सोमवार, 12 जनवरी 2009

भारतीय टेनिस की नई उम्मीद



12 जनवरी 09
लिएंडर पेस और महेश भूपति की ढलती उम्र के सथ लॉन टेनिस में भारत की उम्मीदों का सूरज भी ढलता दिखाई दे रहा था। इस खेल में भारत की झोली में जो कुछ भी अब तक आया उसका सेहरा बांधने के लिए चंद नाम ही जुबान पर आते हैं। इस खेल में भारत के हिस्से ज्यादा कुछ नहीं है। जो है उसी पर हमें गर्व करना होगा। पुरुष खिलाड़ियों को छोड़ महिला खिलाड़ियों की भी बात करें तो सिलसिला सानिया मिर्जा से आगे बढ़ता नहीं दिखता। मेरे प्रिय खेलों में से एक है लॉन टेनिस, हालांकि मुझे इस खेल के तकनीकी शब्द समझ नहीं आते लेकिन फिर भी कोर्ट पर जब खिलाड़ी जेट की रफ्तार से बॉल पर प्रहार करते हैं तो शरीर उत्तेजना से भर जाता है। लिहाजा इस खेल में भारत की हिस्सेदारी देख मुझे काफी निराशा होती है। निराशा के इस अंधकार में उम्मीद की किरण बनकर उभरा है एक नया सितारा, सोमदेव देववर्मन। एक ताजा हवा के झोंके की तरह सोमदेव दुनिया के साथ साथ मेरे ज़ेहन पर भी छा गए। एक ऐसा नाम, जिससे मैं समझता हूं भारत में ज्यादातर लोग अंजान थे अचानक धूमकेतु की तरह चमका है। चेन्नई ओपन एटीपी टेनिस टूर्नामेंट में जिस खेल का सोमदेव ने नजारा करवाया उससे हिन्दुस्तान के लॉन टेनिस खेल प्रेमियों को काफी राहत मिली होगी। दुनिया के पूर्व नंबर एक और दो बार के चैंपियन खिलाड़ी कार्लोस मोया और दुनिया के 25वें नंबर के खिलाड़ी इवो कार्लोविच को हराकर सोमदेव ने ये दिखा दिया है कि इस खेल में भारत की कहानी अभी खत्म नहीं हुई है बल्कि पिक्चर अभी बाकी है। सोमदेव को ये पहचान यूं ही हासिल नहीं हुई बल्कि इस सफर के पीछे है उनकी कड़ी मेहनत और कुछ कर दिखाने की लगन और जज्बा। अमेरिका की वर्जीनिया यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करने वाले सोमदेव ने इसी देश में टेनिस का ककहरा भी सीखा। अमेरिका की राष्ट्रीय कॉलेज चेंपियनशिप में 2007 और 08 के चैंपियन सोमदेव ने अपने प्रदर्शन के दम पर भारतीय टेनिस का झंडा बुलंद रखने के संकेत दे दिए हैं। हालांकि विश्व टेनिस जगत में उनके नाम की चर्चा तभी होने लगी थी जब उन्होंने एनसीएए चैंपियनशिप में 2006-07 में ही अपने से बेहतर रैंकिंग वाले 33 खिलाड़ियों को धूल चटाई थी। जाइंट किलर का तमगा हासिल करने वाले इस खिलाड़ी की लांग वॉली, ताकतवर सर्विस और बेसलाइन पर मजबूत खेल ने कार्लोस मोया जैसे दिग्गज खिलाड़ी की हवा निकाल दी और वो ये कहने के लिए मजबूर हो गए कि सोमदेव चढ़ता सूरज हैं जिस पर भारत नाज कर सकता है। पहले दुनिया के 202वें नंबर और अब 154 वें नंबर के खिलाड़ी सोमदेव पहले भी शीर्ष 100 में शामिल कई खिलाडि़यों के खिलाफ अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके है। चेन्नई के रहने वाले सोमदेव ने 2007 में न्यूयार्क में कैनेडी फंडिंग इंविटेशनल में रोबर्ट केंड्रिक [99] और जस्टिन गिमेलस्टोब को हराया। वह फाइनल में दुनिया के 69वें नंबर के मिशेल रसेल से हार गए लेकिन अगले साल उन्होंने सैम कैरी [44] और डुडी सेला [76] जैसे चोटी के खिलाडि़यों को हराकर खिताब अपने नाम किया। अपने छोटे से पेशेवर कैरियर में आईटीएफ सर्किट में पांच एकल और छह युगल खिताब जीतने वाले सोमदेव शीर्ष सौ में शामिल बाबी रेनाल्ड्स [90], जेवियर मैलिसी फिलिपो वोलांडारी [93] जैसे खिलाडि़यों को भी धूल चटा चुके हैं। 13 फरवरी 1985 को गुवाहाटी में जन्मे सोमदेव केवल 23 साल की उम्र में दुनिया के नामी खिलाड़ियों को अपने खेल का मुरीद बना चुके हैं। हम उम्मीद कर सकते हैं कि आने वाले दिनों में ये खिलाड़ी अपनी कामयाबी की चकाचौंध में भारतीय टेनिस को एक नया आयाम देगा।

कोई टिप्पणी नहीं:

http://