शुक्रवार, 29 अगस्त 2008

कोसी की विनाशलीला

30 अगस्त 2008

बिहार राज्य के पंद्रह जिले कोसी के कहर से कराह रहे हैं। 25 लाख से अधिक की आबादी के सामने जिंदगी बचाने, रहने और खाने-पीने का संकट मुंह बाए खड़ा है। खेत, गांव, घर सब कुछ बह गया है और साथ ही बह गए हैं बाढ़ के कहर से जूझती इस आबादी के सारे सपने। कोसी नदी ने अपनी धारा क्या बदली लोगों की जिंदगी ही बदल गई। चारों तरफ जल ही जल, पानी में डूबी सड़कें, रेल की पटरियां घऱ और फसलें सब कुछ कोसी की लहरों के हवाले। सुरक्षित जगह की तलाश में इधर से उधर दौड़ते भागते लोग। कोई अपने जानवरों को हाँक कर ले जा रहा है तो कोई अपने बच्चों को साइकिल पर बैठाए हुए भाग रहा है तो कोई अपने जीवन भर की बची हुई कमाई बैलगाड़ी पर लादे भाग रहा है। ऐसे लोगों की संख्या एक-दो या सौ-पचास नहीं बल्कि हज़ारों में है। ये लोग भाग तो रहे हैं पर उन्हें यह नहीं पता था कि जाना कहाँ है। न खाने का ठिकाना है और न सिर पर छत....बाढ़ सब कुछ लील चुकी है। लोगों की आँखों में पानी के ख़ौफ़ को साफ़ देखा जा सकता है लेकिन उनके सामने यह सवाल अब भी खड़ा है कि पानी से भागकर जाएँ तो जाएँ कहाँ। तबाही का ये मंजर इसलिए भयावह है क्योंकि करीब 54 साल बाद कोसी नदी ने इस साल अपने प्रवाह का रास्ता बदला है। वो भी कोई सौ किलोमीटर। नदियों के बहाव का रास्ता बदलना किसी कयामत से कम नहीं होता। इसका सीधा मतलब यह है कि 100 किलोमीटर के पूरे इलाके का जलमग्न हो जाना। उपर से कोसी 13 किलोमीटर की चौड़ाई में अपने पूरे प्रवाह के साथ बह रही है। यानी करीब 69,300 वर्ग किलोमीटर का वो इलाका जहां 12 दिन पहले जिंदगी का कोलाहल था, पानी की तेज रफ्तार वाली कल-कल से वहां मातमी सन्नाटा चीखने लगा है। बिहार में इस वक्त दहशत की दहलीज पर खड़े लोगों द्वारा जिंदगी बचाने की जद्दोजहद का नजारा किसी की भी आंखों में पानी ला सकता है। पिछले साल भी कोसी में सामान्य बाढ़ की स्थिति में राज्य के 500 लोगों की जानें गईं थीं और करीब 1500 करोड़ रुपये की संपत्ति का नुकसान हुआ था लेकिन इस बार नुकसान के कई गुणा ज्यादा होने की आशंका है। विडंबना यह है हर साल कोसी अपने साथ करोड़ों की संपत्ति का बहा ले जाती रही है लेकिन राज्य और केंद्र दोनों की सरकारें इसे प्राकृतिक आपदा मानकर हाथ पर हाथ धरे बैठी रहती हैं। जानकारों का मानना है कि अगर नेपाल की सीमा पर कोसी नदी के तट पर सही ढंग से बांध बना लिया जाए तो कोसी के कहर पर काबू पाया जा सकता है लेकिन भारत- नेपाल के साथ 58 साल के शांतिपूर्ण रिश्ते में इसके लिए किसी तरह की पहल देखने को नहीं मिली।

आइए तस्वीरों के माध्यम से देखते हैं...कैसे कोसी का कहर लोगों की जिंदगी पर भारी पड़ रहा है....






































