रविवार, 25 मई 2008

सामाजिक बंटवारे की सियासत


26 मई 2008
राज ठाकरे ने एक बार फिर उत्तर भारतीयों को लेकर अपना इंफीरियारिटी कांप्लेक्स बेतुके और अमर्यादित शब्दों के माध्यम से जग जाहिर किया है। यूं तो राज की इन हरकतों को लेकर बहुत कुछ लिखा जा चुका है। बहुत से लोगों ने उन्हें देश के सामाजिक ढांचे को बिगाड़ने के लिए जिम्मेदार बताकर कठघरे में भी खड़ा किया लेकिन मैं ऐसा करने में पीछे रह गया। दरअसल इससे पहले राज ने जब भी कुछ कहा उस वक्त तक मैं ब्लॉग जैसे हथियार के इस्तेमाल से वाकिफ नहीं था। अब जबकि ऐसा हो चुका है तो मेरा मन भी राज की अगड़म बगड़म पर अपने विचारों को पेश करने के लिए मचल रहा है। राज बार बार ये कहते आ रहे हैं कि उत्तर भारतीयों ने मराठी मानुषों के रोजगार पर कब्जा कर लिया है, उनकी नौकरियों को हथिया लिया है, जिससे उनके सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है। इतना ही नहीं उन्होंने उत्तर भारतीयों द्वारा अपने त्योहार मनाए जाने को भी गुंडा गर्दी करार दिया और ऐसा करने पर परिणाम भुगतने की चेतावनी दे डाली। दरअसल शिवसेना से नाता टूटने के बाद अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे राज को शायद इससे बेहतर कोई रास्ता नहीं सूझा और उन्होंने शिव सेना द्वारा दफन की जा चुकी उसी चिंगारी को हवा देना शुरू किया जिसमें न के बराबर आंच बची थी। इसी चिंगारी में उन्हें अपना राजनीतिक करियर परवाज भरता नजर आ रहा था क्योंकि मुबंई में बड़ी संख्या में उत्तर भारतीय बसे हैं। उन्हें टारगेट करना मतलब देश के दो ऐसे बड़े राज्यों पर निशाना साधना जहां से केंद्रीय सत्ता की दशा-दिशा तय होती है। राज ये बाखूबी जानते थे कि जब मुंबई में बसे इस वर्ग पर चोट की जाएगी तो वे केवल मुंबई की ही नहीं बल्कि भारतीय राजनीति की मुख्यधारा में शामिल हो जायेंगे। वे जानते हैं कि इस देश में सबसे आसान काम है किसी की भी भावना से खेलना सो उन्होंने उत्तर भारतीयों के माध्यम से मराठी मानुष की भावनाओं को भड़काया। उन्हें आपला मानुस और भैया में फर्क समझाना शुरू किया और उन्हें ये समझाने की कोशिश की कि भैया लोग उनके अस्तित्व के लिए खतरा बन रहे हैं। वरना साधनहीन, मेहनतकश उत्तर भारतीय ‘भैया’ लोग जो झुग्गियों में अत्यल्प साधनों के बीच रहते हैं, उनसे, राज ठाकरे जैसे नेताओं और आपले शहर में रहने वाले मराठियों का अस्तित्व किस तरह खतरे में पड़ गया ये मेरी ही नहीं मुंबई वासियों की समझ से भी परे था। राज को ये कौन समझाए कि जितने भी उत्तर भारतीय उनकी नजर में मराठियों के लिए खतरा हैं, जब वे मुबंई आए थे तो सपनों के इस शहर ने उनकी हर तरह से परीक्षा ली थी। उत्तर भारतीय जहां भी जमे हैं, अपने जीवट और मेहनत से जमे हैं। मुंबई ने उनके साथ कोई रियायत नहीं की। इतनी साधनहीन जिंदगी जीकर अगर उत्तर भारतीय किसी दूसरे प्रदेश में जाकर इतने महत्वपूर्ण हो जाते हैं कि किसी के अस्तित्व के लिए खतरा बन जाएं तो किसी को भी उनके अस्तित्व पर गर्व होना चाहिए। ऐसे में जो लोग इसे अपने देश, अपने शहर में रहते हुए अपनी अस्मिता को संकट में मानने लगे हैं, उनके जीवट पर शंका होनी लाजिमी है। राज ठाकरे को शुक्रगुजार होना चाहिए कि ये इस देश का लोकतंत्र ही है जिसने उन जैसे असहिष्णु, अपरिपक्व, असंवेदनशील व्यक्ति को भी राज करने का सपना देखने और उसे किसी भी रास्ते से पूरा करने की स्वच्छंदता दी है। जिसके चलते वो अब तक सार्वजनिक मंच से बकर-बकर कर पा रहे हैं वरना तो अब तक सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने और हिंसा का माहौल पैदा करने के चलते उन्हें नजरबंद कर दिया गया होता। जिस तरह से उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने पिछले दिनों महाराष्ट्र में उत्पात मचाया उसके बाद तो पूरे उत्तर भारत को उन पर हमला बोल देना चाहिए था लेकिन ये उत्तर भारतीयों की सहिष्णुता और संवेदनशीलता ही है जो उनका भरोसा अब तक कानून में कायम है। उन्हें लगता है कि राज को उनके किए की सजा कानून ज़रूर देगा। ये अलग बात है कि राज्य की सरकार भी इस मामले को राजनीतिक चश्मे से ही देख रही है और वोटबैंक के चक्कर में कड़ी कारर्वाई करने से बचती आ रही है। मैं अपने ब्लॉग के माध्यम से राज ठाकरे से ये कहना चाहूंगा कि अगर देश के विकास और भलाई के लिए कुछ नहीं कर सकते तो कम से कम देश को बांटने की राह पर भी न चलें। वैसे भी हमारे वतन में अमन चैन की राह में तमाम दुश्मन पहले से मौजूद हैं। अंत में किसी कवि ह्रदय से निकली कुछ पंक्तियां कहना चाहूंगा -

पराये हैं,
ये तो मालूम था हमको
जो अब कह ही दिया तूने
तो आया सुकूं दिल को

शराफत के उन सारे कहकहों में
शोर था इतना
मेरी आवाज़ ही पहचान
में न आ रही मुझको

बिखेरे क्यों कोई अब
प्यार की खुशबू फिज़ाओं में
शक की चादरों में दिखती
हर शय यहाँ सबको

बढ़ाओं आग नफ़रत की
जगह भी और है यारों
दिलों की भट्टियों में
सियासत को ज़रा सेको

सड़क पे आ के अक्सर
चुप्पियाँ दम तोड़ देती हैं
बस इतनी खता पे
पत्थर तो न फेंकों

post by-
anil kumar verma

1 टिप्पणी:

सुबोध ने कहा…

राज ठाकरे एक बीमार मानसिकता का नाम है..गालियां देकर इनकी राजनीति चलती है..

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