25 अप्रैल 09
निगाहों में कभी माज़ी का अफसाना नहीं आता
मगर दिल को किसी सूरत भी बहलाना नहीं आता
हुई मुद्दत बहार आए,सूनी पड़ी है दिल की महफिल भी
हमारी ओर कोई दिल की दीवाना नहीं आता
न बह जाए कहीं दिल से,तुम्हारी याद की रंगत
इसी डर से हमें तो अश्क बरसाना नहीं आता
कोई सूरत तो बतला दो,जरा दिल को बहलाने की
तुम्हारे बिन हमें तो दिल को बहलाना नहीं आता
हर एक आहट पे दिल मेरा,यही कहता है तू आई
यह धोखा है मुझे दिल को समझाना नहीं आता
जमाने में ये दिल की महफिल ऐसी महफिल है
जहां अपने तो आ सकते हैं बेगाना नहीं आता
शनिवार, 25 अप्रैल 2009
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5 टिप्पणियां:
nigahon ka fasana kah lo ya kah lo dil ki baat ....mohabbat hai ..mohabbat hai
मोल बहुत है प्रेम का कहते हैं सब लोग।
सावधान इस राह में प्रेम बने न रोग।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
bahut achhi gazal hai. agar aap chahe to prerna se bhari koi kavita mere blog k lie bheje.
www.salaamznindadili.blogspot.com
हुई मुद्दत बहार आए,सूनी पड़ी है दिल की महफिल भी
हमारी ओर कोई दिल की दीवाना नहीं आता....
बहुत खूब अनिल जी .
निगाहों में कभी माज़ी का अफसाना नहीं आता
मगर दिल को किसी सूरत भी बहलाना नहीं आता
बहुत खूब....!!
न बह जाए कहीं दिल से,तुम्हारी याद की रंगत
इसी डर से हमें तो अश्क बरसाना नहीं आता
आपका इश्क सदा सलामत रहे ....!!
और हाँ आपका कमेन्ट मुझ से डिलीट हो गया है एडिट करते वक़्त एक बार फिर आना पड़ेगा आपको.....!!
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