गुरुवार, 4 सितंबर 2008

अब आगे क्या होगा...

04 सितम्बर 2008


कोसी का जल स्तर तेजी से घट रहा है। बाढ़ का पानी गांवों, सड़कों पुलों और रेल ट्रैकों से खिसकने लगा है। जो लोग अब तक अपना सब कुछ छोड़ छाड़कर जान बचाने की फिराक में भाग रहे थे उनके कदम ठिठकने लगे हैं। घर की याद सता रही है। लिहाजा अब लोग वापस लौटना चाहते हैं। अपने उजड़े खेत, जर्जर हो चुके मकान दोबारा देखना चाहते हैं। वो देखना चाहते हैं, बाढ़ का पानी खिसकने के बाद की वीरानी। उनकी आंखों में दर्द है, सीने में हलचल। वो दोबारा जिन्दगी को किस सिरे से शुरू करें और कैसे शुरू करें, ऐसे ही तमाम सवाल हैं जो उनके जेहन में कांटे की तरह चुभ रहे हैं। तमाम लोग अपनों से बिछड़ गए हैं और उन्हें खोजने की जद्दोजहद में लगे हैं। उधर बाढ़ में फंसे लोगों को बचाने वाली टीमें भी अब राहत की सांस ले रही हैं लेकिन हालात दूसरे खतरे का संकेत देने लगे हैं। जैसे जैसे बाढ़ का पानी खिसकेगा तरह तरह की बीमारियां अपने पैर पसारेंगी। दूर दराज और ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं का हाल किसी से छिपा नहीं है। राहत शिविरों में तो लोगों का शरीर जवाब दे रहा है। कई दिनों तक लगातार भीगे रहने और खाने को कुछ न मिलने से बीमारियों को हमले का रास्ता मिल गया है। तन पर कपड़े के नाम पर चंद चीथड़े, सिर पर अंगौछा, सामान के नाम पर छोटी सी गठरी। ये है एक बाढ़ पीड़ित की तस्वीर जिसका कोसी नदी सब कुछ छीन चुकी है। ऐसी ही गठरियों के सहारे बिहार की एक बड़ी आबादी को मुश्किलों से जूझते हुए अपनी जिन्दगी की जंग लड़नी है। अब लोग बचाव नहीं राहत चाहते हैं। कोसी ने कई माओं की गोद सूनी कर दी है, तमाम बच्चों को अनाथ कर दिया है, सुहागिनों की मांग उजड़ गई है। राहत शिविरों में हालात बहुच अच्छे नहीं है। पुरुषों को अगर छोड़ दें तो शिविरों में हज़ारों महिलाएँ और दुधमुँहे बच्चे हैं जिनमें से कई ऐसे हैं जो बीमार हैं। कुछ बच्चे तो चंद दिन पहले ही पैदा हुए हैं। जीवन के लिए संघर्ष उनकी किस्मत बन चुका है। न खाने की अच्छी व्यवस्था है और न ही पहनने ओढ़ने की। खाने के नाम पर एक वक्त खिचड़ी मिल रही है वो भी ऐसी कि खाने के बाद बीमार होना तय है। बीबीसी के मुताबिक शरणार्थी तो ये तक कह रहे हैं कि जब ऐसा ही खाना देना था तो उन्हें पानी से ही क्यों निकाला। मर ही जाने देते। कम से कम अपने घर में तो मरते लेकिन सरकारी शिविरों में ये सब सुनने वाला कौन है।


बथनाहा शिविर में खाने के लिए लंबी लाइनें लगती हैं और लोगों को बस एक बार खाना मिल पा रहा है।



खाने की गुणवत्ता ठीक न होने से बाढ़ पीड़ितों में नाराजगी


इतना दर्द समेटकर जिन्दगी जीना बड़ा मुश्किल होता है लेकिन बावजूद इसके ये जंग लड़ी जाएगी। लोग फिर से उठ खड़े होंगे और जिन्दगी फिर पटरी पर लौटेगी लेकिन सवाल यही है कि ऐसा कब तक होता रहेगा। नेपाल सरकार ने भारत और भारत सरकार ने नेपाल को इस तबाही की जिम्मेदार बताना शुरू कर दिया है। इस भीषण त्रासदी के बीच भी राजनीति के मौके तलाशे जा रहे हैं। वक्त बीतने के साथ इसमें तेजी आएगी और पीड़ितों के दर्द भुला दिए जायेंगे। फिर ये दर्द याद तब आयेंगे जब चुनाव आयेंगे। फिर इसी दर्द को राजनीति का अखाड़ा बनया जाएगा और अपना सब कुछ गंवा चुके बिहार के इन बाढ़ पीड़ितों को उनका दर्द फिर सताएगा...उन्हें फिर याद आएगा कि कैसे लहरों के कहर ने उनसे उनका सब कुछ छीन लिया था। उनके ज़ख्म एक बार फिर हरे हो जायेंगे। जिसकी टीस केवल वही महसूस करेंगे उनके रहनुमाई की दावा करने वाले नहीं।

सभी फोटो साभार बीबीसी

3 टिप्‍पणियां:

MANVINDER BHIMBER ने कहा…

बहुत अच्छा लिखा है....जानकारी भी है .....क्रम जारी रखें

Sanjay Tiwari ने कहा…

बहुत आशा भरी खबर है. भगवान करे जल्दी पानी उतरे और लोगों का जीवन सामान्य हो. अब चुनौती पुनर्वास की होगी जिसमें सबको हाथ बंटाना होगा.

Udan Tashtari ने कहा…

भीषण त्रासदी !!

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