शनिवार, 25 अप्रैल 2009

दिल को किसी सूरत बहलाना नहीं आता...

25 अप्रैल 09
निगाहों में कभी माज़ी का अफसाना नहीं आता
मगर दिल को किसी सूरत भी बहलाना नहीं आता
हुई मुद्दत बहार आए,सूनी पड़ी है दिल की महफिल भी
हमारी ओर कोई दिल की दीवाना नहीं आता
न बह जाए कहीं दिल से,तुम्हारी याद की रंगत
इसी डर से हमें तो अश्क बरसाना नहीं आता
कोई सूरत तो बतला दो,जरा दिल को बहलाने की
तुम्हारे बिन हमें तो दिल को बहलाना नहीं आता
हर एक आहट पे दिल मेरा,यही कहता है तू आई
यह धोखा है मुझे दिल को समझाना नहीं आता
जमाने में ये दिल की महफिल ऐसी महफिल है
जहां अपने तो आ सकते हैं बेगाना नहीं आता

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009

आज तुम मुझसे दूर हो जाओगी....

24 अप्रैल 09
आज तुम मुझसे दूर हो जाओगी
अपनी दुनिया नयी बसाओगी
अब किसी अजनबी की बाहों में
अपनी रानाइयां लुटाओगी

मैनें माना कि दूर जाओगी
अपनी दुनिया नयी बसाओगी
फिर भी मैं पूछता यह हूं तुमसे
नक्शे माज़ी मिटा भी पाओगी

जब दिल से मुझे भुलाओगी
दर हकीकत फरेब खाओगी
दिन कटेगा मेरे तसव्वुर में
अपने ख्वाबों में मुझकों पाओगी

अपने आरामदेह शाबिस्तां में
नींद आंखों में जब बसाओगी
जाने क्या आएगा नजर तुमको
सिसकियां लेके जाग जाओगी

आधी रातों में जाग जाने की
वजह क्या है समझ ना पाओगी
और फिर बेबसी के आलम में
मेरी तस्वीर तुम उठाओगी

एहदे माज़ी की यादगारों में
बंद कमरे में जब जलाओगी
दर्द की लहर रूप पे छाएगी
अश्क आंखों से तुम बहाओगी

आज तुम मुझसे दूर हो जाओगी
अपनी दुनिया नयी बसाओगी
अब किसी अजनबी की बाहों में
अपनी रानाइयां लुटाओगी

गुरुवार, 23 अप्रैल 2009

मैं तेरी सौगात लिए...

23 अप्रैल 09
दीप जलाए अश्कों के और आहों के नग्मात लिए
कौन आया है ज़ेहन में मेरे,यादों की बारात लिए
काली घटा को देख के,आई याद तुम्हारी जुल्फों की
सावन ऋतु आई है लेकिन अश्कों की बरसात लिए
अपनी अपनी बात सुनाई,सबने तुम्हारी महफिल में
बैठे रहे हम ही तन्हा,दिल में अपनी बात लिए
जुल्फों के साए ने,तुम्हारे चेहरे को यूं घेरा है
जैसे सवेरा हो पहलू में, अपने काली रात लिए
लोगों ने चुन चुन के उठा ली,खुशियों की हर एक घड़ी
लेकिन हमने शौक से खुद ही,दर्द भरे लम्हात लिए
गीली गीली आंखें क्यों हैं,लब पर है क्यों आह
घूम रहा हूं गली गली में तेरी सौगात लिए...

बुधवार, 22 अप्रैल 2009

वो जो न था आदर्श तुम्हारा...


22 अप्रैल 09
तन्हा बैठा सोच रहा हूं
वो जो न था आदर्श तुम्हारा
आज वही एक आम सा लड़का
शीशों वाले उस कमरे में
पास तुम्हारे बैठा होगा
लंबी और घनी ज़ुल्फों में
जूही की कलियां अटकाए
और गुलाबी से होठों पर
एक सच्ची मुस्कान सजाए
अपनी जीत पे नाजां नाजां
तुम उससे बातें करती होगी
भूल के दुनिया के हर ग़म को
बात-बात पे हंसती होगी
तुम जो कभी बेहद ज़िद्दी थी
ज़िद उससे भी करती होगी
बात बात पे रुठने वाली
उससे भी तो रूठती होगी
और वही एक आम सा लड़का
अक्सर तुम्हें मनाता होगा
उलझे उलझे बाल तुम्हारे
प्यार से वो सुलझाता होगा
पाकर ख्वाबों की ताबीर
क्या क्या वो इतराता होगा
उसके सपने सच्चे निकले
वो जो न था आदर्श तुम्हारा
उसने प्यार की मंजिल पा ली
जिससे तुमको प्यार नहीं था
और मैं जीवन की राहों में
भटक रहा हूं तन्हा तन्हा
तन्हा बैठा सोच रहा हूं
वो जो न था आदर्श तुम्हारा

शनिवार, 18 अप्रैल 2009

सच बता गांव से आने वाले...

