25 मई 09
चाहा जिसे मुक्त कर दो उसे
प्यार को तोलने की तराजू यही
मोहब्बत का मारा चला आएगा
ना आए तो समझो तुम्हारा नहीं
सोमवार, 25 मई 2009
शनिवार, 9 मई 2009
ताल्लुकात में कोई कमी नहीं रखते...
09 मई 05
ताल्लुकात में कोई कमी नहीं रखते
वो सबसे मिलते हैं पर दोस्ती नहीं रखते
हमें भुलाकर अगर शादमां वो रहते हैं
तो हम भी दिल में कोई बेकली नहीं रखते
ज़मीं की ख़ाक उन्हें ख़ाक में मिला देगी
अभी तो फर्श पर वो पांव भी नहीं रखते
हमारे टूटे हुए घर में शम्मा जलती रहे
फटे लिबास में शर्मिन्दगी नहीं रखते
गनाहो जुर्म की हर रस्म हो रही है अदा
मगर शबाब की हम रोशनी नहीं रखते
यहां तो कद्र नहीं सीधे सादे लोगों की
अजीब शख्स हो तुम दुश्मनी नहीं रखते
संभल के रहते हैं शहर-ए-वफा में हम
किसी के साथ कभी दोस्ती नहीं रखते
ताल्लुकात में कोई कमी नहीं रखते
वो सबसे मिलते हैं पर दोस्ती नहीं रखते
हमें भुलाकर अगर शादमां वो रहते हैं
तो हम भी दिल में कोई बेकली नहीं रखते
ज़मीं की ख़ाक उन्हें ख़ाक में मिला देगी
अभी तो फर्श पर वो पांव भी नहीं रखते
हमारे टूटे हुए घर में शम्मा जलती रहे
फटे लिबास में शर्मिन्दगी नहीं रखते
गनाहो जुर्म की हर रस्म हो रही है अदा
मगर शबाब की हम रोशनी नहीं रखते
यहां तो कद्र नहीं सीधे सादे लोगों की
अजीब शख्स हो तुम दुश्मनी नहीं रखते
संभल के रहते हैं शहर-ए-वफा में हम
किसी के साथ कभी दोस्ती नहीं रखते
मंगलवार, 5 मई 2009
उससे जुदा हो गया मैं....
05 मई 09
मैं ये सोचकर उसके दर से उठा था
कि वो रोक लेगी मना लेगी मुझको
हवाओं में लहराता आता था आंचल
कि दामन पकड़कर बिठा लेगी मुझको
कदम ऐसे अंदाज में उठ रहे थे
कि आवाज देकर बुला लेगी मुझको
मगर उसने रोका ना उसने बुलाया
न दामन ही पकड़ा न मुझको बिठाया
न आवाज ही दी न वापस बुलाया
में आहिस्ता आहिस्ता बढ़ता ही आया
यहां तक कि उससे जुदा हो गया मैं...
मैं ये सोचकर उसके दर से उठा था
कि वो रोक लेगी मना लेगी मुझको
हवाओं में लहराता आता था आंचल
कि दामन पकड़कर बिठा लेगी मुझको
कदम ऐसे अंदाज में उठ रहे थे
कि आवाज देकर बुला लेगी मुझको
मगर उसने रोका ना उसने बुलाया
न दामन ही पकड़ा न मुझको बिठाया
न आवाज ही दी न वापस बुलाया
में आहिस्ता आहिस्ता बढ़ता ही आया
यहां तक कि उससे जुदा हो गया मैं...
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