बुधवार, 22 अप्रैल 2009

वो जो न था आदर्श तुम्हारा...


22 अप्रैल 09
तन्हा बैठा सोच रहा हूं
वो जो न था आदर्श तुम्हारा
आज वही एक आम सा लड़का
शीशों वाले उस कमरे में
पास तुम्हारे बैठा होगा
लंबी और घनी ज़ुल्फों में
जूही की कलियां अटकाए
और गुलाबी से होठों पर
एक सच्ची मुस्कान सजाए
अपनी जीत पे नाजां नाजां
तुम उससे बातें करती होगी
भूल के दुनिया के हर ग़म को
बात-बात पे हंसती होगी
तुम जो कभी बेहद ज़िद्दी थी
ज़िद उससे भी करती होगी
बात बात पे रुठने वाली
उससे भी तो रूठती होगी
और वही एक आम सा लड़का
अक्सर तुम्हें मनाता होगा
उलझे उलझे बाल तुम्हारे
प्यार से वो सुलझाता होगा
पाकर ख्वाबों की ताबीर
क्या क्या वो इतराता होगा
उसके सपने सच्चे निकले
वो जो न था आदर्श तुम्हारा
उसने प्यार की मंजिल पा ली
जिससे तुमको प्यार नहीं था
और मैं जीवन की राहों में
भटक रहा हूं तन्हा तन्हा
तन्हा बैठा सोच रहा हूं
वो जो न था आदर्श तुम्हारा

6 टिप्‍पणियां:

Aadarsh Rathore ने कहा…

सर.
दिल को छू जाने वाली पंक्तियां। कुछ रचनाएं ऐसी होती हैं जो सीने पर खंजर सा वार करती हैं और दिल को पकड़कर झकझोरती हैं। ऐसी ही रचनाओं में से एक है।
मेरे मनोभावों पर सटीक बैठती है......

अनिल कान्त ने कहा…

dil to hai dil .....

Udan Tashtari ने कहा…

बेहतरीन भावपूर्ण.

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रणय रचना है।बधाई।

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

शीशों वाले उस कमरे में
पास तुम्हारे बैठा होगा
लंबी और घनी ज़ुल्फों में
जूही की कलियां अटकाए
और गुलाबी से होठों पर
एक सच्ची मुस्कान सजाए
अपनी जीत पे नाजां नाजां
तुम उससे बातें करती होगी
भूल के दुनिया के हर ग़म को
बात-बात पे हंसती होगी

अनिल जी ,
बहुत सुन्दर भाव अभिव्यक्ति .... आप अपने ज़ज्बातों को नज़्म के रूप में पिरोने में पूर्णरूप से सफल हुए हैं......चित्र भी बहुत अच्छा लगा ...बधाई.....!!

अनिल कुमार वर्मा ने कहा…

इस रचना पर टिप्पणी देने वाले सभी लोगों का मैं तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूं...इसी तरह मेरा हौसला बढ़ाते रहिए...ब्लॉगर बंधुओं की दुनिया में मेरा भी नाम हो जाएगा...धन्यवाद।

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