रविवार, 18 जनवरी 2009

लालू जी गौर फ़रमाइए

18 जनवरी 09
डग्गामार गाड़ियां तो आपने बहुत सी देखी होंगी लेकिन क्या कभी डग्गामार रेल से आपका वास्ता पड़ा है। अगर नहीं पड़ा तो चलिए मेरे साथ मध्य प्रदेश के सरहदी जिले श्योपुर की ओर। मेरा दावा है कि आप इस डग्गामार रेल क देखकर दांतो तले उंगली दबा लेंगे।












ये नजारा देखकर आपकी आंखें ज़रूर फैल गई होंगी...फैलें भी क्यों ना...सुहाने सफर का वादा करने वाली भारतीय रेल का ऐसा सफर कम ही देखने को मिलता है...लेकिन जनाब ये कोई एक दो दिन की बात नहीं बल्कि आजादी के बाद से ही चला आ रहा सिलसिला है। एक ऐसा सिलसिला जिससे जुड़ी है हजारों परिवारों की जिन्दगी की डोर जो कभी भी टूट सकती है लेकिन बावजूद इसके ये सिलसिला थमता नजर नहीं आता या यूं कहें कि लोग नहीं चाहते कि थमे।










श्योपुर से ग्वालियर के बीच इस ट्रेन को रियासती काल में सिंधिया शासकों ने अपनी सुविधा के लिए चलाया था। जिसे आजादी के बाद आम जनता को सौप दिया गया। तब से लेकर अब तक देश में बहुत कुछ बदला। यात्रा मार्ग बढ़े, स्टेशन बढ़े, यात्री बढ़े लेकिन इस ट्रेन में बोगियां नहीं बढ़ी। नतीजा आपके सामने है। क्या बोगी के भीतर और क्या बाहर...लोग जान पर खेलकर सफऱ कर रहे हैं।














श्योपुर और मुरैना जिलों के एक बड़े हिस्से के लोगों के लिए ये ट्रेन यातायात का मुख्य साधन है। लोगों के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है और जिन्दगी के कई काम निपटाने के लिए सफर भी जरूरी है। फिर चाहे वो जान पर खेलकर ही क्यों ना हो।












इस रेल मार्ग के आमान परिवर्तन की मांग पिछले कई वर्षों से ठन्डे बस्ते में पड़ी है। इस मांग पर ध्यान क्यों नहीं दिया जा रहा है, ये बताने वाला कोई नहीं है। अधिकारी इस ट्रेन के बारे में बात तक नहीं करना चाहते। इस सफर के दौरान हादसे भी हुए हैं लेकिन बावजूद इसके ये सूरत बदलती नहीं दिख रही है।







मुझे पता है कि आपको टेलीविजन पर आने वाला वो फेवीकोल का विज्ञापन याद आ गया होगा। जिसमें एक ट्रक पर क्षमता से ज्यादा लोग सवार रहते हैं लेकिन गिरते नहीं है और तभी बैकग्राउंड से आवाज आती है कि फेवीकोल का जोड़ है टूटेगा नहीं। लेकिन वो बात विज्ञापन की थी, कल्पना की थी लेकिन ऊपर दिख रहा नजारा हकीकत है। एक ऐसी हकीकत जिससे हमारी भारतीय रेल के अधिकारी और मंत्री मुंह मोड़ते आ रहे हैं। भारतीय रेल को घाटे से उबारकर फायदे का सौदा बनाने वाले माननीय लालू यादव को भी शायद मौत का ये सफ़र दिखाई नहीं दे रहा है या फिर वो देखना नहीं चाह रहे हैं। अगर देखना चाहते तो शायद अब तक इस ट्रेन में कुछ बोगियां जुड़ गई होतीं। भारतीय रेल के इस सफर पर आप क्या कहेंगे जनाब...जागिए कुछ तो कहिए।

6 टिप्‍पणियां:

MANVINDER BHIMBER ने कहा…

लालू की रेल का अच्छा सफर दिखा दिया है चित्रों के जरिये .......सच me बुरा हाल है

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

भाई मै भी इस डग्गामार ट्रेन में सफर कर चुका हूँ . कुछ भी हो ऐसी ट्रेनों में चलने का आनंद ही कुछ और रहता है . जब लालू इसमे बैठेगे तो उनको समझ में आयेगा

बेनामी ने कहा…

आपने एक हकीकत दिखा कर अपनी संवेदना प्रदर्शित की, धन्यवाद.
कमोबेश ऎसी स्थिति देश के कई हिस्सों में है, खासतौर पर वहाँ, जहाँ से रेलवे को शून्य या नगण्य राजस्व मिलता है.
हिन्दी में कहें तो बिना टिकट के यात्री सफर करते हैं

अमिताभ मीत ने कहा…

सर ! आप के हिसाब से क्या लालू को शर्म आनी चाहिए ? मज़ाक़ की भी हद होनी चाहिए ... लालू और जनता पे गौर ? शर्म की बात फिर कभी .. जब लालू आस पास भी न हों !!

पोस्ट, फोटो ... सब बहुत बढ़िया .. लेकिन नेता ......? उन का क्या ?? वैसे जनता का भी क्या .. लेकिन नेता तो नेता हैं .. जय हो !!

संगीता पुरी ने कहा…

यात्रियों को ऐसे रेलों में चढने की कैसे हिम्‍मत होती है .......सारे पिक्‍चर देखकर तो डर ही गयी मैं....वैसे बिहार में भी ऐसी ट्रेनों को चलते हुए देखा है।

Aadarsh Rathore ने कहा…

चित्रों ने पोल खोल कर रख दी है।
अब समझ में आया कि विदेशी विश्वविद्यालय क्यों लालू जी को लेक्चर देने के लिए बुला रहे हैं। वो भी जानना चाहते हैं कि लालू जी ने किसी तरह प्रोपेगंडा कर रहे हैं। हालत खराब होने के बावजूद इतनी अच्छी इमेज कैसे बना दी है।

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