04 मार्च 2010
बस एक लापरवाही और जिंदगियां मौत के मातम में डूब जाती हैं...हादसे होते हैं लेकिन कोई सबक नहीं लिया जाता...जिसकी गवाह हैं प्रतापगढ़ की ये तस्वीरें...जो मौत पर मातम की जीती जागती गवाह हैं...
ये नजारा कुंडा में बने राम जानकी मंदिर का है..जो गुरुवार की दोपहर चीखो-पुकार के शोर में ऐसा डूबा कि फिर उबर नहीं पाया...मंदिर से सटे बाबा कृपालु जी महाराज के आश्रम में एक भंडारे का आयोजन किया गया था...मौका था बाबा की पत्नी की बरसी का...इस कार्यक्रम का प्रचार-प्रसार दो तीन दिन पहले से ही हो रहा था...नतीजा ये हुआ कि हजारों की संख्या में लोग बाबा के आश्रम जा पहुंचे...कार्यक्रम खाने के साथ साथ कपड़े और बर्तन बांटने का भी था...लोग उत्सुकता से अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे थे लेकिन जब बर्तन और कपड़े बंटने शुरू हुए तो लोग धीरज खो बैठे और धक्कामुक्की पर उतर आए...किसी का हाथ खाली ना रह जाए...इसलिए हर कोई आगे लपक कर चीजें हासिल कर लेना चाहता था लेकिन वो इस बात से अंजान थे कि उनकी ये कोशिश कितने खौफ़नाक हादसे को निमंत्रण देने वाली है...हजारों की भीड़ को नियंत्रित करने के लिए बाबा के आश्रम में तैनात सुरक्षा कर्मी ही मौजूद थे क्योंकि प्रशासन से इस कार्यक्रम के लिए अनुमति नहीं ली गई थी....सुरक्षाकर्मियों ने जब लोगों पर नियंत्रण के लिए लाठियां चलाईं तो भीड़ भड़क गई और आश्रम में भगदड़ मच गई...आश्रम में चार गेट थे लेकिन उनमें से तीन बंद थे...एक गेट जो खुला था...भीड़ लाठियों से बचने के लिए उसी तरफ भागी...इसी दौरान गेट का एक हिस्सा गिर गया और उसी के साथ भीड़ का हिस्सा बने लोग भी एक एक कर जमीन पर गिरने लगे...पीछे वाले गिरे हुए लोगों को रौंद कर आगे बढ़ चले और जब ये सिलसिला रूका तो लाशों का ढेर लग चुका था और 60 से ज्यादा जिंदगियों पर मौत की मुहर लग चुकी थी...35 बच्चे और 26 महिलाएं अपने अपने परिवार में मातम की वजह बन चुके थे जबकि सैकड़ों की संख्या में लोग घायल हो चुके थे...जाहिर है...कार्यक्रम बड़ा था लेकिन इंतजाम नाकाफी थे और यही बदइंतजामी एक बड़े हादसे की वजह बन गई...हमेशा की तरह इस हादसे की जांच के लिए भी कमेटी बना दी गई है लेकिन सवाल वही है कि क्या ये कमेटी इस बात को पुख्ता कर सकती है कि इस हादसे से सबक लिया जाएगा और आगे से भगदड़ की ऐसी घटनाएं नहीं होंगी क्योंकि इतिहास तो यही कहता है कि सबक नहीं लिया जाता....
मार्च, 2010 - उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में कृपालु महाराज के आश्रम में मची भगदड़ में 60 लोगों की जान गई.
जनवरी, 2010 - कोलकाता के पास चल रहे गंगासागर मेले में मची भगदड़ से कम से कम सात तीर्थयात्री मारे गए हैं.
दिसंबर, 2009 - गुजरात में धौराजी के श्रीनाथजी मंदिर में भगदड़ मचने से नौ लोगों की मौत हो गई और 15 से ज़्यादा घायल हैं.
सितंबर, 2008 - राजस्थान के चामुंडा मंदिर में मची भगदड़ में 224 लोगों की मौत हो गई थी.
अगस्त, 2008 - हिमाचल प्रदेश के नैना देवी मंदिर में भूस्खलन की अफ़वाह के बाद भगदड़ मच गई. इसमें 145 लोगों की मौत हो गई.
नवंबर, 2006 - उड़ीसा के पुरी में जगन्नाथ मंदिर में चार लोगों की मौत हो गई और 18 घायल हो गए. प्रत्यक्षदर्शियों का कहना था कि अधिकारियों ने मंदिर का दरवाज़ा खोलने में देर कर दी जिसके कारण भगदड़ मच गई.
जनवरी, 2005 - महाराष्ट्र के दूरवर्ती मंढारा देवी मंदिर में भगदड़ मचने से 265 लोग मारे गए. सँकड़ा रास्ता होने के कारण हताहतों की संख्या बढ़ गई. मृतकों में बड़ी संख्या महिलाओं और बच्चों की थी.
अगस्त, 2003 - नासिक में कुंभ मेले के दौरान मची भगदड़ में 30 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई.
1986 - हरिद्वार में एक धार्मिक आयोजन के दौरान भगदड़ में 50 लोगों की मौत हो गई.
1954 - इलाहाबाद में कुंभ मेले के दौरान भगदड़ का भयान मंजर देखने को मिला. इसमें लगभग 800 लोगों की जानें गईं.
( फोटो और आंकड़े सौजन्य बीबीसी )
गुरुवार, 4 मार्च 2010
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3 टिप्पणियां:
अनिल जी मामला वाकई गंभीर है... लखनऊ में लालजी टंडन के साड़ी बांटने के दौरान भी इस तरह का हादसा हो चुका है... लेकिन प्रशासन कैसा था, जिसके इलाके में इतना बड़ा प्रोग्राम हुआ और उसे पता तक नहीं था.. जब सारे इलाके में ढिंढोरा पीटा जा रहा था, तो आला अधिकारियों को क्यों पता नहीं चला... अब बचने के लिए सब टोपी ट्रांसफर करने में लगे हैं... वाह माया मेमसाहब
अति दुखद एवं अफसोसजनक हादसा..
समाचार में सुना था ये दर्दनाक हादसा ......आपसे ब्यौरा भी मिला ......गलत तरीके से बांटे गए थे ये कम्बल.....पहले कतार बना लेते .या चेतावनी दे देते तो ऐसे हादसे से बचा जा सकता था ........!!
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