बुधवार, 14 जनवरी 2009

पिता के लिए खुदकुशी



14 जनवरी 09

आपके मुताबिक एक बेटा इस कलियुग में अपने पिता के लिए क्या कर सकता है। शायद आप कहें कि उसे दुनिया की सारी खुशियां दे सकता है....अपने कामों से समाज में उसका मान सम्मान बढ़ा सकता है...लेकिन क्या कोई बेटा अपनी जिन्दगी खत्म कर अपने पिता को नई जिन्दगी दे सकता है। आज के दौर में जब रिश्ते निजी स्वार्थ के तराजू पर तौले जा रहे हैं तो ऐसे में इस तरह की बात आपको बेमानी लग सकती है लेकिन जनाब ये कलयुग है और इस दौर में कुछ भी हो सकता है। इस दौर में भी श्रवण कुमार पैदा हो सकते हैं। इस बात का जीता जागता सबूत है सतना का रहने वाला संतोष...जिसने अपने पिता को जिन्दगी देने के लिए खुदकुशी कर ली। आप सोच रहे होंगे भला किसी बेटे का ये कदम उसके पिता को जिन्दगी कैसे दे सकता है। दरअसल ये कहानी है अभावों और गरीबी के बीच जिन्दगी की जद्दोजहद करते एक साधारण परिवार की। एक ऐसा परिवार जिसके सपने परवान चढ़ने से पहले ही दम तोड़ देते हैं। संतोष के सपने और उम्मीदें भी अभावों की इसी भठ्ठी में झुलस कर दम तोड़ रही थीं। इस पर पिता की बीमारी और भारी गुजर रही थी। वो मौत की दहलीज पर खड़े थे। उनकी दोनों किडनियां खराब हो चुकी थीं। दर्द बरदाश्त की हद से बाहर जा चुका था। ग़रीबी इलाज की राह में रोड़ा बनी हुई थी। संतोष अपने पिता को तिल तिल कर मरते देख रहा था। दिन बीतने के साथ उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। पिता का दर्द उससे बरदाश्त नहीं हो रहा था। हारकर संतोष ने लिया एक फैसला...एक ऐसा फैसला जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। संतोष ने आत्महत्या कर ली और अपने पीछे छोड़ गया एक विनती...विनती अपनी दोनों किडनियां अपने पिता को देने की...संतोष ने अपने पिता को जीवन तो दे दिया लेकिन उसके इस फैसले ने एक मां को हमेशा के लिए दुखों के सागर में डुबो दिया। संतोष अपने घर का इकलौता चिराग था। उसके चले जाने से उसके घऱ में हमेशा के लिए अंधेरा छा गया है...ऐसा अंधेरा जो शायद कभी न मिट सके। देखने में ये एक आम घटना है लेकिन क्या आपके मन को झकझोरती नहीं। क्या आपके दिल में इस घटना से हूक सी नहीं उठती। लखपतियों और करोड़पतियों की दुनिया से इतर क्या एक आम आदमी की ये पीड़ादायी दुनिया कसमसाहट नहीं पैदा करती।

3 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

bilkul sahi bat hai.....

संगीता पुरी ने कहा…

लखपतियों और करोड़पतियों की दुनिया से इतर क्या एक आम आदमी की ये पीड़ादायी दुनिया कसमसाहट नहीं पैदा करती......कैसे नहीं करेगी ?

Dev ने कहा…

आपको लोहडी और मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ....

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