मंगलवार, 31 मार्च 2009

तुम मिली और बिछड़ गई मिलकर....

31 मार्च 09
तुम मिली थी तो मैनें सोचा था,
मैं बहारों के गीत गाऊंगा
दिल शिकस्ता सही मगर फिर भी
आंसुओं की हंसी उड़ाउंगा...
तुम मिली थी तो मैनें सोचा था
मैं फिजाओं में रंग भर दूंगा
अपने चेहरे पर बिखरी फिक्रों को
मुस्कुराहट में दफ्न कर दूंगा...
तुम मिली थी तो मैनें सोचा था
जीवन गाएगा मुस्कुराएगा
अब ना गुजरेंगे काफिले गम के
हर घड़ी ऐश बन के आएगी
आज जब तुम बिछड़ गई हो तो फिर
मैनें सोचा है, में जमाने को
प्यार बाटूंगा, गीत गाऊंगा
तुम मिली और बिछड़ गई मिलकर
ये किसी को नहीं बताऊंगा....

5 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

अपने चेहरे पर बिखरी फिक्रों को
मुस्कुराहट में दफ्न कर दूंगा...

क्या लिख दिया अनिल जी...मजा आ गया...कसम से...बधाई

बेनामी ने कहा…

यही तो मोहब्बत है जनाब...दिल में हजार गम हों लेकिन जुबां पर दर्द उभरने ना पाए...तभी तो सार्थक है प्यार...अच्छी रचना...बधाई

बेनामी ने कहा…
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मैं इच्छा... ने कहा…

तुम मिली और बिछड़ गई मिलकर....भावनाओं का दिलकश तानाबाना है....

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत बढिया रचना ...

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