मंगलवार, 14 अप्रैल 2009

प्रेम ये है प्रेम...

14 अप्रैल 09
आग से जले ना, जल से बुझे ना
हवा से उड़े ना, तूफां से डरे ना
दिल और जां में जमीं आसमां में
नाम है जिसका सारे जहां में
प्रेम ये है प्रेम
प्रेम है पूजा, प्रेम है शक्ति
प्रेम है ज्योति, नई अनुभूति
प्रेम ही सुर है, प्रेम ही भाषा
प्रेम जीवन की है परिभाषा
प्रेम ये है प्रेम
प्रेम है राधा प्रेम है कृष्णा
प्रेम मिलन की अनबुझ तृष्णा
प्रेम लगन है, प्रेम तपस्या
प्रेम बिना है, दुनिया में क्या
प्रेम ये है प्रेम
प्रेम ये है प्रेम....

5 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

प्रेम की अद्भुत व्याख्या...बधाई।

बेनामी ने कहा…

यूं तो प्यार को परिभाषित करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है लेकिन आपका प्रयास सराहनीय है...बधाई।

बेनामी ने कहा…

बिल्कुल सही...बढ़िया रचना..बधाई

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

प्रेम लगन है, प्रेम तपस्या
प्रेम बिना है, दुनिया में क्या....
सुंदर ब्याख्या .

श्यामल सुमन ने कहा…

प्रेम से बाहर कुछ नहीं प्रेम बहुत अनमोल।
प्रेम का है इतिहास मगर नहीं कोई भूगोल।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

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