08 जनवरी 09
जहां फौज की कठपुतली है हुकूमत
जहां नहीं पनप पाती जम्हूरियत
जहां हालात दिनों दिन हो रहे हैं बदतर
जहां फिरकापरस्तों का है बोलबाला
जहां परेशान है आवाम
कुछ ऐसी ही तस्वीर है हमारे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की। पाकिस्तान में ना तो राजशाही रही...ना ही लोकशाही....जहां सदर हमेशा फौज के दबाव में रहता है। कबीलाई तहजीब पाकिस्तान में हावी होती रही...जुल्फिकार अली भुट्टो की फांसी...जिया उल हक का हादसा...और अभी हाल में हुआ बेनजीर भुट्टो का कत्ल साबित करता है कि पाकिस्तानी हुकूमत शरपसंदों के इशारों की मोहताज है। कमजोर हुकूमत की वजह से ही पाकिस्तान की फौज ने हुकूमत की असल ताकत अपने हाथ में ले ली और उसके पीछे से वहां की खुफिया संस्था आईएसआई अपना खेल खेलने लगी। आईएसआई ने खुद को महफूज रखने के लिए हिन्दुस्तान का हौव्वा अपनी आवाम के साथ साथ पूरी दुनिया के सामने खड़ा कर दिया। दरअसल फौज की अहमियत के लिए ज़रूरी है कि जंग का माहौल बना रहे और पाकिस्तानी फौज ने तीन तीन जंगों के अलावा करगिल भारत पर थोपकर अपने इरादों को अमली जामा पहनाए रखा। पाकिस्तानी फौज के इन्ही इरादों को पूरा कराने में आतंकी प्यादे अहम रोल निभाने लगे। हमारे हिन्दुस्तान पर हो रहे आतंकी हमले और हर हमले की जांच में फौजी तामील का सामने आना इस बात को साबित भी करता है। दरअसल पाकिस्तान की इन गैरवाजिब हरकतों की वजह तलाश करें और उसकी तह में जाएं तो साफ मालूम होता है कि नफरत की बुनियाद पर खड़ी पाकिस्तान की इमारत अभी तक अमन की खिड़कियों को नहीं खोल पाई है। शायद इसीलिए पाकिस्तान को बनाने वाले कायदे आज़म जिन्ना भी इसको बनाकर पछताए थे। मरते वक्त जिन्ना ने अपने आखिरी बयान में इस बात को कबूल भी किया था। पाकिस्तान की तामीर से ही यहां सत्ता की लूट का खेल खेला जाने लगा। देश की कमान किसी एक के हाथ में नहीं रही...कई पॉवर सेंटर हमेशा पैदा हाते रहे...लिहाजा जम्हूरियत बेमौत मारी गई। सत्ता की इसी खींचतान ने पाकिस्तान को अस्थिर कर दिया। नतीजतन यहां जुर्म की जहनियत वालों के लिए माकूल माहौल तैयार हो गया। पाकिस्तानी हुक्मरानों ने जो खेल खुद को महफूज रखने के लिए शुरू किया था आज उसका खामियाजा वहां की आवाम को भुगतना पड़ रहा है। आज पाकिस्तान के अंदर और बाहर दोनों तरफ बदअमनी का माहौल बन चुका है।
दूसरों को दे रहे थे जो खुदा का वास्ता
अख्तियार करने लगे हैं वो सितम का रास्ता
26 नवंबर को हुए मुंबई पर आतंकी हमले की बात करें तो इसके सारे सुबूत साफ इशारा कर रहे हैं कि आतंक के जिन आकाओं के इशारे पर मौत का ये खेल खेला गया उन्हें पाकिस्तान की शह हासिल है। वे उसी की धरती पर रहकर अपने नापाक मंसूबों को अंजाम दे रहे हैं। हिन्दुस्तान ने अंतर्राष्ट्रीय पटल पर इस बात के सुबूत रखकर इसे साबित भी कर दिया। भारत जंग नहीं चाहता। अमन और शांति चाहता है लेकिन ताली एक हाथ से नहीं बजती। अगर हमारा पड़ोसी आतंक की इस पौध को पनपने से रोकने के बजाए उसे सींचने का काम करेगा तो अपनी सुरक्षा का हक सबको है। सुबूत दिए जाने के बावजूद आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई के बजाए लगातार उल्टे सीधे बयान देकर वो अपनी छीछालेदर खुद कर रहा है। मेरी तो अपील है सरकार से कि बहुत दे लिए सुबूत और बहुत रख लिया धैर्य अब सब्र के इस पैमाने को छलका ही देना चाहिए क्योंकि लातों के भूत बातों से नहीं मानते।
बुधवार, 7 जनवरी 2009
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