रविवार, 1 जून 2008

क्यों बिगड़ा रिजल्ट

1 जून 2008
जब से शाहरुख खान की फिल्म ओम शांति ओंम और करीना कपूर की टशन सिनेमाघरों में पहुंची है लोगों को लिखने और चर्चा करने का एक नया और ताजा विषय मिल गया है। शाहरुख की सिक्स पैक एब्स और करीना के जीरो फिगर को लेकर समाज को चौथा स्तंभ भी काफी कांशस नजर आया। शाहरुख के साथ हुई हर बातचीत में जहां उनकी सिक्स पैक एब्स की चर्चा हुई वहीं करीना के जीरो फिगर को भी घुमाघुमा कर टेलीविजन स्क्रीन मे चार चांद लगाने की कोशिश की गई। इसका असर ये हुआ कि शहरों से लेकर गांव तक में हर चौराहे और नुक्कड़ पर युवा इसी विषय पर बतियाते दिखाई दिए। उनमें शाहरुख औऱ करीना की तरह दिखने का जुनून घर कर गया। नतीजा ये हुआ कि इनके दिन का आधा वक्त जिम में पसीना बहाने में गुजरने लगा। जिस संजीदगी और तन्मयता से युवाओं ने शाहरुख और करीना को फॉलो करना शुरू किया वो वास्तव में काबिले तारीफ था। इसी बीच खबर आई कि यूपी बोर्ड के अंतर्गत होने वाली हाईस्कूल की परीक्षा में 15 लाख छात्र फेल हो गए। स्वकेंद्र प्रणाली के खात्मे ने इन छात्रों के भविष्य पर कालिख पोत दी। मुझे लगा समाज को जागरुक करने की मुहिम में लगा हमारा मीडिया इस बात को भी गंभीरता से लेगा और हाईस्कूल के नतीजों को लेकर व्यापक स्तर पर बहस जरूर छिड़ेगी। इन कारणों की पड़ताल होगी कि क्या केवल छात्र ही इस स्थिति के लिए जिम्मेदार हैं यो फिर इसके पीछे कहीं शिक्षकों का भी योगदान है लेकिन कुछ जगहों पर छोड़ कहीं कोई इस मामले को लेकर चिंतित नहीं दिखा। इस बीच रबीश जी के कस्बे से खबर आई कि वे उत्तर प्रदेश की मर चुकी शिक्षा प्रणाली के लिए एक शोक सभा के आयोजन में लगे हैं और देश भर के लोगों को उन्होंने निमंत्रण भी भेजा है। हालांकि इस सभा में उन्होंने सिर्फ फेल होने वाले लड़कों और उनके परिवार वालों को ही आमंत्रित किया है। लड़कियों को इसलिए नहीं किया क्योंकि उनके उत्तीर्ण होने का प्रतिशत पिछली बार की ही तरह लड़कों से बेहतर है। इसी बीच उन्होंने नकल के समाजशास्त्र की परिभाषा भी समझा दी और प्रदेश की बेटियों की सफलता पर उन्हें सलामी भी ठोंक दी। इतना ही नहीं उन्होंने तो फेल हुए छात्रों को लेकर राजनीति करने का मार्ग भी सुझा दिया। रबीश जी ने जिस व्यंगात्मक अंदाज में प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था पर चोट की वो दिल को छू गया। आप सोच रहे होंगे मैनें पहले शाहरुख की सिक्स पैक एब्स औऱ करीना के जीरो फिगर की चर्चा की लेकिन फिर अचानक यूपी की शिक्षा प्रणाली के बारे में बात करने लगा। दरअसल मैं ये समझने और जानने की कोशिश कर रहा हूं कि जब शाहरुख की बॉडी और करीना के फिगर को युवा इतनी संजीदगी से लेते हैं तो फिर पढ़ाई को क्यों नहीं। क्या वजह है कि माता-पिता,शिक्षक कोई भी इन छात्रों का झुकाव उन किताबों की तरफ न करा सका जिनसे उनकी जिन्दगी संवरनी है। उल्टे वो इस जुगाड़ में लगे रहे कि कैसे वो अपने घर के चिरागों को नकल कराकर कैरियर की एक सीढ़ी उपर चढ़ा दिया जाए। चिराग भी इसी भरोसे में रहे कि नकल का तेल उनकी बाती की लौ में रौशनी का सबब बनेगा ही। परिणाम सामने आए तो पांच लाख चिरागों की जिन्दगी नाकामी के अंधेरों में गुम होती दिखाई दी। बावजूद इसके इस मामले में कहीं कोई बहस या चर्चा होती नहीं दिखी। मैं इसी वजह की तलाश में हूं लेकिन जवाब अभी तक नदारद है। साथ ही मैं शिक्षा जगत की सतत सुधार प्रक्रिया में शामिल लोगों का ध्यान भी इस ओर आकृष्ट करना चाहता हूं कि वे पढ़ाई का कोई ऐसा तरीका खोजें जो इन छात्रों को तो क्लासरूम और किताबों से बांधे ही साथ ही उनके गुरुओं को भी इस बात के लिए प्रेरित करे कि वो अपने छात्रों के साथ संजीदगी से क्लासरूम में कुछ समय बिताएं। अभिभावकों से अनुरोध है कि वो अपने बच्चों को समझाएं कि कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं है।

कोई टिप्पणी नहीं:

http://