गुरुवार, 2 अक्तूबर 2008
जापान की मोहिनी
03 अक्टूबर 2008
हिन्दुस्तान यानि विभिन्न धर्मों , संस्कृतियों और कलाओं का संगम। एक ऐसा देश जो हमेशा से दूसरे देश के लोगों के लिए आकर्षण का केन्द्र रहा है। इस देश ने लोगों को काफी कुछ दिया है और ये काफी कुछ हासिल करने वालों में से ही एक हैं जापान की हिरोमा मारूहाशी। पारंपरिक नृत्य की शौकीन हिरोमा को ऐसे नृत्य पसंद थे, जो भावों को ज्यादा अभिव्यक्त करते हों। उन्होंने समकालीन जापानी नृत्यों से शुरुआत की लेकिन उनकी तड़प उन्हें शास्त्रीय नृत्यों की ओर ले गई। नृत्य में भावों की तलाश उन्हें भारत खींच लाई। बारह साल पहले उन्होंने नृत्य सीखने के लिए केरल के विख्यात कलामंडलम में दाखिला लिया था। 1930 में स्थापित कलामंडलम देश ही नहीं, दुनिया भर में कला के प्रमुख केंद्र के रूप में जाना जाता है। वो दिन था और आज का दिन है हिरोमी जापान की अकेली मोहिनीअट्टम नर्तकी बन चुकी है। यह नृत्य उनमें इतना रच-बस गया है कि उनका नाम ही मोहिनी हो गया है। हिरोमी 40 साल की हैं। हिरोमी 1989 से 1992 के दौरान इंडोनेशियाई बाली डांस कंपनी की कलाकार थीं। फिर 1992 से 95 तक वह जापान की बुटो मॉडर्न डांस कंपनी-बिवाकी में शामिल हो गई। उन्होंने 1994 से भरतनाट्यम सीखना शुरू किया। साथ ही साथ वह योग और जापानी मार्शल आर्ट केंपो भी सीखती रहीं। 1996 में वह भारत आई और कलामंडलम लीलम्मा से मोहिनीअंट्टम और मार्गी सथी से नंगियारकुत्थू सीखने लगीं। कलामंडलम से उन्होंने मोहिनीअंट्टम की विधिवत शिक्षा ली। सीखने की लालसा यहीं कम नहीं हुई और वह तिरुवनंतपुरम के सीवीएन कलारी संगम से कलारीप्पयाटू [केरल की पारंपरिक मार्शल आर्ट- युद्ध कला] सीखने लगीं। कुडीयट्टम व कत्थकली भी उन्होंने सीख रखा है। उसके बाद भी उनका भारत आना-जाना लगातार बना रहा। अब वह टोक्यो में एक कल्चरल सेंटर के सौजन्य से मोहिनीअंट्टम सिखा रही हैं। अब तक वह चालीस जापानी छात्राओं को यह दक्षिण भारतीय नृत्य सिखा चुकी हैं। हिरोमी भारत व जापान में मोहिनीअंट्टम के कई प्रदर्शन कर चुकी हैं। भारतीय नृत्य के बारे में उनका विशद ज्ञान अब उन्हें नई चीजों की तरफ खींच रहा है। वह चित्ररेखा नाम से एक ऐसी नृत्य नाटिका पर काम कर रही हैं जिसमें मोहिनीअंट्टम के अलावा भरतनाट्यम, कलारीप्पयाटू और योग भी शामिल होगा। खास बात यह है कि जापान में भारतीयता की बढ़ती धूम में ही नृत्यों के प्रति यह रुचि भी शामिल है। कई जापानी भरतनाट्यम, ओडिसी, कत्थक के अलावा पारंपरिक भारतीय वाद्यों को सीखने में भी रुचि दिखा रहे हैं।
साभार जागरण
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