शनिवार, 11 अक्तूबर 2008

कलयुग में भी अग्निपरीक्षा


11 अक्टूबर 2008
राजस्थान के सिरोही जिले से बीते दिनों एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई। यहां पंचायत ने एक महिला की अग्निपरीक्षा करवाई। गांव में हो रही मौतों के लिए इस महिला को जिम्मेदार बताते हुए पहले उसे डायन करार दिया गया और फिर उसके हाथ खौलते हुए तेल में डालकर उसे चांदी के सिक्के निकालने को कहा गया। कहा गया कि अगर उसके हाथ नहीं जले तो वो निर्दोष मान ली जाएगी। महिला ने पहले सिक्के निकाल भी लिए लेकिन इस कुकृत्य को कराने वाली पंचायत के लोगों को ये बात गले नहीं उतरी और उन्होंने जबरदस्ती उस महिला के हाथ कई बार दोबारा खौलते तेल में झोंक दिए। इतना ही नहीं उसके सिर को भी गरम सरियों से दागा गया। एक ऐसी संस्था जिसे गांव के छोटे मोटे झगड़े निपटाने का हक दिया गया हो उसका इस तरह से हैवानियत पर उतर आना कोई नई बात नहीं थी लेकिन जिस देश में कानून से बड़ा कुछ नहीं, वहां उसी कानून को ठेंगे पर रखकर खेला गया हैवानियत का ये खेल कई सवाल खड़े करता है। पंचायतों के इस तालिबानी रवैए को लेकर खड़े हो रहे सवालों के जवाब अभी मिले भी नहीं कि राजस्थान से ही एक और कड़वी हकीकत निकलकर सामने आ गई। जयपुर से कोई 450 किलोमीटर दूर बड़ी सादरी क़स्बे में हिंगलाज माता के मंदिर में बागरिया समाज के लोगों ने महिलाओं के सतीत्व की परीक्षा के लिए एक दिल दहला देने वाला आयोजन कर डाला। परंपराओं की आड़ में चौदह बागरिया महिलाओं को गर्म तेल से भरे कड़ाह में पक रहे पकवान को हाथ डुबो कर निकालने और अपने पवित्र होने का प्रमाण देने के लिए मजबूर किया गया। चश्मदीदों के मुताबिक़ हर महिला ने बारी बारी से खौलते गर्म तेल से भरे मर्तबान मे हाथ डाला और पकवान निकाला. मगर किसी भी महिला का हाथ गर्म तेल से नही जला। इसका ये नतीजा निकाला गया कि इनमें किसी भी महिला के विवाहत्तोर संबध नहीं है। सतीत्व के इम्तिहान मे विफल होने पर महिला को दंडित किया जाता है। इस क़स्बे मे बागरिया जाति के सैकड़ों परिवार रहते हैं और हर साल विजयादशमी की पूर्व संध्या पर इसका आयोजन किया जाता है। महिलाओं के साथ हुए ये दो कृत्य बताने के लिए काफी हैं कि देश में महिलाओं की सुरक्षा और संरक्षा के लिए बनाए गए कानूनों की क्या हालत है। कहीं पंचायतों का तुगलकी फरमान के ज़रिए तो कहीं परंपराओं की दुहाई देकर आज भी महिलाओं के मान सम्मान पर चोट की जा रही है और महिलाओं की आवाज़ बुलंद करने वाली संस्थाओं की मुखिया वातानुकूलित कमरों में बैठकर ऐसी ही घटनाओं पर चर्चा करती रहती हैं। बहुत होगा तो घटनास्थल का दौरा कर लिया जाएगा और एक रिपोर्ट तैयार कर दी जाएगी। थोड़ी बहुत चिल्ला चिल्ली मचाई जाएगी और फिर सन्नाटा फैल जाएगा। क्या इतने भर से हम देश की इस आधी आबादी के मान सम्मान की रक्षा कर पायेंगे। दरअसल औरत के प्रति हमें अपने वर्षों पुराने दृष्टिकोण में तब्दीली करने की ज़रूरत है और यह तब्दीली बिना शिक्षा के फैलाव के संभव नहीं है। शिक्षा को मदरसों और शिशु मंदिरों से आज़ाद करा के सरकार को अपने हाथ में लेना होगा। जब तक ऐसा नहीं होगा औरत यूं ही संसार में अपमानित होती रहेंगी, शोषण का पात्र बनती रहेंगी, कभी पैदा होने से पूर्व तालाब में बहाई जाती रहेंगी तो कभी पैदा होने के बाद पति की अर्थी पर जलाई जाती रहेगी.। इमराना की तरह सताई जाती रहेगी, मुल्लाओं के फ़तवों और पंडितों के आदेशों के चलते रोती चिल्लाती रहेंगी। स्त्री के प्रति नाइन्साफ़ी की इस आंधी के विरोध में स्वयं स्त्री को भी इंदिरा गाँधी, सरोजनी नायडू, इस्मत चुग़ताई, ज़ीनत महल आदि बनकर खड़ा होना होगा। मजाज़ लखनवी ने स्त्री की दुर्दशा को देखते हुए लिखा था,
तेरे माथे पे यह आँचल बहुत ही ख़ूब है लेकिन
तू इस आँचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था

तो महिलाओं को भी इस तरह के अन्याय के खिलाफ उठ खड़े होना होगा तभी उनके खिलाफ समाज में फैली बुराइयों का अन्त हो सकेगा।
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