मंगलवार, 7 अक्तूबर 2008

संत का कमाल



07 अक्टूबर 2008

संतों को आपने प्रवचन देते और ज्ञान बांटते तो काफी देखा और सुना होगा लेकिन क्या किसी ऐसे संत से आपका साबका हुआ है जिसने लोक कल्याण के लिए अपना जीवन झोंक दिया हो और बदले में किसी से कुछ भी न लिया हो। जिसे न नाम की इच्छा हो और न शोहरत की। जो अपने काम का बखान नहीं चाहता। जो नेता या सांसद भी नहीं बनना चाहता लेकिन बावजूद इसके आज दुनिया उसके काम की तारीफ करते नहीं थक रही है। वो आज पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल बनकर उभरा है। जिसे दुनिया की सबसे मशहूर पत्रिका टाइम्स ने सराहते हुए पर्यावरण की सुरक्षा के लिए प्रयासरत विश्व की तीस शख्सियतों में शुमार किया है। संत सींचेवाल ने अपनी जीवटता के बल पर प्रदूषण के चलते अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही पंजाब की काली बेई नदी को संकट से उबार लिया। इस नदी में चार शहरों और चालीस गांवों का गंदा पानी गिरता था। ऐसे में जब इस नदी को साफ करने की सारी सरकारी कोशिशें विफल हो चुकी थीं तब संत सींचेवाल ने सात साल पहले इसका बीड़ा उठाया और आज उनकी कोशिश रंग ला चुकी है। बेई नदी का लगभग 160 किलोमीटर लंबा क्षेत्र साफ सुथरा और हरा भरा हो चुका है। नदियों को जीवनदायिनी संबोधन देने वाले प्रख्यात साहित्यकार काका कालेलकर ने अपने लेखन में देश की नदियों को लोकमाता के रूप में रेखांकित कर भारतवर्ष की पौराणिक संस्कृति को उजागर किया है। इतिहास गवाह है कि हजारों साल पहले यहां आवासीय व्यवस्था का श्रीगणेश नदियों के किनारे से ही हुआ लेकिन भारतीय मूल्यों और परंपराओं की वाहक ये नदियां खतरे में हैं। ऐसा एक दो दिन में नहीं हुआ है। इसके लिए जहां सतत विकास जिम्मेदार है वहीं बड़ा श्रेय हमारी और आपकी लारपरवाही को भी जाता है। देश की कई छोटी-छोटी नदियां सूख गई हैं या सूखने की कगार पर हैं। बड़ी-बड़ी नदियों में पानी का प्रवाह धीमा होता जा रहा है। पवित्रतता और निश्छलता की प्रतीक हमारी नदियां अब मैली और दूषित हो चली हैं। इन्हें बचाने की जिम्मेदारी हमारी आपकी सबकी है लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है। प्रयास चल रहे हैं लेकिन उनमें ईमानदारी का सर्वथा अभाव है। इसी बीच नदियों को बचाने की मुहिम में संत सींचेवाला ने चमत्कार कर दिखाया। उन्होंने इस दिशा में ऐसा कारनामा कर दिखाया है जो सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं के साथ साथ हमारे, आपके, हम सबके लिए एक सबक हो सकता है। उपर बताया जा चुकी है कि संत सींचेवाला ने पंजाब की बेई नदी के लिए क्या किया है। ये वही नदी है, जिसमें गुरुदेव श्री नानक जी ने चौदह वर्ष तक स्नान किया था और जिसके किनारे श्री गुरुनानक देव जी को आध्यात्म बोध प्राप्त हुआ था। आपको ये बताने के लिए कि संत सींचेवाला ने बेई नदी को किस तरह से जीवनदान दिया है, मैं hindi.indiawaterportal.org में लिखे एक लेख के कुछ अंश पढवाना चाहूंगा। पंजाब के होशियारपुर जिले की मुकेरियां तहसील के ग्राम घनोआ के पास से ब्यास नदी से निकल कर काली बेई दुबारा 'हरि के छम्ब' में जाकर ब्यास में ही मिल जाती है। मुकेरियां तहसील में जहां से काली बेई निकलती है। वो लगभग 350 एकड़ का दलदली क्षेत्र था। अपने 160 किलोमीटर लंबे रास्ते में काली बेई होशियारपुर, जालंधार व कपूरथला जिलों को पार करती है। लेकिन इधर काली बेई में इतनी मिट्टी जमा हो गई थी कि उसने नदी के प्रवाह को अवरूध्द कर दिया था। नदी में किनारे के कस्बों-नगरों और सैकड़ों गांवों का गंदा पानी गिरता था। नदी में और किनारों पर गंदगी के ढेर भी थे। जल कुंभी ने पानी को ढक लिया था। कई जगह पर तो किनारे के लोगों ने नदी के पाट पर कब्जा कर खेती शुरू कर दी थी। 