सोमवार, 13 अक्तूबर 2008

बीमार हुए महानायक


13 अक्टूबर 2008
शनिवार का दिन ज़रा खास था। हर उस हिन्दुस्तानी के लिए जिसे कला से और कलाकारों से लगाव है। दरअसल इस दिन एक कलाकार का जन्म दिन था। बल्कि यूं कहें कि कलाकार नहीं बल्कि कला के एक संस्थान का जन्म दिन था। जी हां, शनिवार को अमिताभ बच्चन छियासठ साल के हो रहे थे और अमित जी खुद में अभिनय के किसी संस्थान से कम नहीं। अमिताभ बच्चन, एक ऐसा कलाकार जहां आकर तुलनाएं समाप्त हो जाती है। एक ऐसा शख्स जिसके बारे में कहने के लिए शब्दकोष में शब्द खत्म हो जाते हैं और नए शब्द गढ़ने पड़ते हैं। ऐसी शख्सियत का जन्म दिन हो और हलचल ना हो ऐसा कैसे हो सकता है। बिग बी को उनके जन्म दिन की बधाई देने के लिए उनके प्रशंसक प्रतीक्षा के आगे प्रतीक्षारत थे। उनकी एक झलक के लिए लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था। लोग अमिताभ की उस मुस्कुराती छवि को देखना चाहते थे जो पिछले चालीस सालों से उनके दिल पर राज कर रही है लेकिन लोगों की उम्मीदें पूरी नहीं हुई। अमिताभ बच्चन के छियासठवें जन्म दिन पर उनका छब्बीस साल पुराना दुश्मन एक बार फिर उनके सामने आ खड़ा हुआ। जी हां उनका वो दर्द एक बार फिर उनकी जिन्दगी के आडे़ आता महसूस हुआ जो उन्हें फिल्म 1983 में कुली फिल्म के दौरान लगी चोट के कारण उभरा था। नीले रंग के गाउन में जब अमिताभ स्ट्रेचर पर घर से बाहर अस्पताल के लिए निकले तो वक्त मानों थम गया। लोग सांस लेना भूल गए। पलकें थी कि झपकने का नाम नहीं ले रही थीं। एक एक पल लोगों के लिए भारी साबित हो रहा था। उनकी आंखों के सामने उनका चहेता अस्पताल जा रहा था। बस फिर क्या था, अमिताभ की बीमारी की खबर जंगल में आग की तरह फैली। मीडिया में चल रही दूसरी खबरों पर विराम लग गया। कैमरों का रुख नानावती अस्पताल की ओर मुड़ गया। दुनिया भर में फैले अमिताभ के चाहने वाले सर्वशक्तिमान से उनकी सलामती की दुआ करने लगे। जिसे जैसे बन पड़ा, मन्दिर में मस्जिद में गुरुद्वारे में, चर्च में हर जगह प्रार्थनाएं होने लगीं। पूरी फिल्म इंडस्ट्री मानों ठहर गई। सदी का महानायक बीमार जो हो गया था। पहले नानावती अस्पताल में कुछ टेस्ट और जांच, उसके बाद लीलावती अस्पताल रेफर, प्रशंसकों की सांसें काबू में नहीं आ रही थीं। उनके कान तो अमिताभ बच्चन के खतरे से बाहर होने की खबर सुनने के लिए तरस रहे थे। जब तक ये थहर नहीं आई लोग अस्पताल के बाहर डटे रहे। बाद में लीलावती अस्पताल की ओर से जारी मेडिकल बुलेटिन में जब अमित जी की बेहतर हालत के बारे में बताया गया तो लोगों की जान में जान आई। इस दौरान राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री तक अमिताभ की सेहत को लेकर फिक्रमंद दिखाई दिए। ये अमिताभ के व्यक्तित्व और उनकी शख्सियत का ही कमाल है कि लोग आज भी उन्हें इतना पसंद करते हैं। अमिताभ बच्चन के बारे में इतना लिखा गया है और इतना कुछ सुना गया है कि ऐसा लगता है वो हम में से एक हैं। मगर सच तो ये है कि अमिताभ हमारे जैसे होकर भी हम सबसे अलग हैं।

