शुक्रवार, 23 मई 2008

गुर्जरों पर भारी आरुषि

24 मई 2008
अगर किसी से आज ये पूछा जाए कि कल यानि शुक्रवार को हिन्दुस्तान में वो कौन सी खबरें थीं जो सुर्खियों में रहीं तो निसन्देह अपने जवाब में वो पहले नोएडा के आरुषि-हेमराज हत्याकांड का नाम लेगा उसके बाद राजस्थान में आरक्षण को लेकर गुर्जरों द्वारा एक बार फिर की गई हिंसा की बात करेगा। बात करें मीडिया की तो उसके लिए तो कल मानो दुनिया ही थम गई थी। शाम को जैसे ही नोएडा के चर्चित आरुषि-हेमराज दोहरे हत्याकांड का खुलासा हुआ पूरा मीडिया जगत उस खबर की कवरेज के लिए ठीक उसी तरह टूट पड़ा जैसे चींटों का झुंड किसी गुड़ के धेले पर टूट पड़ता है। इस खबर के चक्कर में अपने आत्मसम्मान के लिए सड़को पर खून बहाने को आतुर शासन के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले गुर्जरों की वो लड़ाई फीकी पड़ गई जिसमें 16 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। वाहनों में तोड़फोड़ और आगजनी के बीच कई मांओं की गोद सूनी हो गई। पुलिस के जवानों की पिटाई हुई, ट्रेनें रोक दी गईं बात कर्फ्यू तक जा पहुंची लेकिन बावजूद इसके मीडिया का ध्यान नोएडा पर ही केंद्रित रहा। बीते एक साल में गुर्जरों ने आरक्षण की इसी मांग को लेकर कई बार हंगामा किया और देश के दूसरे कई राज्य भी उनके इस आंदोलन की आंच में झुलसे। इससे पहले मई 2007 में जब गुर्जर समाज सड़कों पर उतरा था तो मीडिया जगत के लिए उससे बड़ी कोई खबर नहीं थी और हर तरफ गुर्जरों के ही आंदोलन की चर्चा थी। शायद इसलिए क्योंकि उस वक्त अपने अनैतिक संबंधों को छुपाने के लिए किसी बाप ने अपनी मासूम बेटी की गला रेतकर हत्या नहीं की थी, जैसा कि इस बार हुआ। नोएडा में हुए आरुषि हत्याकांड ने गुर्जरों के आंदोलन की आग को ठण्डा कर दिया। अखबारों का मुख्य पृष्ठ हो या फिर कोई न्यूज चैनल हर जगह एक ही चर्चा थी, एक बाप ने अपनी बेटी की इसलिए हत्या कर दी क्योंकि वो उसके अनैतिक संबंधों के बारे में जान गई थी और उसका विरोध करती थी। इस हत्याकांड में आरुषि के पिता का हाथ होने की बात ही वो खास बिन्दु था जिसके चलते ये घटना अहम हो गई। उस पर जब ये खुलासा हुआ कि ये ऑनर किंलिंग थी तो फिर मामले ने बहस का रुप ले लिया। ऐसा नहीं था कि किसी बाप ने पहली बार अपनी बेटी का कत्ल किया था और ऐसा भी नहीं था कि पहली बार किसी 14 साल की बच्ची की हत्या हुई थी लेकिन इससे पहले हुई उन घटनाओं पर ये घटना इसलिए भारी पड रही थी क्योंकि इस कत्ल के पीछे जो उद्देश्य था वो समाज की उस तस्वीर को पेश कर रहा था जो हद से ज्यादा विकृत हो चली है। एक बाप अपनी उस 14 साल की बेटी के सामने वो हरकतें कर रहा था जिसे उसके गुरुओं और किताबों ने अनैतिक की संज्ञा दे रखी थी। उम्र के उस दौर में जब आरुषि को सबसे ज्यादा अपने माता पिता के मार्गदर्शन की ज़रूरत थी ऐसे में घर के माहौल में घुले अनैतिक रिश्तों के ज़हर ने उसकी जिन्दगी को निगल लिया। इस घटना से जुडी सभी कड़ियों को जोड़ने पर एक ऐसे समाज का अक्स उभरता है जो खुद को आईना दिखाना पसंद नहीं करता। आरुषि कुछ ऐसा ही करती थी। अपने पिता द्वारा नैतिकता के उल्लंघन का विरोध उसे मौत के मुहाने तक ले गया। मेरे मुताबिक यही वो वजह थी जिसने गुर्जर आंदोलन की खबर को निगल लिया। आज आरुषि हत्याकांड से उबरकर मीडिया गुर्जरों पर भले ही फोकस करेगा लेकिन सच यही है कि एक तयशुदा ढांचे में जीने वाला समाज जब अपनी वर्जनाओं को टूटते देखता है तो जड़ हो जाता है और इसीलिए मीडिया ने गुर्जर आंदोलन को छोड़ आरूषि हत्याकांड को प्रमुखता दी और लोग टेलीविजन से चिपके नजर आए।

post by-
anil kumar verma

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