआ है लेकिन उसका नए-नए इलाक़ों में प्रवेश जारी है। जहाँ दो दिनों पहले पानी नहीं था वहाँ अब पानी भर आया है और लोग वहाँ से सुरक्षित स्थानों की तलाश में विस्थापित हो रहे हैं। 18 अगस्त को कोसी नदी के तटबंध टूटने से आई इस बाढ़ से बिहार के 16 ज़िले प्रभावित हैं लेकिन कोसी इलाक़े के चार ज़िलों सुपौल, सहरसा, अररिया और मधेपुरा में इसकी स्थिति ख़ासी गंभीर है। बाढ़ पीड़ित 33 लाख लोगों में से 22 लाख तो कोसी इलाक़ों के चार ज़िलों से ही हैं। भूख से बिलबिलाते लोगों को अब बीमारियों का डर भी सता रहा है। जैसे जैसे बाढ़ का पानी उतरेगा बीमारियों का कहर शुरू होगा, जो न सिर्फ बाढ़ पीड़ितों के लिए बल्कि प्रशासन के लिए भी किसी चुनौती से कम नहीं होगा।
नेपाल में कुसहा बांध की यही वो जगह है जहां से कोसी ने बांध को तोड़ा है और यहीं से बिहार में पानी घुसा है।
सभी फोटो साभार बीबीसी
बुधवार, 3 सितंबर 2008
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1 टिप्पणी:
क्षमा कीजिये ...............जानकारी देना अच्छी बात है लेकिन स्रोत का उल्लेख करना और खासकर जब कहीं और से उठाया गया हो तो कम से कम "साभार" लिख देना शिष्टता होती है. लगभग पूरी रिपोर्ट BBC हिंदी से उठाई गयी है ....... हो सके तो भूल सुधर करें......
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