रविवार, 15 जून 2008

बस यूं ही

15 जून 2008
आज यूं ही बैठे बैठे मन में ख़्याल आया कि इस दुनिया के बारे में कुछ लिखा जाए। वो दुनिया जिसमें हम और आप बसते हैं। वो दुनिया, जिसमें हर पल होनी-अनहोनी के बीच जिन्दगी हांफती-डांफती रफ्तार पकड़ने की कोशिश करती नजर आती है। वो दुनिया, जिसमें तमाम रिश्ते-नाते पलते बढ़ते हैं औऱ दम तोड़ देते हैं। वो दुनिया, जहां जिन्दगी को जीने की जद्दोजहद करता इंसान पेट की खातिर कुछ भी कर गुजरने को तैयार दिखाई देता है। वो दुनिया, जहां खुद को बचाए रखने की मुहिम में इंसान दूसरों के खात्मे से परहेज नहीं करता है। वो दुनिया, जहां उसी को जीने का हक़ है जिसके पास ताकत है, रसूख है और पैसा है। वो दुनिया, जहां एक की तक़लीफ दूसरे का तमाशा होती है। वो दुनिया जहां आए दिन होने वाले बम धमाकों की गूंज अंतरआत्मा को झिंझोड़ देती है। जहां धर्म और मजहब की तलवारें मानवता का कत्ल कर इंसानियत को शर्मसार करती हैं। ये सब सोचते सोचते ख्याल आया कि दुनिया का ऐसा ही रूप तो नहीं है। इससे इतर भी कोई दुनिया है। वो दुनिया जहां प्यार और मोहब्बत के फूल खिलते हैं। जहां रिश्तों की मिठास मन के सूखे धरातल पर बारिश की बौछार की भांति गिरकर आत्मा को तृप्त कर जाती है। वो दुनिया जहां मां के आंचल तले मिलने वाली ममता की छांव हर दर्द का मरहम बन जाती है। जहां पिता का दुलार और प्यार से सर पर गिरा हाथ चट्टानों का सीना चाक कर देने की कूवत पैदा कर देता है। वो दुनिया जहां कलाई पर प्यार से बांधा गया एक धागा जीवन भर की सुरक्षा का वादा बन जाता है। वो दुनिया जहां ढाई अक्षर का एक शब्द लोगों के लिए इबादत बन जाता है। इसके अलावा और भी बहुत कुछ है जिससे दुनिया को शब्दों में बांध देमे को जी चाहता है लेकिन क्या करूं शब्द चंचल मन की गहराइयों में कहीं दूर दफन हो गए हैं। मेरा सवाल अभी भी अनुत्तरित है कि आखिर ये किसकी और कैसी दुनिया है....

दीन दुनिया से बेखबर ये एक अलग दुनिया है
ये ग़म की दुनिया है...ये खुशी की दुनिया है
ये भोले भाले और लाचार लोगों की दुनिया है
ये घर से बेघर हुए लोगों की दुनिया है
ये पल में रूठते और पल में मानते लोगों की दुनिया है
ये बच्चों की दुनिया है...ये बूढ़ों की दुनिया है
ये हालात के मारे लोगों की दुनिया है
ये अपनों से हारे लोगों की दुनिया है
कभी दिल झांकता है खुद ही अपने झरोखे में
तो खुद ही सोचता है कि आखिर ये कैसी दुनिया है....

post by-
anil kumar verma

2 टिप्‍पणियां:

Ritu Raj Gupta ने कहा…

अनिल जी,
वाह क्या बात है... आपने तो दिल की बात कह दी ... लेकिन दोस्त यही दुनिया है ... दोस्त आज भी मैं वो फूल ढूंढ रहा हूं जो भगवान भोलेनाथ ने एक राजा को दिये थे ... याद है आपको ... एक बार भगवान भोलेनाथ एक राजा पर खुश हो गये ... उन्होंने कहा, वत्स ... वर मांगो ... राजा कुछ देर सोचता रहा ... फिर बोला ... भगवन ... अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे ऐसे फूल दे दीजिये जिसकी खुशबू से हर तरफ प्यार और मोहब्बत फैले ... भगवान राजा के जवाब से बहुत खुश हुए और तथास्तु कहकर अंन्तर्ध्यान हो गये ... निश्चय ही राजा को वो फूलों के पौधे और उनके बीज जरुर मिले होंगे ... और मैं उन्हें आज तक ढूंढ रहा हूं जिस दिन मुझे मिल जायेंगे मैं सारे काम छोड़कर बस उन्हीं फूलों की खेती करूंगा और दुनिया भर में उन्हें मुफ्त भेजूंगा ...

satyendra Yadav ने कहा…

प्रिय अनिल कुमार वर्मा... आपकी दुनिया में आकर सचमुच अच्छा लगा... हालांकि ये दुनिया नयी नहीं है... लेकिन फिर भी दिखाई देते हुए भी नहीं दिखती... साधुवाद...

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