गुरुवार, 9 अप्रैल 2009

उससे जुदा हो गया मैं...

09 अप्रैल 09
मैं ये सोचकर उसके दर से उठा था
कि वो रोक लेगी, मना लेगी मुझको
हवाओं में लहराता आता था आंचल
कि दामन पकड़कर बिठा लेगी मुझको
कदम ऐसे अंदाज में उठ रहे थे
कि आवाज़ देकर बुला लेगी मुझको
मगर उसने रोका, न उसने बुलाया
न दामन ही पकड़ा, न मुझको बिठाया
न आवाज़ ही दी, न वापस बुलाया
मैं आहिस्ता-आहिस्ता बढ़ता ही आया
यहां तक कि उससे जुदा हो गया मैं...

11 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

मैं आहिस्ता-आहिस्ता बढ़ता ही आया
यहां तक कि उससे जुदा हो गया मैं...
बढ़िया रचना...बधाई।

बेनामी ने कहा…

अच्छी कविता...बधाई।

बेनामी ने कहा…

ऐसा क्या हो गया भइया कि नहीं मनाया उसने...हो सके तो बताइए...जनाब..लेकिन अच्छी रचना...बधाई।

श्यामल सुमन ने कहा…

आशा की डोर न छोड़ें। कहते हैं कि

खुशबू तेरे बदन की मेरे साथ साथ है।
कह दो जरा हवा से तन्हा नहीं हूँ मैं।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

संगीता पुरी ने कहा…

मैं आहिस्ता-आहिस्ता बढ़ता ही आया
यहां तक कि उससे जुदा हो गया मैं...
बहुत बढिया लिखा ...

अनिल कान्त ने कहा…

जो अगर वो मना लेती तो
जिंदगी उसकी जुल्फों तले गुजार देता

Harshvardhan ने कहा…

anil ji rachna bahut achchi lagi....gagar me sagar hai... aaapka blog bhee achcha laga ....

Harshvardhan ने कहा…

yah post bahut achchi lagi.....

Harshvardhan ने कहा…

yah post bahut achchi lagi.....

MANVINDER BHIMBER ने कहा…

मैं आहिस्ता-आहिस्ता बढ़ता ही आया
यहां तक कि उससे जुदा हो गया मैं...
बढ़िया रचना

kshitij ने कहा…

संवेदना का एहसास......बस्स....

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