शुक्रवार, 23 मई 2008

मुश्किल में सेना

24 मई 2008
हमारी राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने 23 मई यानि शुक्रवार को उत्तरी कश्मीर के बारामुला इलाके का दौरा किया और सीमाओं पर तैनात सेना के जवानों से मुलाकात कर उन दिक्कतों के बारे में जाना जिनसे उन्हें दो-चार होना पड़ता है। इस दौरान राष्ट्रपति ने कहा कि भारतीय सेना के जवान किसी भी घटना से निपटने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं और इन लोगों के हाथों में देश की सीमाएं सुरक्षित हैं। मैं यहां ये कहना चाहूंगा कि सेना के जवानों के हाथों में तो हमारा देश और भविष्य सुरक्षित है लेकिन उन सैनिकों का क्या जो अपने परिवारों और उनके भविष्य की चिंता में दिन रात घुले जा रहे हैं और निदान न मिलने पर या तो सेना छोड़कर जा रहे हैं या फिर मौत को गले लगा रहे हैं। सैन्य पृष्ठभूमि से जुड़े विषयों पर बॉलीवुड खासा मेहरबान रहा है। कई फिल्में बनी और कई लेख भी लिखे गए लेकिन आजकल सेना की चर्चा कुछ दूसरी ही वजहों से होती है। दुश्मन देश की सेनाओं के साथ साथ उन्हें एक और दुश्मन तनाव से दिन रात लड़ना पड़ता है। लगातार घर परिवार से दूर रहने और प्रतिकूल परिस्थितियों में काम करने के चलते जवान तनाव और अवसाद से घिर जाते हैं। जब अवसाद का ये गुबार फूटता है तो सामने आता है किसी जवान द्वारा आत्महत्या या फिर अपने ही किसी सहयोगी या अधिकारी की हत्या का मामला।
ऐसी घटनाओं में मारे गए सैनिकों की संख्या को जोड़ें तो पाएँगे कि जितने जवान आतंकवादी हमलों में मारे गए उनसे लगभग दोगुने इन घटनाओं में मरे। मेरे पास ताजा आंकड़े तो मौजूद नहीं हैं लेकिन बात करें 2006 की तो इस साल में 72 सैनिक आतंकवादी हमले में मारे गए, वहीं 102 सैनिकों ने आत्महत्या की, 23 एक-दूसरे की गोली का निशाना बने और नौ ने अंधाधुंध गोलीबारी में अपनी जान गँवाई और इन सबके पीछे जो कारण रहा वो था तनाव। ऐसी घटनाओं से उबरने के लिए सेना ने सैनिकों और अधिकारियों के बीच औपचारिक और अनौपचारिक संवाद को मजबूत करने का काम किया है और अधिकारियों, मनोचिकित्सकों, और धार्मिक शिक्षकों का परामर्श भी लिया है लेकिन इसके अलावा एक और समस्या ने सेना से जवानों का मोहभंग करने का काम शुरू कर दिया है और वो है सेना के मुकाबले कार्पोरेट जगत द्वारा अपने कर्मचारियों को दी जाने वाली भारी भरकम तनख्वाह। प्रतिकूल परिस्थितियों के चलते उपजते तनाव और परिवार की चिंता ने जवानों के साथ सेना के अफसरों को भी कार्पोरेट जगत की ओर खींचना शुरू कर दिया। आलम ये है कि सेना व वायुसेना में करीब 12-12 हजार ऑफिसरों के पद रिक्त हैं और हजारों अधिकारियों ने नौकरी छोड़ने के आवेदन दे रखे हैं। कंपनियां भी डिफेंस के अनुशासित, दक्ष, कुशल व अच्छे प्रबंध जानने वाले अधिकारियों को चार से पांच गुना अधिक तनख्वाह देकर अपने साथ जोड़ने में दिलचस्पी दिखाती हैं। एक नजर डालते हैं सेना द्वारा दी जाने वाली तनख्वाह पर-

कैप्टन- बेसिक 8 हजार, मकान किराए भत्तों सहित 20 हजार
मेजर- बेसिक 12 हजार, भत्तों सहित 27 हजार
कर्नल- बेसिक 16 हजार, भत्तों सहित 35 हजार


जबकि कार्पोरेट जगत से जुड़ा कोई भी शख्स जब अपना कैरियर शुरू करता है तो उसका सैलरी पैकेज इससे कहीं बेहतर होता है। रक्षामंत्री एके एंटोनी भी मानते है कि बेहतर वेतन व सुविधाएं नहीं मिलने की वजह से अधिकारी कॉपोरेट जगत की तरफ आकर्षित हो रहे है। उन्होंने छठे वेतन आयोग में सशस्त्र सेनाओं के लिए बेहतर वेतन पैकेज होने के संकेत दिए थे लेकिन
सेना के अफसर और जवान तो छठे वेतन आयोग की सिफारिशों से नाराज दिखे ही सेना के रिटायर अफसर भी इस सिफारिश से नाखुश दिखाई दिए। अधिकारियों की मानें तो सेना के लिए वेतन निर्धारित करने के लिए गठित वेतन आयोग में सेना को शामिल नहीं किया गया। ऐसे में किसी भी तरह की उम्मीद करना बेकार है। एयरकंडिशनरों में बैठ कर सेना की जमीनी हकीकत नहीं समझी जा सकती। आजादी के पहले से सेना सरहदों की रक्षा कर रही है। इसके बावजूद हर वेतन आयोग में उसकी अनदेखी होती रही है। इनका कहना है कि कॉमन पे स्केल सभी जवानों के लिए लागू होना चाहिए। वेतन आयोग ने1 जनवरी 2006 से पहले के भर्ती पीबीओआर के लिए इसे लागू नहीं किया है। वेतन आयोग ने जवानों के लिए एशोर्ड करिअर प्रोग्रेशन (एसीपी) 10 और 20 साल निर्धारित की है, जबकि सिपाही 17 साल की सर्विस के बाद रिटायर हो जाता है। रैंक पे को ग्रेड पे में शामिल नहीं किया गया, इससे अफसरों के लाभ ओर कम हो जाएंगे। मिल्ट्री सर्विस पे (एमएसपी) को वेतन में शामिल नहीं किया गया। ये सब कुछ लिखने का मेरा मकसद इतना ही है कि राष्ट्रपति ने जवानों की उन दिक्कतों को तो समझा जिनसे वे सीमा पर दो चार होते हैं लेकिन उन्हें और भारत सरकार को उनके बेहतर पैकेज की तलाश कोभी समझना होगा और कुछ ऐसा करना होगा जिससे सेना में उनके घटते रुझान को बढ़ाया जा सके।

post by-
anil kumar verma

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