सभी फोटो साभार अमर उजाला

बुधवार, 27 अगस्त 2008

चले गए फ़राज़


27 अगस्त 2008

ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे
तू बहुत देर से मिला है मुझे

हमसफ़र चाहिये हूज़ूम नहीं
इक मुसाफ़िर भी काफ़िला है मुझे

तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल
हार जाने का हौसला है मुझे

लब कुशां हूं तो इस यकीन के साथ
कत्ल होने का हौसला है मुझे

दिल धडकता नहीं सुलगता है
वो जो ख्वाहिश थी, आबला है मुझे

कौन जाने कि चाहतो में फ़राज़
क्या गंवाया है क्या मिला है मुझे


बेशक ग़ज़ल, शायरी की सबसे मकबूल सिन्फ़ (विधा) है लेकिन इसकी मकबूलियत में चार चाँद लगाए हैं कुछ शायरों और कुछ ग़ज़ल गायकों ने। ग़ज़ल को अवाम के दिलों की धड़कन बनाने में अहमद फ़राज़ की खिदमत को कभी फरामोश नहीं किया जा सकता। उनकी ग़ज़लें उनके दिल का दर्द बनकर अवाम के दिलों में समा गई। ग़ज़ल के शौकीन हिन्दुस्तान में हों, पाकिस्तान में हों या फिर दुनिया के किसी हिस्से में। उन सबके चहीते शायर कहलाए अहमद फ़राज़। अहमद फ़राज़ की पैदाइश 14 जनवरी 1931 (कुछ लोगों ने इनकी पैदाइश का साल 1934 भी बताया है) को नौशेरा (पाकिस्तान) में हुई। पेशावर यूनिवर्सिटी से उन्होंने फारसी और उर्दू में तालीम हासिल की। शायरी का शौक बचपन से था। बेतबाजी के मुकाबलों में हिस्सा लिया करते थे। इब्तिदाई दौर में इक़बाल के कलाम से मुतास्सिर रहे। फिर आहिस्ता-आहिस्ता तरक्की पसंद तेहरीक को पसंद करने लगे। अली सरदार जाफरी और फ़ैज़ अहमद फै़ज़ के नक्शे-कदम पर चलते हुए जियाउल हक की हुकूमत के वक्त कुछ गज़लें ऐसी कहीं और मुशायरों में उन्हें पढ़ीं कि इन्हें जेल की हवा खानी पड़ी। कई साल पाकिस्तान से दूर बरतानिया, कनाडा मुल्कों में गुजारना पड़े। फ़राज़ ने रेडियो पाकिस्तान में सर्विस की और फिर दर्स-व-तदरीस के पेशे से भी जुड़े। उनकी शोहरत के साथ-साथ उनके दराजात में भी तरक्की होती रही। 1976 में पाकिस्तान एकेडमी ऑफ लेटर्स के डायरेक्टर जनरल और फिर उसी एकेडमी के चेयरमैन भी बने। 2004 में पाकिस्तान हुकूमत ने उन्हें हिलाल-ए-इम्तियाज़ अवार्ड से नवाजा लेकिन 2006 में उन्होंने ये अवार्ड इसलिए वापस कर दिया कि वो हुकूमत की पोलिसी से इत्तेफाक नहीं रखते थे। फ़राज़ को क्रिकेट खेलने का भी शौक था। लेकिन शायरी का शौक उन पर ऐसा ग़ालिब हुआ कि वो दौरे हाज़िर के ग़ालिब बन गए। उनकी शायरी की कई किताबें शाय हो चुकी हैं। ग़ज़लों के साथ ही फ़राज़ ने नज़्में भी लिखी हैं लेकिन लोग उनकी ग़ज़लों के दीवाने हैं। इन ग़ज़लों के अशआर न सिर्फ पसंद करते हैं बल्कि वो उन्हें याद हैं और महफिलों में उन्हें सुनाकर, उन्हें गुनगुनाकर फ़राज़ को अपनी दाद से नवाजते रहते हैं। 26 अगस्त को 77 साल की उम्र में अहमद फ़राज का निधन हो गया। फ़राज पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे। वे इलाज के लिए अमरीका भी गए थे। उनकी याद में यहां उन्ही की एक रचना पेश करना चाहूंगा....

रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ

कुछ तो मेरे पिन्दार-ए-मोहब्बत* का भरम रख
तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ

पहले से मरासिम* न सही, फिर भी कभी तो
रस्म-ओ-रह-ए-दुनिया ही निभाने के लिए आ

किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से खफा है, तो ज़माने के लिए आ

एक उमर से हूँ लज्ज़त-ए-गिरया* से भी महरूम
ए राहत-ए-जां मुझको रुलाने के लिए आ

अब तक दिल-ए-खुशफ़हम को तुझ से हैं उम्मीदें
यह आखिरी शमाएं भी बुझाने के लिए आ


शायरों के शायर फ़राज़ को हमारी तरफ से भावभीनी श्रद्धांजलि

मंगलवार, 26 अगस्त 2008

बिहार में लहरों का कहर

27 अगस्त 2008
बिहार एक बार फिर बाढ़ की चपेट में है। राज्य के मधेपुरा, अररिया, सुपौल और सहरसा ज़िलों में कोसी नदी की लहरें कहन बनकर विनाशलीला कर रही है। नदी का तटबंध टूटने से लगभग 25 लाख लोग प्रभावित हुए हैं। अब तक लगभग 40 लोगों की मौत हो चुकी है लेकिन जानमाल की क्षति का सही आकलन बाढ़ के उफान के थमने के बाद ही हो सकेगा। बाढ़ के कारण हज़ारों हेक्टेयर भूमि पर खड़ी फसलों को नुकसान पहुँचा है।



लोग भूखे और बेघर होकर सरकारी मदद की आस में जी रहे हैं। मदद दी जा रही है लेकिन शायद नाकाफी है। बचाव कार्य के लिए 200 कश्तियाँ और 25 मोटर वाली नावें इस्मेताल की जा रही हैं। प्रभावित इलाक़ों तक खाने के पैकेट पहुँचाने के लिए तीन हेलीकॉप्टरों की मदद ली गई है। बाढ़ की चपेट में आए एक तिहाई बिहार को फौरी राहत पहुंचाने के लिए मुझे तो ये मदद नाकाफी ही लगती है। जिस तरह से बाढ़ की त्रासदी की शिकार जनता हेलीकॉप्टरों की गड़गड़ाहट सुन राहत सामग्री के लिए दौड़ लगाती है वो दिल को दर्द ही देती है। चूड़ा,गुड़,दिया-सलाई, मोमबत्ती,नमक और सत्तू के लिए लोग जी-जान लगा देते हैं। हेलीकॉप्टर के पीछे भागते वक्त न चोट की परवाह न दर्द की। किसी भी तरह से एक पैकेट हासिल करना होता है। जिससे परिवार के पेट की आग शान्त की जा सके। लहरों के इस कहर के बीच भूल जाइए..बीमारों को..लाचारों को...जो ज़िंदा हैं...खड़े हैं उन तक भी राहत पहुंचाना कोई आसान काम नहीं।







तबाही का ये मंजर हर साल ऐसा ही होता है। हर बार हजारों करोड रुपए बाढ़ राहत के नाम पर खर्च कर दिए जाते हैं लेकिन राहत मिलती नजर नहीं आती। इसी वर्ष जनवरी महीने में पटना में अनिवासी भारतीयों के एक सम्मेलन को संबोधित किया था। इस सम्मेलन में कलाम साहब ने उम्मीद जताई थी कि 2015 तक बिहार राज्य को देश के सबसे विकसित राज्य के रूप में पहचाना जाएगा। तत्कालीन राष्ट्रपति महोदय यह भी कह चुके हैं कि हरित क्रांति की शुरुआत अब बिहार राज्य से किए जाने की ज़रूरत है। प्रश् यह है कि क्या बाढ़ में डूबे हुए बिहार को देखकर इस बात की कल्पना भी की जा सकती है कि यही राज्य वह राज्य है जिसके बारे में भारत के महान स्वप्नदर्शी राष्ट्रपति ने देश के सबसे विकसित राज्य बनाए जाने का सपना देख रखा था? क्या इस प्रलयकारी बाढ़ के दृश्य देखने के पश्चात किसी अनिवासी भारतीय व्यवसायी से यह उम्मीद की जा सकती है कि वह ऐसी प्राकृतिक विपदाओं को देखने के बावजूद बिहार में पूंजी निवेश भी करेगा।









मैनें हिन्द युग्म ब्लाग पर भूपेन्द्र राघव जी की एक कविता पढी थी जिसका जिक्र यहां करना चाहूंगा......

