सोमवार, 29 सितंबर 2008

मन्दिर में मातम



30 सितम्बर 2008
मन्दिर में मातम...शायद ये कहना गलत न होगा...क्योंकि रेत के धारों में बसे जोधपुर शहर की शान मेहरानगढ़ किले के भीतर बना ऐतिहासिक चामुंडा देवी मन्दिर मंगलवार को सौ से ज्यादा लोगों की मौत का गवाह बन गया। बड़ी तादाद में लोग घायल भी हो गए। नवरात्र का पहला दिन...हजारों की संख्या में इकठ्ठा हुए श्रद्धालुओं के बीच माता के दर्शन करने की होड़ लगी थी.. माता का पहले दर्शन करने की चाह ने मन्दिर परिसर में भगदड़ को जन्म दिया और फिर देखते ही देखते माता के जयकारे की जगह चारों तरफ चीख पुकार और मातम फैल गया। ठाठें मारता आस्था का जवार पल भर में काफूर हो गया। लोगों को अपने परिजनों की चिन्ता सताने लगी। लोग जहां ज्यादा भीड़ को भगदड़ की वजह बता रहे हैं वहीं राजस्थान के गृह सचिव का कहना है कि मंदिर जाने के रास्ते में एक दीवार के टूटने के कारण भगदड़ मची। शुरु में बम की अफवाह को भी भगदड़ का एक कारण बताया जा रहा था। बहरहाल कारण कुछ भी हो लेकिन अपने परिजनों की खुशी मांगने के लिए मंदिर पहुंचे श्रद्धालुओं की मन्नतों को ग्रहण लग गया। मन्दिर के बाहर रोते बिलखते बदहवास श्रद्धालु भगदड़ का शिकार हुए अपने परिजनों को खोजते नजर आए। मंदिर के आस-पास व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिसकर्मियों की तैनाती तो गई थी लेकिन ये पर्याप्त नहीं थी। इस भगदड़ में घायल हुए लोगों को महात्मा गांधी अस्पताल और मथुरा दास अस्पताल में भर्ती कराया गया है। जहां उनका इलाज चल रहा है। अस्पताल के बाहर उनके परिजनों को रोते बिलखते देखा जा सकता है। हालत ऐसी मानो खुद से सवाल कर रहे हों कि आखिर माता ने उन्हें किस गलती की सज़ा दी है। आपको बता दें कि चामुंडा देवी मंदिर मेहरानगढ़ क़िले में स्थित है। पाँच किलोमीटर के दायरे में स्थित इस क़िले के आख़िर में ये मंदिर बना हुआ है। 400 फुट की ऊँचाई पर बने इस मंदिर में आने-जाने का रास्ता काफी संकरा है। पश्चिम राजस्थान में ये मंदिर काफी लोकप्रिय है और नवरात्र की शुरुआत लोग यहीं से करना पसंद करते हैं। इस मंदिर का निर्माण वर्ष 1459 में जोधपुर के संस्थापक राजा राव जोधा ने किया था। मंदिर की प्रतिमा ख़ुद राव जोधा ने स्थापित की थी और इसे परिहार राजवंश की कुलदेवी के रुप में स्थापित किया गया था। इस मन्दिर की महिमा ही बड़ी संख्या में भक्तों को यहां खींच कर लाती है और मौका जब नवरात्र का होता है तो भीड़ जन सैलाब में बदल जाती है। यही जन सैलाब जब अनियंत्रित होता है तो होते हैं, चामुंडा देवी मंदिर जैसे हादसे।

इससे पहले भी कई धार्मिक स्थलों पर ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं। आईए नज़र डालते हैं पिछले कुछ वर्षों में मंदिरों में भगदड़ की घटनाओं पर।

अगस्त,2008 - हिमाचल प्रदेश के नैना देवी मंदिर में भूस्खलन की अफ़वाह के बाद भगदड़ मच गई. इसमें 145 लोगों की मौत हो गई।

नवंबर,2006 - उड़ीसा के पुरी में जगन्नाथ मंदिर में चार लोगों की मौत हो गई और 18 घायल हो गए। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना था कि अधिकारियों ने मंदिर का दरवाज़ा खोलने में देर कर दी जिसके कारण भगदड़ मच गई।

जनवरी,2005 - महाराष्ट्र के दूरवर्ती मंढारा देवी मंदिर में भगदड़ मचने से 265 लोग मारे गए। सँकडॉरा रास्ता होने के कारण
हताहतों की संख्या बढ़ गई। मृतकों में बड़ी संख्या महिलाओं और बच्चों की थी।

अगस्त,2003 - नासिक में कुंभ मेले के दौरान मची भगदड़ में 30 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई।

1986 - हरिद्वार में एक धार्मिक आयोजन के दौरान भगदड़ में 50 लोगों की मौत हो गई।

1954 - इलाहाबाद में कुंभ मेले के दौरान भगदड़ का भयान मंजर देखने को मिला। इसमें लगभग 800 लोगों की जानें गईं।



चामुंडा मन्दिर में हुई भगदड़ के दौरान कुछ ऐसा हाल रहा।




















   

2 टिप्‍पणियां:

रंजन (Ranjan) ने कहा…

बहुत दुखद है.. बहुत यादें जुड़ी है.. हमारा घर बिल्कुल किले की तलहटी पर था.. और नवरा्त्रा में दि्न में दो-्तीन बार किले जाते थे...

आज से पढ़ सुनकर बहुत दुख होता है... क्या कहें..

Udan Tashtari ने कहा…

अफसोसजनक....दुखद हादसा!!

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