बुधवार, 14 मई 2008

जयपुर में धमाके

14 मई 2008
मंगलवार की शाम मैं ऑफिस से घर पहुंचा। शाम के साढ़े छह बज चुके थे। तब तक सब कुछ सामान्य था। चूंकि हैदराबाद से नोएडा आने के बाद अभी मैनें केबल कनेक्शन नहीं लिया था इसलिए टेलीविजन बन्द ही चल रहा है। मेरे दिमाग में विचारों का बवंडर चल रहा था तभी मेरे एक मित्र का फोन आया और उसने जो खबर सुनाई उसके बाद सब कुछ मानों थम गया। जयपुर में श्रंखलाबद्ध तरीके से आठ धमाके हुए थे। दहशतगर्दों ने एक बार फिर देश के अमन चैन को निशाना बनाया था। मैं अपने मकान मालिक के घर पहुंचा और टेलीविजन से चिपक गया। साठ से ज्यादा लोग इस हरकत का शिकार हुए थे । सौ से ज्यादा लोग अस्पतालों में इन नापाक इरादों की कीमत चुका रहे हैं। इस घटना में कुछ नया नहीं था, नया था तो सिर्फ जगह का नाम और मरने वालों के साथ साथ घायलों की संख्या। बाकी सब कुछ वैसा ही था जैसा कि लगभग छह महीने पहले अजमेर में और उससे थोड़ा पहले हैदराबाद में हुए धमाकों के दौरान था। वही रेड अलर्ट, हाई अलर्ट का शोर, सरकारी बैठकें, खुफिया विभाग की असफलता का राग, विपक्षी दलों द्वारा सरकार पर आरोपो की झड़ी, राजनीतिज्ञों का दौरा सब कुछ वही। आतंक फैलानो वाले एक बार फिर अपने इरादों में कामयाब हुए थे। टेलीविजन पर दिखाई जा रही तस्वीरें और घटनास्थल का दृश्य मन को विचलित कर रहा था। मेरे अंतर्मन ने मुझसे सवाल किया कि आखिर क्यों हर बार यही कहानी दोहराई जाती है। निर्दोषों को अपनी स्वार्थसिद्धि का ज़रिया बनाया जाता है। आखिर क्यों ऐसी घटनाओं पर रोक नहीं लग पा रही है। कमी आखिर कहां है। हमारे सुरक्षा तंत्र में या फिर हमारे इरादो में या फिर इस तरह की घटनाओं में पहले पकड़े गए आतंकियों को लेकर हमारी सुस्त जांच प्रक्रिया। जिसके चलते इन आतंकियों को पालने पोसने वाले संगठनों में डर नाम की कोई चीज नहीं है और वो बैखौफ होकर आतंक का नंगा नाच नाच नाचते हैं। संसद पर हमले का दोषी आराम से जेल में बैठकर रोटियां तोड़ता है, देश के तमाम इलाकों में हुए धमाकों के आरोपियों की पेशी पर पेशी हो रही है लेकिन नतीजा सिफर ही है। जांच रिपोर्टें फाइलों में धूल फांकती रह जाती है और सजा होने से पहले या तो आरोपी बरी हो जाता है या फिर जेलों में ही दम तोड़ देता है। सख्त सजा का अभाव उसे उसके गुनाहों का एहसास भी नहीं करा पाता। मुझे ऐसा लगता है अगर पहले के मामलों को जल्द सुलझा लिया जाए और दहशतगर्दों के खिलाफ सख्त रवैया अपनाया जाए तो धमाकों के इस सिलसिले पर थोड़ी लगाम तो लगाई ही जा सकती है। बहरहाल अगले कुछ हफ्तों में जयपुर में हुए धमाकों पर चर्चाओं का दौर जारी रहने वाला है। उसके बाद गुलाबी नगरी में जिन्दगी के पटरी पर लौटते ही सब कुछ ठंडे बस्ते में चला जाएगा। एक जांच कमेटी धमाकों की जांच करेगी। पुलिस ने कुछ गिरफ्तारियां की हैं कुछ और करेगी। फिर सब कुछ पहले जैसा हो जाएगा लेकिन इस सिलसिले पर लगाम लग पाएगी कहना मुश्किल है। शायद इसकी एक और वजह है और वो है हम भारतीयों की भूलने की आदत। हम पिछले से सबक लेना नहीं जानते। आगे बढ़ने में भरोसा रखते हैं और शायद यही वजह है कि हमें अक्सर नुकसान उठाना पड़ता है।

पोस्ट बाई

अनिल कुमार वर्मा

1 टिप्पणी:

Wild Nj ने कहा…

ultimate feature particular on the effect of cricket mania in our general life

carry on anil ji

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