वरिष्ठ फिल्मकार कोमल नाहटा लिखते हैं कि बच्चन जैसी किस्मत भगवान कम ही लोगों को देते हैं.अस्थमा के मरीज़, एक जानलेवा दुर्घटना (कुली के सेटी पर), एक गंभीर बीमारी (माइसथिनिया ग्रेविस) फिर एक और गंभीर बीमारी (कोलाइटिस) फिर भी अमिताभ बच्चन रुकने का नाम नहीं ले रहे। लोग तो यही दुआ करेंगे कि वो कभी न रुके क्योंकि बहुत कम नायक हैं जिनके नाम पर दर्शक सिनेमाघरों में आते हैं। लोग अमिताभ बच्चन की फ़िल्में उन्हें देखने के लिए जाते थे, इसलिए कई बार उनकी कमज़ोर फ़िल्में भी औसत धंधा कर लेती थी।

अमिताभ बच्चन की जो फिल्म नहीं चल पाई उनमें भी अमिताभ के काम को सराहा गया। बड़े पर्दे से लेकर छोटे पर्दे तक अमिताभ ने अपनी द्रढ़ इच्छाशक्ति के बूते सफलता के नए कीर्तिमान गढ़े। जब जब मुसीबतों और परेशानियों ने उनकी जिन्दगी का रुख किया अमिताभ और मज़बूत बनकर उभरे हैं। वो चाहे उनकी राजनीतिक पारी की विफलता हो या फिर एबीसीएल कंपनी की नाकामयाबी, बाराबंकी का ज़मीन विवाद हो या फिर राज ठाकरे के साथ चल रहा शीत युद्ध, हर चुनौती का इस शख्स ने डटकर मुकाबला किया और उन पर फतह हासिल की। यहां बीबीसी हिन्दी डॉट कॉम की संपादक सलमा जैदी जी द्वारा लिए गए अमित जी के साक्षात्कार के कुछ अंश आपको पढ़वाना चाहूंगा।

प्रश्न - आपकी उम्र के साठ साल पूरे होने पर कई आयोजन हुए थे और ऐसा लगने लगा था कि आप अपने जीवन का सर्वोत्तम काम कर चुके हैं. लेकिन वह उम्र जब लोग रिटायर होने की सोचते हैं आपके लिए एक नई ऊर्जा ले कर आई और आप फिर से पूरे जोशोख़रोश से काम में जुट गए।
उत्तर - मैंने तय किया है जब तक शरीर साथ देगा काम करता रहूँगा. मैं अभी थका नहीं हूँ।

प्रश्न - लेकिन देखा जाए तो साठ से पैंसठ साल का यह अरसा काफ़ी अहम रहा है। चाहे वह ब्लैक हो या एकलव्य, चीनी कम या निशब्द, सब इसी अवधि की देन हैं।
उत्तर - इसमें कोई विशेष बात नहीं है. मुझे फ़िल्मों के प्रस्ताव मिले और मैंने स्वीकार कर लिए. लोग ऐसा क्यों समझते हैं कि इसके लिए शक्ति की ज़रूरत होती है. जब तक शरीर देख सकता है, सुन सकता है और सह सकता है तब तक काम जारी रहना चाहिए और वही मैं कर रहा हूँ।

प्रश्न - कहते हैं शारीरिक शक्ति भी तभी संभव है जब मानसिक ताक़त हो. क्या वह आपको पिता से विरासत में मिली है?
उत्तर - नहीं, मैं यह तो नहीं कहूँगा कि उनकी जो मानसिक शक्ति थी मैं उसका मुक़ाबला कर सकता हूँ. लेकिन हाँ, कोशिश पूरी करता हूँ. जो काम मिलता है उसे पूरी ईमानदारी और जोश से निभाने का प्रयास करता हूँ और ईश्वर का आभारी हूँ कि उसने यह सब करने की शक्ति मुझे प्रदान की है।


साक्षात्कार के इस सारांश से महानायक की शख्सियत, उनकी विनम्रता, सरलता और साफ़गोई का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। काम की उनकी जिजीविषा, काम को करने की उनकी लगन और काम के प्रति उनका समर्पण निश्चित ही लोगों के लिए एक मिसाल है। अन्त में सिर्फ यही कहना चाहूंगा कि ईश्वर सदी के इस महानायक को ग़म की हर परछांई से दूर रखे और उन्हें इतनी ताकत दे कि वो हर चुनौती का डटकर मुकाबला कर सकें और अपनी कला से दुनिया को रोशन करते रहें हमेशा हमेशा।

1 टिप्पणी:

विवेक सिंह ने कहा…

ईश्वर आपके महानायक जी को जल्द अच्छा करे .

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