बुधवार, 17 सितंबर 2008

कलाकार को फ़तवा

18 सितम्बर 2008
पिछले दिनों मशहूर फिल्म अभिनेत्री जया बच्चन के एक बयान को लेकर इस कदर हंगामा हुआ कि सदी के महानायक को खुद जया के बचाव के लिए आगे आना पड़ा और माफी मांगते हुए सफाई पेश करनी पड़ी। भाषा को लेकर की गई जया की टिप्पणी को राजनीतिक रंग देकर जिस तरह से कुछ लोगों ने अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश की उसकी चारों तरफ निन्दा हुई। आज इंटरनेट पर एक और खबर पढ़ी जिसके मुताबिक एक बार फिर धर्म के ठेकेदारों ने एक कलाकार को निशाना बनाया है। मामला जुड़ा है अवध के नवाब अमजद अली शाह के वंशज नवाब सैय्यद बदरुल हसन उर्फ पप्पू पोलिस्टर से, जिन्होंने कई धार्मिक धारावाहिकों में भगवान नंदी का किरदार निभाया है। एक मुस्लिम द्वारा नंदी का किरदार निभाए जाने से नाराज होकर कट्टरपंथी मौलानाओं ने सैय्यद बदरुल हसन उर्फ पप्पू पोलिस्टर के खिलाफ मोर्चा खोल लिया हैं। इन मौलानाओं ने हसन के खिलाफ कलमा पढ़कर दोबारा मुसलमान बनाने का फरमान तक जारी कर दिया है। नवाब बदरुल हसन उर्फ पप्पू पोलिस्टर ने कई धार्मिक धारावाहिकों ' ओम नमः शिवाय ' संतोषी माता ' ' जय हनुमान ' और ' सत्यनारायण की कथा ' में नंदी जैसे धार्मिक चरित्र से अपनी एक अलग पहचान बना ली है और उनको इसी तरह के धारावाहिकों के प्रस्ताव भी लगातार मिल रहे हैं। उनके बेटे अमन पोलिस्टर ने भी एक धारावाहिक में भगवान गणेश की भूमिका की है। इससे भी नाराजगी जाहिर करते हुए कुछ कट्टरपंथियों ने उन्हें धमकी दी कि जैसे गणेश के रूप में तुम्हारे बेटे का सिर कटा था, हम घर आकर ऐसे ही उसका सिर भी काट देंगे तब इसकी रिपोर्ट मुंबई के अंधेरी ईस्ट स्थित मेगवाड़ी थाने में भी दर्ज कराई गई थी। यहाँ तक कि पप्पू पोलिस्टर के सगे चाचा विलायत हुसैन ने उन्हें यह कहकर पुश्तैनी सम्पति देने से मना कर दिया है कि खुद तो भगवान बन गए, लड़के को भी भगवान बना दिया। इसलिए तुम मुसलमान ही नहीं रहे और हमारे परिवार से अब तुम्हारा कोई नाता भी नहीं रहा। नवाब हसन कहते हैं कि हिन्दू देवताओं के अभिनय करने पर उन्हें हिन्दू समाज के लोगों ने उनके प्रति जो सम्मान और श्रध्दा व्यक्त की उसकी मैं कभी कल्पना भी नहीं कर सकता लेकिन इसके ठीक उलट मुस्लिम समाज के कट्ट्रपंथियों की ओर से मुझे लगातार तिरस्कार और धमकियाँ मिलती है। नवाब बदरुल हसन उर्फ पप्पू पोलिस्टर की ये परेशानी कई सवाल खड़े करती है। क्या अब कलाकारों को भी धर्म और मजहब के तराजू में तौला जाएगा। क्या अब धर्म के आधार पर कलाकारों को अपनी भूमिका चुनने के लिए बाध्य किया जाएगा। क्या कलाकारों को अब एक सीमा में रहकर काम करने के लिए मजबूर किया जाएगा। क्या इस तरह की हरकतें कर इस देश का अमन चैन बिगाड़ने की कोशिश नहीं हो रही है। सलमान खान अपने घर में गणपति लाते हैं तो इन कट्टरपंथियों के पेट में दर्द होने लगता है लेकिन उन्हें अजमेर में विश्व प्रसिद्ध बाबा बादामी शाह की दरगाह पर एक हिन्दू परिवार द्वारा सालों से की जा रही खिदमत दिखाई नहीं देती। ऐसे ही न जाने कितने उदाहरण है हिन्दू-मुस्लिम एकता के और शायद यही एकता कुछ मौका परस्त लोगों को रास नहीं आ रही है। इसीलिए वो इस देश के लोगों में अपने पराए का भेद पैदा कर रहे हैं। नवाब बदरुल हसन उर्फ पप्पू पोलिस्टर के खिलाफ जारी फतवा तो इसी बात को दर्शाता है।

3 टिप्‍पणियां:

फ़िरदौस ख़ान ने कहा…

ऐसा नहीं होना चाहिए...कलाकार मज़हब और देश की सरहदों से परे होता है...कितने ही कलाकार मूर्तियाँ बनते हैं...यह तो उनका रोज़गार है...

pritima vats ने कहा…

बहुत अच्छा लिखा है आपने कलाकार को कलाकार की तरह जीने का हक तो होना हीं चाहिए।

श्यामल सुमन ने कहा…

अनिल जी,

अच्छा और समसामयिक आलेख के लिए बधाई।
नीरज जी की दो पंक्तियाँ यद आ रही है-

डगर डगर पे मंदिर मस्जिद, कदम कदम पर गुरुद्वारे।
भगवानों की इस बस्ती में, जुल्म बहुत इन्सानों पर।।

साथ ही मुनव्वर राणा साहब कहते हैं-

यह देखकर परिन्दे भी हैरान हो गयीं।
अब तो छतें भी हिन्दु-मुसलमान हो गयीं।।

नोट - कृपया वर्ड वेरीफिकेशन हँटा लें।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com

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