24 अप्रैल 09
आज तुम मुझसे दूर हो जाओगी
अपनी दुनिया नयी बसाओगी
अब किसी अजनबी की बाहों में
अपनी रानाइयां लुटाओगी
मैनें माना कि दूर जाओगी
अपनी दुनिया नयी बसाओगी
फिर भी मैं पूछता यह हूं तुमसे
नक्शे माज़ी मिटा भी पाओगी
जब दिल से मुझे भुलाओगी
दर हकीकत फरेब खाओगी
दिन कटेगा मेरे तसव्वुर में
अपने ख्वाबों में मुझकों पाओगी
अपने आरामदेह शाबिस्तां में
नींद आंखों में जब बसाओगी
जाने क्या आएगा नजर तुमको
सिसकियां लेके जाग जाओगी
आधी रातों में जाग जाने की
वजह क्या है समझ ना पाओगी
और फिर बेबसी के आलम में
मेरी तस्वीर तुम उठाओगी
एहदे माज़ी की यादगारों में
बंद कमरे में जब जलाओगी
दर्द की लहर रूप पे छाएगी
अश्क आंखों से तुम बहाओगी
आज तुम मुझसे दूर हो जाओगी
अपनी दुनिया नयी बसाओगी
अब किसी अजनबी की बाहों में
अपनी रानाइयां लुटाओगी
शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009
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9 टिप्पणियां:
अपने आरामदेह शाबिस्तां में
नींद आंखों में जब बसाओगी
जाने क्या आएगा नजर तुमको
सिसकियां लेके जाग जाओगी...
बहुत बढ़िया लाइनें हैं...दिल को छू गईं...भाई साहब मज़ा आ गया...
मोहब्बत में ऐसा ही होता है भाई...वो भी बेचैन...हम भी बेचैन...यही तो इस आग की खासियत है...अनिल भाई..मज़ा आ गया...बधाई।
अपने आरामदेह शाबिस्तां में
नींद आंखों में जब बसाओगी
जाने क्या आएगा नजर तुमको
सिसकियां लेके जाग जाओगी...
भावपूर्ण रचना...सीधे दिल में उतर गई...शब्दों की अजीब सी जादूगरी है...एक रवानी है।
बढ़िया रचना...
क्या बात है...अनिल भाई...शब्द नहीं है..प्रशंसा के लिए...जबरदस्त रचना...
वो मोहतरमा हैं कौन..हमे भी तो पता चले...वैसे लिखा गजब है...बधाई..
haale dil aapne bahut khoob bayan kiya hai
एहदे माज़ी की यादगारों में
बंद कमरे में जब जलाओगी
दर्द की लहर रूप पे छाएगी
अश्क आंखों से तुम बहाओगी
बहुत बढ़िया .....!!
अनिल जी बहुत खूबसूरती से आपने अपने भावों कविता का रूप दिया है....बधाई....!!
अपने मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं।बधाई।
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