रविवार, 5 अक्तूबर 2008

दूर होती गौरैया


05 अक्टूबर 2008

खिड़की पै जो गौरैया चहचहाती है
जीवन के गान अपने वह सुनाती है।
जाने कहाँ-कहाँ दिन में जा-जा कर
प्राणों की लहर पंखों में भर लाती है।


त्रिलोचन जी की इस कविता के मुताबिक नन्हीं गौरैया भीषणतम जीवन संघर्षों में भी गुनगुनाते हुए गतिमान रहने की सीख देती है लेकिन इसी गौरैया का खुद का जीवन अब संकट में है। काम वासना के बाज़ार में इस नन्हीं चिड़िया की उंची बोली लग रही है। जिससे अब ये बेज़ुबान और निरीह पक्षी शिकारियों का शिकार हो रही है। मैनें पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी के एक लेख में पढ़ा कि -
गिद्ध की तरह गौरैया भी अब लुप्त होने की कगार पर है। इसका एक कारण कीटनाशक हो सकता है और दूसरा उनका शहरी पक्षी होना, जिन्हें अब संवेदनशील शहर के नागिरिकों द्वारा भोजन नहीं दिया जाता है लेकिन एक कारण यह भी है कि अब गौरैयों को पकड़कर कामोत्तेजक के रूप में बेचा जाता है। जी हां गौरैया अब मुंबई के मशहूर लेकिन अवैध क्राफर्ड बाजार में बिकने वाले पशु पक्षियों में शामिल हो गई है। ये बाजार पशु पक्षियों के अवैध कारोबार का सबसे बड़ा केंद्र है। मेनका जी के लेख के मुताबिक इस बाजार में हर दिन औसतन करीब 50000 पक्षी आते हैं और प्लांट एंड ऐनीमल वेलफेयर सोसायटी के स्वयंसेवकों ने पिछले सप्ताह बाज़ार के एक रूटीन दौरे के दौरान गौरैया के व्यापार को देखा और पाया कि हज़ारों की संख्या में उन्हें बेचा और खरीदा जा रहा है। पशु कल्याण समूहों के मुताबिक इस पक्षी की मांग में हाल ही में काफी वृद्धि हुई है। इसका कारण है उन नीम हकीमों का वो दावा, जिसके मुताबिक इसके मांस से उन्होने एक ऐसी दवा तैयार की है जो कामोत्तेजक का काम करती है। जबकि हकीकत में ऐसा कुछ भी नहीं है। इसके सेवन से कुछ मात्रा में कैल्शियम और प्रोटीन मिलता है जिसे आप पौष्टिक भोजन के ज़रिए कहीं ज्यादा मात्रा में पा सकते हैं।
इस लेख ने अंतर्मन को झकझोर दिया। आंखों के सामने घर के आंगन में फुदकती, दाना चुगती वो मासूम गौरैया घूम गई जिसे देखकर बरबस ही चेहरे पर मुस्कान आ जाती है। कभी पानी में इठला इठला कर नहाती गौरैया, कभी अपनी छोटी सी चोंच से अपने पंखों को खुजलाती गौरैया तो कभी अपने बच्चों के मुंह में दाना डालती गौरैया, ऐसी ही न जाने कितनी छवियां जो बचपन से देखता आ रहा था मानस पटल पर तैर गईं। हालांकि ये छवियां अब गुजरे ज़माने की बात हो चली हैं। अब ना तो गौरैया दिखती है और ना ही उसके घोंसले। क्या हम इस गौरैया को अकेले नहीं छोड़ सकते। क्या हम इसे बचाने के लिए कुछ नहीं कर सकते। आखिर कब तक हम निरीह और बेजुबान प्राणियों को अपने निजी स्वार्थों की बलि चढ़ाते रहेंगे।

2 टिप्‍पणियां:

रंजन राजन ने कहा…

क्या बात है...आपने झकझोरने वाले सवाल उठाए हैं। आखिर कब तक हम निरीह और बेजुबान प्राणियों को अपने निजी स्वार्थों की बलि चढ़ाते रहेंगे?
नवरात्रि की कोटि-कोटि शुभकामनाएं। मां दुर्गा आपकी तमाम मनोकामनाएं पूरी करें।... यूं ही लिखते रहें और दूसरों को भी अपनी प्रतिक्रियाओं से प्रोत्साहित करते रहें, सदियों तक...

Udan Tashtari ने कहा…

वाकई, बहुत प्रभावी आलेख. गौरेय्या अब एक विलुप्त होती प्रजाति है-जरुरी है इस ओर ध्यान दिया जाये.

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