29 जून 2009
तेरा आंचल जो ढल गया होता
रुख हवा का बदल गया होता
देख लेता जो एक झलक तेरी
चांद का दम निकल गया होता
झील पर खुद ही आ गए वरना
तुमको लेने कमल गया होता
पी जो लेता शराब आंखों से
गिरते गिरते संभल गया होता
क्यों मांगते वो आईना मुझसे
मैं जो लेकर गज़ल गया होता
तेरा आंचल जो ....
सोमवार, 29 जून 2009
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7 टिप्पणियां:
बहुत उम्दा!! वाह!
wow,really it is too good,keep it up
सुंदर प्रस्तुति .
बहुत खूब
kay baat hai. no writeup on blog since long. what's the reason?
kya baat hai. no writeup since long, what's the reason?
बेहतरीन
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