शनिवार, 13 सितंबर 2008

भारत के गौरव की नीलामी



13 सितम्बर 2008
पंजाब के पूर्व महाराजा रणजीत सिंह की संगमरमर से बनी दुर्लभ दुधिया प्रतिमा नौ अक्तूबर को लंदन के बोनहैम्स में नीलाम की जाएगी। महाराजा रणजीत सिंह की यह प्रतिमा 1900 सदी में भारत में बनी है। इस प्रतिमा के 45 से 63 लाख रुपये के बीच बिकने की संभावना है। 1793 में स्थापित बोनहैम्स पुरानी और ऐतिहासिक वस्तुओं की नीलामी करने वाली बहुत पुरानी संस्था है। इसके पहले इस नीलाम घर द्वारा रणजीत सिंह के बेटे दिलीप सिंह की प्रतिमा 17 लाख पाउंड में नीलाम की जा चुकी है। शेर-ए-पंजाब के नाम से विख्यात रणजीत सिंह का जन्म 13 नवंबर 1780 को गुजरांवाला में हुआ था जो अब पाकिस्तान में है। महाराजा रणजीत सिंह के बारे में पंजाब रियासत के प्रधानमंत्री रहे दीवान जरमनी दास ने कई रोचक किस्से लिखे हैं। एक किस्सा यूँ है कि महाराजा रणजीत सिंह कोलकोता में रोल्स रॉयस गाड़ी के शो रुम के सामने से गुजर रहे थे, अचानक उनका ध्यान वहाँ रखी रोल्स रायस कारों पर गया तो वे सहज ही उन कारों का भाव पूछने चले गए। उनका पंजाबी और सरदार की विचित्र वेशभूषा देखकर वहाँ मौजूद अंग्रेज कर्मचारी ने उनको डाँट कर कहा कि ये बहुत महंगी कारें हैं इनको खरीदना तुम्हारे बस की बात नहीं और उनको कार के शो रुम से बाहर कर दिया। थोड़ी ही देर में महाराजा रणजीत सिंह ने अपने मंत्री को भेजकर शो रुम में रखी सभी रोल्य रॉयस कारें खरीद ली। लेकिन किस्सा यहीं खत्म नहीं हुआ, असली किस्सा तो इन कारों को खरीदने के बाद शुरु होता है। महाराजा रणजीत सिंह अपने अपमान से इतने आहत थे कि उन्होंने इऩ कारों को पंजाब लाकर इनको शहर का कचरा ढोने में लगा दिया और कोलकोता के शो रूम मालिक अंग्रेज को इसकी खबर भी भिजवा दी। इधर लंदन के अखबारों में रोल्स रॉयस के कचरा ढोते हुए फोटो भी प्रकाशित हो गए तो पूरे इंग्लैंड में हंगामा मच गया। रोल्य रॉयस कंपनी ने काफी मिन्नतों और मनुहारों के बाद महाराजा रणजीत सिंह को इस बात के लिए मनाया कि वे इन कारों को कचरा ढोने के काम में न लें। उन्हीं महाराजा रणजीत सिंह की प्रतिमा की एक विदेशी नीलाम घर में बोली लगेगी और सौ करोड़ की आबादी वाला हमारा देश इस कार्रवाई को मूक दर्शक बनकर देखेगा। वैसे तो हम अपने इतिहास और गौरव की दुहाई देते नहीं थकते लेकिन जहां बात उसी इतिहास को संभालने, सहेजने और संवारने की बात आती है तो हमारे रहनुमाओं को लकवा मार जाता है। उनके सोचने समझने की क्षमता मानों जैसे समाप्त हो जाती है। देश के धुरंधर नेताओं की सुरक्षा पर करोड़ो खर्च करने वाली सरकार क्या हमारे गौरव की इस नीलामी को रोक नहीं सकती। जो महाराजा रणजीत सिंह भारतीय आन-बान और शान के प्रतीक थे, उनकी प्रतिमा एक विदेशी नीलाम घर द्वारा नीलाम किया जाना इस बात का सबूत है कि हमारे देश में हम दो दो कौड़ी के नेताओं और फिल्मी कलाकारों को तो सम्मान देते हैं मगर अपने देश के असली नायकों को भूल जाते हैं।


ये जानकारी साभार hindi media.in से ली गई है।

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