18 अप्रैल 09
सच बता गांव से आने वाले
तेरी लोगों से मुलाकात तो होगी
खेत खलिहान कहीं बात तो होगी
सच बता गांव से आने वाले

तुमसे मिलती है,कहीं वो मेरी हरजाई भी
जिसने आवारा बनाया मुझे सौदाई भी
घर से बेघर किया, दी मुझे रुसवाई भी
सच बता गांव से आने वाले

उसने क्यों छोड़ दिया मुझको मोहब्बत करके
क्या वो मजबूर थी,बेबस थी,ये हिम्मत करके
क्यों ना हमराह चली आई बगावत करके
सच बता गांव से आने वाले

जब कोई बांका जवां गीत सुनाता होगा
जब कोई जादू भरी तानें उड़ाता होगा
क्या मेरा प्यार उसे याद ना आता होगा
सच बता गांव से आने वाले

क्या मेरे बाद वो मगमूम रहा करती है
क्या मेरे हिज्र में दिन रात जला करती है
क्या वो सखियों से जमाने का गिला करती है
सच बता गांव से आने वाले

क्या वो तनहाई में रोती रही सावन सावन
बावरी होके फिरी गांव के आंगन आंगन
क्या कभी रट है मेरे नाम की साजन साजन
सच बता गांव से आने वाले

याद करती है मुझे जागते ख्वाबों में कभी
मेरे खत पढ़ती है रख रख के किताबों में कभी
ढूंढा करती है सरे राह सराबों में कभी
सच बता गांव से आने वाले

अब किसी और से वो प्यार जताती तो नहीं
अब किसी और को वो गीत सुनाती तो नहीं
अब किसी और के कूचे में वो जाती तो नहीं
सच बता गांव से आने वाले

तेरी लोगों से मुलाकात तो हागी
खेत खलिहान कहीं बात तो होगी
सच बता गांव से आने वाले

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2009

बस तुम्हें चाहा करूं...

17 अप्रैल 09
मैं तुम्हें हां बस तुम्हें चाहा करूं
तू मिली तो जिन्दगी का
पा लिया हर पल खुशी का
शुक्रिया कैसे करूं, बस तुम्हें चाहा करूं
मेरी चाहत को नया अंजाम तुमने ही दिया
जिन्दगी को जिन्दगी का नाम तुमने ही दिया
में तेरे बारे में बस सोचा करूं
हौसला तुमने दिया है
जीना अब सिखला दिया है
शुक्रिया कैसे करूं,बस तुम्हें चाहा करूं
खुशनसीबी है ये मेरी, मैनें तुमको पा लिया
दिल को ये भी नाज है कि,तुमने भी अपना लिया
रात दिन दिल में तुम्हें देखा करूं
तुमने ही मंजिल दिखाई, प्यार की दुनिया सजाई
शुक्रिया कैसे करूं, बस तुम्हें चाहा करूं
मैं तुम्हें हां बस तुम्हें चाहा करूं
शुक्रिया कैसे करूं, बस तुम्हें चाहा करूं.....

बुधवार, 15 अप्रैल 2009

समय हो गया लो चला जा रहा हूं...

15 अप्रैल 09
समय का पहरुआ बड़ा ही सजग है
किसी को भी रुकने ना देगा यहां पर
सभी हैं मुसाफिर उमर की डगर के
किसी को न मिलती है मंजिल यहां पर
लिए जा रहा हूं ये आंसू नयन में
सुनहरे सपन सब दिए जा रहा हूं
समय हो गया लो चला जा रहा हूं...

न सोचो कि पूरी न हो पाई बातें
यहां बात पूरी न होगी कभी भी
भले जिन्दगी भर रहूं देखता मैं
मगर प्यास पूरी न होगी कभी भी
लिए जा रहा हूं प्रबल प्यास अपनी
तुम्हें रस कलश में दिए जा रहा हूं
समय हो गया लो चला जा रहा हूं...

इतना ही कम क्या कि हम साथ में थे
नहीं तो यहां साथ मिलता न मांगे
सभी को है जाना सभी जायेंगे पर
कोई भी यहां, हाथ मिलता न मांगे
लिए जा रहा हूं, खिज़ा साथ अपने
महकता चमन ये दिए जा रहा हूं
समय हो गया लो चला जा रहा हूं...

मंगलवार, 14 अप्रैल 2009

प्रेम ये है प्रेम...

