गुरुवार, 23 अप्रैल 2009

मैं तेरी सौगात लिए...

23 अप्रैल 09
दीप जलाए अश्कों के और आहों के नग्मात लिए
कौन आया है ज़ेहन में मेरे,यादों की बारात लिए
काली घटा को देख के,आई याद तुम्हारी जुल्फों की
सावन ऋतु आई है लेकिन अश्कों की बरसात लिए
अपनी अपनी बात सुनाई,सबने तुम्हारी महफिल में
बैठे रहे हम ही तन्हा,दिल में अपनी बात लिए
जुल्फों के साए ने,तुम्हारे चेहरे को यूं घेरा है
जैसे सवेरा हो पहलू में, अपने काली रात लिए
लोगों ने चुन चुन के उठा ली,खुशियों की हर एक घड़ी
लेकिन हमने शौक से खुद ही,दर्द भरे लम्हात लिए
गीली गीली आंखें क्यों हैं,लब पर है क्यों आह
घूम रहा हूं गली गली में तेरी सौगात लिए...

6 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

जुल्फों के साए ने, तुम्हारे चेहरे को यूं घेरा है
जैसे सवेरा हो पहलू में, अपने काली रात लिए..

क्या उपमा दे दी है भइया....गजब..मजा आ गया...अनिल जी...लिखते रहिए..

बेनामी ने कहा…

दिल को छू लेने वाली रचना...अनिल जी बधाई स्वीकार करें...

Udan Tashtari ने कहा…

सावन ऋतु आई है लेकिन अश्कों की बरसात लिए
अपनी अपनी बात सुनाई,सबने तुम्हारी महफिल में

-बहुत बढ़िया, अनिल भाई.

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।

दीप जलाए अश्कों के और आहों के नग्मात लिए
कौन आया है ज़ेहन में मेरे,यादों की बारात लिए
काली घटा को देख के,आई याद तुम्हारी जुल्फों की
सावन ऋतु आई है लेकिन अश्कों की बरसात लिए

श्यामल सुमन ने कहा…

अक्सर प्यार में गीली आँखे, रहती आह लबों पे।
फिर भी प्रेमी दौड़े आते, दिल में इक जज्बात लिए।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

अनिल कान्त ने कहा…

kya baat hai ...chha gaye guru

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