शनिवार, 18 अप्रैल 2009

सच बता गांव से आने वाले...

18 अप्रैल 09
सच बता गांव से आने वाले
तेरी लोगों से मुलाकात तो होगी
खेत खलिहान कहीं बात तो होगी
सच बता गांव से आने वाले

तुमसे मिलती है,कहीं वो मेरी हरजाई भी
जिसने आवारा बनाया मुझे सौदाई भी
घर से बेघर किया, दी मुझे रुसवाई भी
सच बता गांव से आने वाले

उसने क्यों छोड़ दिया मुझको मोहब्बत करके
क्या वो मजबूर थी,बेबस थी,ये हिम्मत करके
क्यों ना हमराह चली आई बगावत करके
सच बता गांव से आने वाले

जब कोई बांका जवां गीत सुनाता होगा
जब कोई जादू भरी तानें उड़ाता होगा
क्या मेरा प्यार उसे याद ना आता होगा
सच बता गांव से आने वाले

क्या मेरे बाद वो मगमूम रहा करती है
क्या मेरे हिज्र में दिन रात जला करती है
क्या वो सखियों से जमाने का गिला करती है
सच बता गांव से आने वाले

क्या वो तनहाई में रोती रही सावन सावन
बावरी होके फिरी गांव के आंगन आंगन
क्या कभी रट है मेरे नाम की साजन साजन
सच बता गांव से आने वाले

याद करती है मुझे जागते ख्वाबों में कभी
मेरे खत पढ़ती है रख रख के किताबों में कभी
ढूंढा करती है सरे राह सराबों में कभी
सच बता गांव से आने वाले

अब किसी और से वो प्यार जताती तो नहीं
अब किसी और को वो गीत सुनाती तो नहीं
अब किसी और के कूचे में वो जाती तो नहीं
सच बता गांव से आने वाले

तेरी लोगों से मुलाकात तो हागी
खेत खलिहान कहीं बात तो होगी
सच बता गांव से आने वाले

2 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

भावनाओं को बहुत सुंदर अभिव्‍यक्ति दी है ... बहुत सुंदर रचना ... बधाई।

Aadarsh Rathore ने कहा…

भाई जी लम्बे समय बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ है। आपकी सभी रचनाएं पढ़ीं। सभी कविताएँ पसंद आईं।

http://