18 जून 2008
जानना चाहता हूँ मैं
जीवन को
उसकी अन्यतम गहराइयों में
इसलिए उतरना चाहता हूँ मैं
दुख की गहन गुफ़ा में
तैरना चाहता हूँ
नकारात्मकता की अंधकारमय नदी में
जैसे तैरती है कोई मछली
धारा के विरोध में
मुझे लगता है
मछली प्राणवंत हो उठती होगी
उल्टी धारा से खेलते हुए
अनायास ही चहचहा उठती होगी चिड़िया
उठती हुई ऊपर
धरती से ऊपर
गुरुत्वाकर्षण के विरोध में
इसलिए बिंधना चाहता हूँ मैं
हज़ार-हज़ार काँटों से
कि अनुभव कर सकूँ कि
उस बिंधने में मैं अपने अस्तित्व के
कितने क़रीब था
अनुभव कर सकूँ
उसे जो बिंधा!
गुदगुदाने के भाव से भरकर
परम आस्था और अहोभाव से भरकर
मृत्युसहोदर परम पीड़ा की गोद में
नवजात शिशु-सा निश्चिंत होकर
उस संजीवनी का पान करना चाहता हूँ
सुकरात का उत्तराधिकारी बनकर
शायद परम किरण का स्पर्श
तभी होता है
ज़िंदगी को!
POST BY -
ANIL KUMAR VERMA
मंगलवार, 17 जून 2008
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3 टिप्पणियां:
priya anil
aap achha likh rahe hain jab yahan tak pahunche to aage bhee jayenge.mere blog tak aap kaise pahunche ye bhee batayen .Mere website se bhee aap mujhse jude rah sakte hain
achha prayas,badhaai
kuch naya kyon nahin likha apn aphone no. mail karo
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