14 अप्रैल 09
आग से जले ना, जल से बुझे ना
हवा से उड़े ना, तूफां से डरे ना
दिल और जां में जमीं आसमां में
नाम है जिसका सारे जहां में
प्रेम ये है प्रेम
प्रेम है पूजा, प्रेम है शक्ति
प्रेम है ज्योति, नई अनुभूति
प्रेम ही सुर है, प्रेम ही भाषा
प्रेम जीवन की है परिभाषा
प्रेम ये है प्रेम
प्रेम है राधा प्रेम है कृष्णा
प्रेम मिलन की अनबुझ तृष्णा
प्रेम लगन है, प्रेम तपस्या
प्रेम बिना है, दुनिया में क्या
प्रेम ये है प्रेम
प्रेम ये है प्रेम....

गुरुवार, 9 अप्रैल 2009

उससे जुदा हो गया मैं...

09 अप्रैल 09
मैं ये सोचकर उसके दर से उठा था
कि वो रोक लेगी, मना लेगी मुझको
हवाओं में लहराता आता था आंचल
कि दामन पकड़कर बिठा लेगी मुझको
कदम ऐसे अंदाज में उठ रहे थे
कि आवाज़ देकर बुला लेगी मुझको
मगर उसने रोका, न उसने बुलाया
न दामन ही पकड़ा, न मुझको बिठाया
न आवाज़ ही दी, न वापस बुलाया
मैं आहिस्ता-आहिस्ता बढ़ता ही आया
यहां तक कि उससे जुदा हो गया मैं...

मंगलवार, 7 अप्रैल 2009

अब तो मैं भूलने लगा था तुम्हें...

07 अप्रैल 09
अब तो मैं भूलने लगा था तुम्हें
आज फिर आ गई हो जाने क्यों
रंग और नूर का जहां बनकर
एक खिलते गुलाब की मानिन्द
इक चटकती हुई कली की तरह
लम्हा लम्हा संवरती जाती हो
नक्श बनकर उभरती जाती हो
तुम चली जाओगी घड़ी भर में
इतने वक्फे में सबसे मिल लोगी
घर का हर फर्द मुतमइन होगा
कौन जाने कि मेरा क्या होगा
मुझसे दो एक बात करके अभी
बेसबब यूं ही मुस्कुरा दोगी
ये अदा जो तुम्हारी फितरत है
मैं फकत देखता रहूंगा तुम्हें
तुमको क्या फिक्र किसको क्या गम है
हां, तुम्हें इससे वास्ता क्यों हो
इक हंसी हमसफर के पहलू में
अपनी दुनिया में शाद जो रहती हो

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2009

मैं तुझे चाहता नहीं लेकिन...

03 अप्रैल 09
मैं तुझे चाहता नहीं लेकिन
फिर भी, जब तू पास नहीं होती
खुद को कितना उदास पाता हूं
गुम से अपने होशो-हवास पाता हूं
जाने क्या धुन समाई रहती है
इक खामोशी सी छाई रहती है
दिल से भी गुफ्तगू नहीं होती
मैं तुझे चाहता नहीं लेकिन...
फिर भी रात के खाली समय में
तेरी औकात सोचता हूं मैं
तेरी हर बात सोचता हूं मैं
कौन से फूल तुझको भाते हैं
रंग क्या क्या पसन्द आते हैं
खो सा जाता हूं तेरी जन्नत में
मैं तुझे चाहता नहीं लेकिन...
फिर भी, एहसास से निजात नहीं
सोचता हूं तो रंज होता है
दिल को जैसे कोई डुबोता है
जिसको इतना सराहता हूं मैं
जिसको इस दर्जा चाहता हूं में
इसमें तेरी सी कोई बात नहीं
मैं तुझे चाहता नहीं लेकिन...

गुरुवार, 2 अप्रैल 2009

मत कराओ प्रतीक्षा...

02 अप्रैल 09
न जाने कब तक
लिखता रहूंगा यूं ही
बेचैन निगाहों से
एक टक!
कुछ तलाशता हुआ शायद
नजर आ जाए कभी छवि तुम्हारी
भटकने से पहले संभाल ले जाएं
मुझे बाहें तुम्हारी
कहते हैं फल मीठा होता है
प्रतीक्षा का बेहद
बाढ़ सी आई है गमों की
मेरी जिन्दगी में शायद
बस!
अब और मत तड़पाओ
मत कराओ प्रतीक्षा
सीमा की हद तक
लुटा जा रहा है सब कुछ
छिना जा रहा है सब कुछ
बस प्रतीक्षा में तुम्हारी
पता नहीं कब समाप्त होगी
ये घड़ी प्रतीक्षा की
मुझे तो लगता है
बस यूं ही लिखते लिखते
डूब जाऊंगा इसी में शायद
तुम्हारी ही प्रतीक्षा में
न जाने कब तक
http://