22 जनवरी 09
99 साल के इस बुजुर्ग को राजस्थान के केकड़ी जिले में देवकी बल्लभ द्विवेदी के नाम से जाना जाता है। आजादी के लिए लड़ी गई जंग में उनकी भागीदारी के चलते उन्हें स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का खिताब भी हासिल है। उनकी इस भागीदारी को खुद राज्य सरकार ने रजत पदक और ताम्र पत्र देकर सलाम किया है। इनके पास आज सब कुछ है। दो बेटे और उनका हंसता खेलता परिवार बावजूद इसके एक चीज ऐसी है जिसने इन्हें व्यथित कर रखा है और उसी कमी को पूरा करने के लिए आराम करने की उम्र में भी उन्होंने जंग छेड़ रखी है।
जंग उस चीज के लिए है, जो उनके हक में आती है और वो चीज है, केन्द्र सरकार की तरफ से आजादी के सिपाहियों को मिलने वाली पेंशन। आप ये जानकर हैरान रह जायेंगे कि इसी पेंशन को हासिल करने के लिए ये बुजुर्गवार पिछले तीस साल से लड़ाई लड़ रहे हैं। ये लड़ाई पैसों के लिए नहीं है क्योंकि ईश्वर ने द्विवेदी जी को इस नेमत से बख्श रखा है। इनकी तमन्ना है कि अगर उन्हें उनके ही हक की रकम मिल जाए तो वे उसे गरीबों को दान कर सकें। द्विवेदी जी ने कानून के दायरे में रहकर शालीनता के साथ अपने इस हक की मांग की। अब इसे व्यवस्था की खोट कहें या फिर कुर्सी की खुमारी, तीस साल का वक्त बीत गया लेकिन इन्हें इनका हक नहीं मिला। हक दिलाने का भरोसा मिला, चिठ्ठियां मिलीं, चिठ्ठियों के जवाब मिले लेकिन नहीं मिला तो पेंशन रूपी आत्मसम्मान।
बात बनती ना देख आजादी के इस सिपाही का धैर्य जवाब दे गया। उन्होंने घोषणा कर दी कि वे आने वाली 26 जनवरी को तिरंगे के नीचे बैठकर आमरण अनशन शुरू करेंगे। जैसा कि हमेशा होता है, ये खबर फैलते ही सत्ता के गलियारों में खलबली मच गई। एक स्वतंत्रता सेनानी अगर आमरण अनशन करेगा तो सरकार की छवि खराब होगी, जनता क्या सोचेगी, सरकार की बेइज्जती होगी, अब सत्ता की मलाई खाने वालों को गालियां खाना भला कैसे शोभा देता। सो केकड़ी के विधायक रघु शर्मा हरकत में आए और उन्होंने प्रशासनिक अधिकारियों को इस सेनानी की चौखट चूमने के लिए रवाना कर दिया। अधिकारी भी ये जा वो जा...पहुंच गए अपनी नाक बचाने की जद्दोजहद करने। अनशन का फैसला टालने के लिए अनुनय विनय की, हाथ जोड़े, साथ ही एक बार फिर भरोसा दिलाया इन्हें, इनका हक दिलाने का।
(केकड़ी के एसडीएम गजेन्द्र सिंह देवकी बल्लभ द्विवेदी को मनाने पहुंचे)
इस बुजुर्ग को भी अच्छा नहीं लगा कि कोई उनके दरवाजे पर आकर बेइज्जत हो लिहाजा उन्होंने अपना इरादा टाल दिया लेकिन इस चेतावनी के साथ कि अगर उनका भरोसा इस बार टूटा तो परिणाम अच्छा नहीं होगा। अब इस बुजुर्ग को मिला सरकारी भरोसा कार्रवाई की शकल लेता है या फिर वक्त कि बिसात पर हर बार की तरह झूठ का एक मुलम्मा बनकर चिपक जाता है ये देखने वाली बात होगी। ये मामला यहां मैनें इसलिए उठाया है क्योंकि द्विवेदी जी जैसे न जाने कितने आजादी के सिपाही आज भी अपने हक और आत्मसम्मान को हासिल करने के लिए एड़ियां रगड़ रहे हैं। जिनकी कुर्बानी की बदौलत हम आज आजादी की हवा अपने फेफड़ों में भर रहे हैं वो आज भी दर दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं। अगर वो इस हाल में नहीं हैं तो उनके परिवार वाले उनकी कुर्बानी का सिला भुगत रहे हैं। ऐसे सिपाहियों की जवानी अगर अंग्रेजों से लोहा लेने में बीत गई तो बुढ़ापा अपनों से ही अपना हक हासिल करने की जंग में खत्म हुआ जा रहा है। ऐसे में क्या हम अपनी आजादी और अपने गणतंत्र पर गर्व कर सकते हैं।
गुरुवार, 22 जनवरी 2009
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3 टिप्पणियां:
जिस देश में 60 साल बाद भी आज़ादी की कीमत नहीं जानी गई है उस देश में स्वतंत्रता सेनानियों की कद्र कौन करेगा?
भारत में यही तो अव्यवस्था है.....एक ओर इसी देश में ऐसे लोगों को भी स्वतंत्रता सेनानी के नाम पर पेंशन मिल रही है , जो आजादी से पहले चोरी या किसी अन्य इल्जाम में जेल गए थे , वहीं दूसरी ओर इतने प्रमाण के बावजूद 99 साल के राजस्थान के केकड़ी जिले के देवकी बल्लभ द्विवेदी नामक इन बुजुर्ग को पेंशन नहीं मिल पा रहा।
बहुत अफसोसजनक.
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