शुक्रवार, 23 जनवरी 2009

अधूरे होमवर्क की सज़ा

24 जनवरी 09
उस मासूम का कुसूर बस इतना था कि उसने किन्ही कारणों से अपना होमवर्क पूरा नहीं किया था। उसके इस अपराध की सजा उसकी शिक्षिका ने जिस अंदाज में दी उससे हैवानियत भी शरमा गई। पहले शरीर पर बेहिसाब डंडों की बरसात और फिर भी जब मन को सुकून नहीं मिला तो बात लात घूंसों और चप्पलों पर आ गई। वो मासूम चीखता रहा, चिल्लाता रहा लेकिन उसकी टीचरजी का दिल नहीं पसीजा। उनके हाथ चलते रहे...तब तक जब तक उस मासूम की चीखें खामोशी में नहीं बदल गईं। जब तक वो बेहोश नहीं हो गया।












ये नजारा देखकर आपकी आंखें भर आई होंगी। दिल से बस एक ही सवाल निकल रहा होगा कि आखिर कौन है वो हैवान शिक्षिका जिसने इस मासूम के साथ जानवरों से भी बद्तर सलूक किया है। दरअसल ये मामला है छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले का...जहां के मनेन्द्रगढ़ विकास खंड के राजकीय प्राथमिक स्कूल में ये घटना घटी है। आपने कई ऐसी घटनाओं के बारे में सुना होगा जब, किसी शिक्षक ने छात्र को पीटा होगा। कई बार बेतहाशा पिटाई का दर्द न बरदाश्त कर पाने के चलते ऐसे मासूमों की जान तक जा चुकी है। कोई बहरा हो गया तो कोई जिन्दगी भर के लिए अपाहिज। कई बार शिक्षक अपनी मर्यादा और शालीनता लांघ हैवान बनते नजर आए हैं। ऐसा ही कुछ हुआ था अहमदाबाद निवासी अरविन्द नाम के एक छात्र के साथ...जब अपने शिक्षक हंसमुखभाई गोकुलदास शाह की पिटाई से आहत होकर उसने खुदकुशी कर ली थी। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था और चीफ जस्टिस के.जी.बालाकृष्णन और जस्टिस पी.सदाशिवम की बेंच ने ये फैसला सुनाया कि पढ़ाई के लिए बच्चे को पीटने का अधिकार किसी शिक्षक को नहीं है और क्लास में पढाई के लिए बच्चों से मारपीट किसी भी सूरत में बरदाश्त नहीं की जाएगी। बावजूद इस आदेश के कोरिया में एक बार फिर सुनील नाम का ये मासूम अपनी टीचरजी की हैवानियत का शिकार बन गया।






सुनील की पिटाई का नजारा देख स्कूल के दूसरे बच्चे इस कदर सहमे हैं कि स्कूल जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं...उनकी आंखों के सामने बुरी तरह से पिटता सुनील कौंध जाता है...उनके माता पिता भी अपने बच्चों को स्कूल भेजने से कतरा रहे हैं। आरोपी शिक्षिका भारती राही फिलहाल फरार है। जिलाधिकारी कमलप्रीत सिंह ने मामले की जांच कराकर आरोपी शिक्षिका के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का भरोसा दिलाया है लेकिन ये भरोसा इन मासूमों के दिल से पिटाई का खौफ मिटा पाने में नाकाम साबित हो रहा है। साथ ही स्कूल में हुई मासूम की पिटाई और उससे पैदा हुई इस दहशत ने शासन की उन योजनाओं पर भी पानी फेरने का काम किया है, जिसके तहत वो बच्चों को स्कूल से जोड़ने का काम कर रहा है।






मैं अपने ब्लॉग पर आने वाले सभी लोगों से पूछना चाहता हूं कि क्या केवल कानून बना देने भर से ऐसी घटनाओं पर रोक लगाई जा सकती है। क्या कानून की धाराओं से ही ऐसे शिक्षकों को उनकी जिम्मेदारी का एहसास दिलाया जा सकता है।

4 टिप्‍पणियां:

अनिल कान्त ने कहा…

ऐसे लोग -- ऐसे शिक्षक भी हैं इस समाज में .....शर्मसार

अनिल कान्त
मेरा अपना जहान

Udan Tashtari ने कहा…

हद है जी!!

संगीता पुरी ने कहा…

सचमुच दरिंदे हैं ऐसे शिक्षक .....इनके भरोसे ये बच्‍चे कल कैसे नागरिक बनेंगे ?

Aadarsh Rathore ने कहा…

शिक्षा प्रणाली में उपस्थित कमियों को स्वीकार तो हर कोई करता है लेकिन इसमें बदलाव लाने का प्रयास करने वाला कोई नहीं। राजनेता और स्वयंभू बुद्धिजीवी इस ओर ध्यान नहीं देते। इस तरह की घटनाओं पर रोक लगाना तब तक मुमकिन नहीं जब तक इस प्रणाली में बुनियादी सुधार कर लागू नहीं किया जाता। शिक्षकों की मानसिकता तभी बदलेगी जब उनके साथ उनके बचपन में मानवीय व्यवहार हुआ होगा। अन्यथा सभी मारने-पीटने की ये प्रवृति विरासत की तरह पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहेगी।

http://