शुक्रवार, 2 जनवरी 2009

आओ ज्ञान बढ़ाएं



आर्थिक मामलों में मेरा ज्ञान बहुत कमजोर है। इस क्षेत्र से जुड़ी तमाम टर्मिनोलॉजी मेरी समझ से बाहर होती हैं। आज अखबारों में खबर पढ़ी कि आरबीआई ने सीआरआर और रेपो दर में कटौती कर दी। अब मुझे समझ नहीं आया कि ये सीआरआर और रेपो दर क्या बला है। दैनिक भाष्कर के नेट संस्करण पर इस बला से पाला पड़ा तो सोचा क्यों ना अपने ब्लॉग पर इस बला को डाल दिया जाए। हो सकता है हमारे कुछ और भाई बंधु इस बला से परिचित ना हों।

रेपो रेट :

बैंकों को अपने दैनिक कामकाज के लिए प्राय: ऐसी बड़ी रकम की जरूरत होती है जिनकी मियाद एक दिन से ज्यादा नहीं होती। इसके लिए बैंक जो विकल्प अपनाते हैं, उनमें सबसे सामान्य है केंद्रीय बैंक (भारत में रिजर्व बैंक) से रात भर के लिए (ओवरनाइट) कर्ज लेना। इस कर्ज पर रिजर्व बैंक को उन्हें जो ब्याज देना पड़ता है, उसे ही रेपो दर कहते हैं।

रेपो रेट कम होने से बैंकों के लिए रिजर्व बैंक से कर्ज लेना सस्ता हो जाएगा और इसलिए बैंक ब्याज दरों में कमी करेंगे, ताकि ज्यादा से ज्यादा रकम कर्ज के तौर पर दी जा सके। रेपो दर में बढ़ोतरी का सीधा मतलब यह होता है कि बैंकों के लिए रिजर्व बैंक से रात भर के लिए कर्ज लेना महंगा हो जाएगा। साफ है कि बैंक दूसरों को कर्ज देने के लिए जो ब्याज दर तय करते हैं, वह भी उन्हें बढ़ाना होगा।

रिवर्स रेपो दर:
नाम के ही मुताबिक रिवर्स रेपो दर ऊपर बताए गए रेपो दर से उलटा होता है। बैंकों के पास दिन भर के कामकाज के बाद बहुत बार एक बड़ी रकम शेष बच जाती है। बैंक वह रकम अपने पास रखने के बजाय रिजर्व बैंक में रख सकते हैं, जिस पर उन्हें रिजर्व बैंक से ब्याज भी मिलता है। जिस दर पर यह ब्याज मिलता है, उसे रिवर्स रेपो दर कहते हैं।

अगर रिजर्व बैंक को लगता है कि बाजार में बहुत ज्यादा नकदी है, तो वह रिवर्स रेपो दर में बढ़ोतरी कर देता है, जिससे बैंक ज्यादा ब्याज कमाने के लिए अपना धन रिजर्व बैंक के पास रखने को प्रोत्साहित होते हैं और इस तरह उनके पास बाजार में छोड़ने के लिए कम धन बचता है।

कैश रिजर्व रेशियो (सीआरआर):

सभी बैंकों के लिए जरूरी होता है कि वह अपने कुल कैश रिजर्व का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास जमा रखें। इसे नकद आरक्षी अनुपात कहते हैं। ऐसा इसलिए होता है कि अगर किसी भी मौके पर एक साथ बहुत बड़ी संख्या में जमाकर्ता अपना पैसा निकालने आ जाएं तो बैंक डिफॉल्ट न कर सके। आरबीआई जब ब्याज दरों में बदलाव किए बिना जब बाजार से तरलता कम करना चाहता है, तो वह सीआरआर बढ़ा देता है।

उदाहरण के लिए: मंगलवार को मौद्रिक नीति की सालाना समीक्षा के बाद सीआरआर 8.25 फीसदी हो गया है, यानी बैंकों को अब अपने 100 रुपए के कैश रिजर्व पर 8.25 रुपए का रिजर्व रखना होगा। इससे बैंकों के पास बाजार में कर्ज देने के लिए कम रकम बचेगी, लेकिन रेपो और रिवर्स रेपो दरों में कोई बदलाव नहीं किए जाने से कॉस्ट ऑफ फंड पर कोई असर नहीं पड़ेगा। रेपो और रिवर्स रेपो दरें रिजर्व बैंक के हाथ में नकदी की सप्लाई को तुरंत प्रभावित करने वाले हथियार माने जाते हैं, जबकि सीआरआर से नकदी की सप्लाई पर तुलनात्मक तौर पर ज्यादा समय में असर पड़ता है।

साभार दैनिक भाष्कर

1 टिप्पणी:

Wanderer ने कहा…

बेहतरीन व्याख्या है. मेरे कई प्रश्नों का उत्तर दे दिया, उत्तम.

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