'पंच आब' यानि पांच नदियों वाले प्रदेश में काली बेई खत्म हो गई थी। बुध्दिजीवी चर्चाओं में व्यस्त थे। जालंधर में 15 जुलाई 2000 को हुई एक बैठक में लोगों ने काली बेई की दुर्दशा पर चिंता जताई। इस बैठक में उपस्थित सड़क वाले बाबा के नाम से क्षेत्र में मशहूर संत बलबीर सींचेवाल ने नदी को वापिस लाने का बीड़ा उठाया। अगले दिन बाबाजी अपनी शिष्य मंडली के साथ नदी साफ करने उतर गए। उन्होंने नदी की सतह पर पड़ी जल कुंभी की परत को अपने हाथों से साफ करना शुरू किया तो फिर उनके शिष्य भी जुटे। सुल्तानपुर लोधी में काली बेई के किनारे जब टेंट डालकर ये जीवट कर्मी जुटे तो वहां के कुछ राजनैतिक दल के लोगों ने एतराज किया, बल भी दिखाया पर ये डिगे नहीं, बल्कि शांति और लगन से काम में जुटे रहे। पहले आदमी उतरने का रास्ता बनाया गया, फिर वहां से ट्रक भी उतरे और जेसीबी मशीन भी। नदी को ठीक करने बाबा जहां भी गए, वहां नई तरह की दिक्कतें थी। नदी का रास्ता भी ढूंढना था। कई जगह लोग खेती कर रहे थे, कईयों ने तो मुकदमे भी किए लेकिन संत सींचेवाले का हौसला नहीं डिगा। सिक्खों की कार सेवा वाली पध्दति ही यहां चली। हजारों आदमियों ने साथ में काम किया। नदी साफ होती गई। बाबा स्वयं लगातार काम में लगे रहे। उनके बदन पर फफोले पड़ गए। पर कभी उनकी महानता के वे आड़े नहीं आए। इस समय सुल्तानपुर लोधी व अन्य घाटों पर सफाई का कार्य बहुत व्यवस्थित है। रोज रात को बाबा के सींचेवाल स्थित डेरे से बस चलती है और नदी किनारे ग्रामवासी गांव के बाहर खड़े हो जाते हैं। बस लोगों को इकट्ठा करके घाटों पर छोड़ देती है और लोग रात को सफाई करके सुबह पांच बजे तक वापस भी लौट जाते हैं। सब काम सेवा भावना से होता है। कोई दबाव नहीं, कोई शिकायत नहीं। अपनी जिम्मेदारी और अपनेपन के एहसास के साथ। निकट के ग्रामवासी इस पूरी प्रक्रिया से इतने जुड़ गए हैं कि यह सब अब उनके जीवन का एक हिस्सा बन गया है। बाबा ने यहीं बस नहीं किया उन्होंने नदी का रास्ता निकालकर उस पर घाटों का निर्माण किया। नदी के किनारे नीम-पीपल जैसे बड़े पेड़ लगाए। हरसिंगार, रात की रानी व दूसरे खूशबू वाले पौधो भी लगाए। जामुन जैसे फलदार वृक्ष भी लगाए। जिससे सुंदरता के साथ नदी किनारे फल व छाया का इंतजाम भी हो गया। साथ ही नदी के किनारे भी मजबूत बने रहने का इंतजाम कर दिया। नदी को साफ करने बल्कि सही मायने में कहें तो उसे दोबारा जीवित करने का काम इस छोटे से गांव में किसी निश्चित रूप से आती रकम के साथ नहीं शुरू हुआ था। बाबा जी के सहयोगी बताते हैं कि इसमें जनता का सहयोग रहा। विदेशों में रहने वाले सिखों ने भारी मदद दी। इंग्लैण्ड में बसे शमीन्द्र सिंह धालीवाल ने मदद में एक जे.सी.बी. मशीन दे दी, जो मिट्टी उठाने के काम आई। निर्मल कुटिया में बाबा का अपना वर्कशाप है, जिसमें खराद मशीने हैं। वहां काम करने वाले कोई प्रशिक्षण प्राप्त इंजीनियर नहीं बल्कि बाबा के पास श्रध्दा भाव से जुड़े करीब 25 युवा सेवादारों की टुकड़ी है। ये युवा आसपास के गांवों के हैं। वर्षों से सेवा भाव से वे बाबा से जुड़े हैं। एक ने जो जाना वह औरों को बताया। फिर ऐसे ही प्लम्बरों, बिजली के फिटर और खराद वालों की टुकड़ियां बनती गईं। आज बेई नदी अपने अस्तित्तव को लेकर आश्वस्त है और इसका पूरा श्रेय संत सींचेवाल को जाता है। कुदरती स्रोतों में गंदगी डालना कानूनन जुर्म है लेकिन देश भर में इस कानून से खेलने वालों की कोई कमी नहीं है। आज भी देश की तमाम नदियां हमारे इस ढीढपने का दंश झेल रही हैं। इन्हें साफ करने के लिए करोड़ो-अरबों का प्रोजेक्ट चलाया जा रहा है लेकिन फिर भी नदियां मैली हैं। क्या हम संत सींचेवाला से कुछ सबक ले सकते हैं।

1 टिप्पणी:

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

आपकी प्रस्तुति और बाबा जी की लगन को नमन
साथ जुटे कारसेवकों को भी नमन
अच्छा एवं अनुकरणीय काम
इन तथाकथित कर्णधारों को इनसे प्रेरणा लेनी चाहिये
शुक्रिया

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