जीवन दायी देखो कैसा जीवन ग्राही बन गया,
लहर लहर बन गयी कहर, एक तबाही बन गया

बह गये सब खेत मवेशी, खोर लवारे बह गये,
बह गये सब चौका चूल्हे, घर उसारे तक बह गये,
जल में डूबा छितिज छोर, जाने कहाँ से उफन गया
जीवन दायी देखो कैसा जीवन ग्राही बन गया...

टूट गयीं सब सडकें पुल पथ, टूट गये सब पेड़ रूख,
आंतें टूटी बहुत अबोध हाय! सह न सकीं जो विकट भूख,
कितनों की सिन्दूर चूड़ियाँ, कितनों का यौवन गया,
जीवन दायी देखो कैसा जीवन ग्राही बन गया।



सभी फोटो साभार बीबीसी

शुक्रवार, 1 अगस्त 2008

बीजिंग ओलंपिक 2008

02 अगस्त 2008
अगस्त 2008 यानि वो महीना जब चीन की राजधानी बीजिंग में खेलों का महाकुंभ शुरू होगा। दुनिया भर से अपने अपने फ़न में माहिर खिलाड़ी बीजिंग में अपना जौहर आज़मायेंगे। बीजिंग की आबो-हवा में ओलंपिक खेलों की ख़ुशबू समा चुकी है। तैयारियां पूरी हो चुकी हैं और युद्ध का शंखनाद बस होने वाला ही है। तो चलिए आपको भी कराते हैं सैर उन स्टेडियम्स की जहां ये युद्ध होने हैं।


बीजिंग में तैयार हुए नेशनल स्टेडियम को बर्ड्स नेस्ट भी कहा जाता है जहाँ 16 हज़ार एथलीट जौहर दिखाएँगे।


नेशनल स्टेडियम (बर्ड्स नेस्ट) में ही उदघाटन और समापन समारोह आयोजित होंगे।


नेशनल एक्वेटिक सेंटर


नेशनल इनडोर स्टेडियम


बीजिंग शूटिंग रेंज हॉल


बीजिंग ओलंपिक बास्केटबॉल जिम्नेजियम


ओलंपिक स्पोर्ट्स सेंटर स्टेडियम


कैपिटल इनडोर स्टेडियम


ओलंपिक ग्रीन टेनिस कोर्ट


यहाँ होंगी नौकायन प्रतियोगिताएँ


बीच वॉलीबॉल ग्राउंड

तो बीजिंग तैयार है खेलों के महाकुंभ के ज़रिए पूरी दुनिया में अपनी धाक जमाने के लिए। खिलाड़ी जहां अपनी काबिलियत के दम पर पदकों के लिए जूझेंगे वहीं चीन में हज़ारों की संख्या में जोड़े ओलंपिक का जश्न कुछ अलग अंदाज़ में मनाने के लिए आठ अगस्त को शादी रचाने की योजना बना रहे हैं। बीजिंग में आठ अगस्त को खेलों के महाकुंभ यानी ओलंपिक खेलों की शुरुआत होनी है। सरकारी मीडिया के अनुसार इस दिन शादी का पंजीकरण कराने वाले जोड़ों की फेहरिस्त हर दिन लंबी होती जा रही है। चीनी मान्यताओं में आठ का अंक शुभ माना जाता है। ख़ासकर वर्ष 2008 के आठवें महीने की आठवीं तारीख बेहद शुभ मानी जा रही है। तो करिए थोड़ा इंतजार, होइए बेकरार, ओलंपिक के योद्धा हैं तैयार।

सभी फोटो साभार बीबीसी
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