मंगलवार, 6 जनवरी 2009

जिन्दा है छुआछूत



06 जनवरी 09

मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले का सुनवाहा गांव आजकल सुर्खियों में है। वजह है यहां के तीस दलित परिवारों द्वारा प्रशासन से धर्म परिवर्तन की इजाजत मांगना। इस मामले में चौंकाने वाली बात ये है कि ऐसा ये लोग अपनी मर्जी से नहीं कर रहे हैं बल्कि इसके पीछे है सालों से किया जा रहा उनका उत्पीड़न। उत्पीड़न करने वाले हैं सुनवाहा गांव का ही दबंग लोधी समाज। लोधी समाज इन दलित परिवारों को अछूत मानता है। उसके मुताबिक ये लोग मंदिर में जाकर पूजा नहीं कर सकते। उनके सामने सिर उंचा करके चल नहीं सकते। आप ये जानकर हैरान रह जायेंगे कि इस समुदाय के एक युवक को लोधी समाज के दबंग लोगों ने सिर्फ इसलिए जानवरों की तरह पीट दिया क्योंकि वो अपनी शादी में घोड़ी पर बैठकर उनके घर के आगे से निकल गया था। पीड़ित पक्ष ने पुलिस प्रशासन से गुहार लगाई। युवक फिर घोड़ी चढ़ा और कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच शादी के लिए रवाना हुआ। शादी तो हो गई लेकिन इस समुदाय ने लोधी समाज के लोगों की जिन्दगी भर की दुश्मनी मोल ले ली। नतीजा अब लोधी समाज ने इन दलित परिवारों को जान से मारने की धमकी दे डाली है। सुनवाहा गांव का पूरा दलित समुदाय अब जान बचाने के लिए गांव छोड़ चुका है। यही नहीं इन लोगों ने जिले की बक्शवाहा तहसील के सामने पिछले एक सप्ताह से इसलिए डेरा डाल रखा है कि प्रशासन से उन्हें अपना धर्म बदलने की इजाजत मिल जाए। प्रशासन ने बीते एक हफ्ते में इन डरे सहमें लोगों को ना तो सुरक्षा का कोई भरोसा दिलाया है और ना ही समाज में बराबरी से जीने का हक दिलाने का कोई वादा किया है। छुआछूत के बारे में गाँधी जी ने कहा था, "अस्पृश्यता हिन्दू धर्म का अंग नहीं है, बल्कि उसमें घुसी हुई सड़न है, वहम है, पाप है, और उसको दूर करना एक - एक हिन्दू का धर्म है, उसका परम कर्तव्य है लेकिन बापू के ये विचार इस देश में प्रासंगिक नहीं लगते। छुआछूत से निपटने के लिए हमारे देश में कानून भी बने हैं लेकिन इन कानूनों का पालन कराने की जिन पर जिम्मेदारी है वही लोग पीड़ितों की ओर से आंखें मूंदे बैठे हैं। सुनवाहा गांव के दबंग कभी भी कुछ भी कर गुजरने की हुंकार भर रहे हैं और हमारा कानून भी कुछ हो जाने का शायद इंतजार कर रहा है। मैं इस मामले को लेकर बहुत ज्यादा गहराई में नहीं जाना चाहता क्योंकि हम और आप सभी जानते हैं कि छुआछूत की भावना भी आज अपराध है आदि आदि। समझना और सोचना ये है कि देश में जहां कहीं भी ये भावना पल बढ़ रही है उस पर विराम कैसे लगाया जा सकता है।

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