सोमवार, 27 अक्तूबर 2008

राहुल को क्यों मारा ?



28 अक्टूबर 2008
सोमवार की सुबह मुंबई में पुलिस ने बिहार के एक युवक को गोलियों से उड़ा दिया। वजह थी राहुल राज नाम के इस युवक द्वारा बेस्ट की एक बस को हाईजैक करना और एमएनएस के मुखिया राज ठाकरे को अपशब्द कहते हुए उन्हें जान से मारने की धमकी देना। पटना निवासी ये युवक बेरोजगार था और पिता के कहने पर मुंबई रोजगार की तलाश में गया था। मन में परिवार के सपनों को पूरा करने का अरमान था, पिता की ख्वाहिशों को परवान चढ़ाने का जुनून था लेकिन ऐसा कुछ भी न हो सका। मुंबई में उत्तर भारतीयो पर हो रहे अत्याचार ने राहुल को उद्वेलित कर दिया। मन की पीड़ा बरदाश्त नहीं हुई और ना चाहते हुए भी राहुल से गलती हो गई। दिल का गुबार जब फूटा तो राहुल के हाथ में पिस्तौल आ गई। उसका इरादा किसी को नुकसान पहुंचाने का नहीं था और ना ही वो कानून अपने हाथ में लेना चाहता था। बावजूद इसके राहुल से गलती हो गई लेकिन उसे इस गलती के लिए उकसाने वाला कौन था। ये जानना बेहद ज़रूरी है। क्योंकि कानून की नजर में ऐसा करने वाला भी बराबर को दोषी है और ऐसा करने वाला कोई और नहीं बल्कि एमएनएस के मुखिया राज ठाकरे हैं। अगर उन्होंने क्षेत्र और भाषा के नाम पर लोगों के दिलों में दरार न डाली होती तो आज राहुल अपने परिजनों के बीच होता। इस घटना के बाद महाराष्ट्र के गृहमंत्री आर.आर.पाटील ने पुलिस की कार्रवाई को सही ठहराते हुए कहा है कि राज्य में अगर कोई इस तरह से गोलीबारी करेगा तो पुलिस उसे उसी की शैली में जवाब देगी लेकिन मैं पूछना चाहता हूं पाटील साहब से कि जब राज ठाकरे के गुंडे मुंबई में उत्तर भारतीयों के साथ मारपीट करते हैं, उनकी दुकानें तोड़ते हैं तो पुलिस क्या करती रहती है। क्यों उन्हें उनकी शैली में जवाब नहीं दिया जाता है। मैं पूछना चाहता हूं पाटिल साहब से कि जब राज ठाकरे खुले आम महाराष्ट्र में कानून को चुनौती देते हैं तो सरकार क्या करती है। क्यों केवल कड़ी कार्रवाई का दम भरा जाता है। बेस्ट बस कांड के बाद महाराष्ट्र सरकार ने राज ठाकरे को फिर जेड श्रेणी की सुरक्षा उपलब्ध कराने का फैसला किया है। मुंबई में 19 अक्टूबर को एमएनएस कार्यकर्ताओं के हुड़दंग के बाद राज्य सरकार ने राज की सुरक्षा घटाकर वाय श्रेणी की कर दी थी। मैं पूछना चाहता हूं पाटील साहब से कि राज ठाकरे को तो वो जेड श्रेणी की सुरक्षा दे रहे हैं लेकिन उन हजारों बेकसूरों की सुरक्षा का क्या, जो अपने ही देश में पराएपन की पीड़ा झेल रहे हैं। भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था को चुनौती देकर एक शख्स हीरो बन रहा है और हमारे नीति नियंता बैठे बैठे तमाशा देख रहे हैं। महाराष्ट्र के विकास के नाम पर अपनी राजनीति चमकाने वाले इस शख्स का हमारे कानून के पास कोई इलाज है या नहीं। ये कहते हैं कि महाराष्ट्र में नौकरियों पर स्थानीय लोगों का हक़ है। चलिए मान लिया लेकिन इस हक को हासिल करने के जो रास्ते हैं उन पर चलिए और कम से कम वो रास्ता हिंसा का तो नहीं ही है। आपने प्रतिभा है काबिलियत है तो देश के किसी भी कोने में जाकर आप नौकरी हासिल कर सकते हैं। ऐसा नहीं है कि मराठी भाई बंधु केवल महाराष्ट्र में रहते हैं वो भी देश के दूसरे कोनों में बसे हैं लेकिन उन जगहों पर तो ऐसा कुछ भी नहीं है। फिर क्यों महाराष्ट्र को एक ऐसा राह पर धकेलने की कोशिश हो रही है जहां उसका विना। तय है। मुंबई केवल मराठियों ने नहीं बसाई है। उसे देश के हर कोने से आए हर धर्म हर मजहब के एक एक व्यक्ति ने बनाय़ा है और उनके बिना मुंबई के अस्तित्ल की कल्पना करना ही बेकार है। ये राज ठाकरे की विद्रूप मानसिकता का ही नतीजा है कि आज बिहार हिंसा की आग में जल रहा है। मैं अपने ब्लॉग के माध्यम से महाराष्ट्र सरकार से ये पूछना चाहता हूं कि राज ठाकरे पर लगाम लगाने के लिए वो क्या कदम उठा रही है क्योंकि उनकी सुरक्षा के नाम पर राहुल जैसे नौजवानों की कुर्बानी नहीं दी जा सकती है। दूसरा सवाल मुंबई पुलिस से है मेरा कि आखिर उन्होंने राहुल को जिन्दा पकड़ने की कोशिश क्यों नहीं की। राहुल की गोलियां खत्म होने के बाद उसे घेरकर गिरफ्तार किया जा सकता था और उसकी हरकत का कानूनन जो भी दण्ड होता उसे दिया जाता लेकिन एक आतंकवादी की तरह उसे घेरकर गोलियों से छलनी कर देना कहां का न्याय है।

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