शुक्रवार, 17 अप्रैल 2009

बस तुम्हें चाहा करूं...

17 अप्रैल 09
मैं तुम्हें हां बस तुम्हें चाहा करूं
तू मिली तो जिन्दगी का
पा लिया हर पल खुशी का
शुक्रिया कैसे करूं, बस तुम्हें चाहा करूं
मेरी चाहत को नया अंजाम तुमने ही दिया
जिन्दगी को जिन्दगी का नाम तुमने ही दिया
में तेरे बारे में बस सोचा करूं
हौसला तुमने दिया है
जीना अब सिखला दिया है
शुक्रिया कैसे करूं,बस तुम्हें चाहा करूं
खुशनसीबी है ये मेरी, मैनें तुमको पा लिया
दिल को ये भी नाज है कि,तुमने भी अपना लिया
रात दिन दिल में तुम्हें देखा करूं
तुमने ही मंजिल दिखाई, प्यार की दुनिया सजाई
शुक्रिया कैसे करूं, बस तुम्हें चाहा करूं
मैं तुम्हें हां बस तुम्हें चाहा करूं
शुक्रिया कैसे करूं, बस तुम्हें चाहा करूं.....

5 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

मेरी चाहत को नया अंजाम तुमने ही दिया
जिन्दगी को जिन्दगी का नाम तुमने ही दिया...

बढ़िया रचना...बधाई।

बेनामी ने कहा…

कमाल की अभिव्यक्ति...बधाई

बेनामी ने कहा…

प्यार ऐसा ही होता है...मेरे भाई...दुनिया से लड़ने की हिम्मत आ जाती है...जिन्दगी खूबसूरत लगने लगती है...

Udan Tashtari ने कहा…

क्या बात है...बहुत बढ़िया.

श्यामल सुमन ने कहा…

चाहत है गर आपकी रुकिये नहीं जनाब।
जहाँ उठे एक प्रश्न तो मिलता वहीं जबाव।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

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