मंगलवार, 20 जनवरी 2009

ये क्या हो रहा है राजनाथ ?

20 जनवरी 09
आज पूरा देश ओबामा की जय करने में लगा हुआ है। मीडिया में भी ओबामा की हीं गूंज है। हर खबर आज उसके आगे बौनी है। हो सकता है ब्लॉग की दुनिया में भी आज ओबामा ही छाए रहें। ऐसे में किसी और मुद्दे पर लिखने से मैं भी पहले हिचक रहा था लेकिन फिर हिम्मत जुटा ही ली। खबर राजनीतिक हलके से हैं। केंद्र में है बीजेपी के कद्दावर नेता और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह। जिन्होंने एक बार फिर बीजेपी को कठघरे में खड़ा करते हुए उससे किनारा कर लिया। अगर आपको याद हो तो 1999 में भी कल्याण ने कुछ इसी अंदाज में बीजेपी को बॉय बॉय किया था। हालांकि बाजपेयी जी के हस्तक्षेप के बाद कल्याण की पार्टी में वापसी हो गई थी। उस वक्त पार्टी छोड़ने वाले कल्याण ने जिस आक्रामक लहजे में बीजेपी पर आरोपों की झड़ी लगाई थी उस अंदाज में तो कभी विपक्षी भी नहीं दिखे। कल्याण सिंह के मुताबिक पार्टी में उन्हें वो सम्मान नहीं मिल रहा था जिसके वो हकदार थे। उनके मुताबिक उन पर कुछ ऐसे आरोप लगे जो सरासर बेबुनियाद हैं। बहरहाल मैं उन आरोपों की गहराई में नहीं जाना चाहता। ये विषय इसलिए उठाया क्योंकि आने वाले वक्त में बीजेपी को लोकसभा चुनाव की जंग लड़नी है। ऐसे में कल्याण का जाना...क्या ये मान लिया जाए कि पार्टी को कल्याण सिंह पर भरोसा नहीं रहा...उसे लगता है कि वो उन्हें ढो रही थी...क्योंकि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में पार्टी को आशानुरूप सफलता नहीं मिली थी...पार्टी को ऐसा लगने लगा था कि उत्तर प्रदेश में कल्याण का सूरज अस्त हो चला है...उनका इस्तीफा जिस सहजता से स्वीकार कर लिया गया उससे तो कम से कम ऐसा ही लगा कि आलाकमान भी उन्हें पार्टी में देखने का इच्छुक नहीं है...ये तो हुई एक घटना...अब बात एक दूसरे नेता की...एक ऐसे नेता की जिसका पार्टी में एक रुतबा था...एक हैसियत थी लेकिन उसने भी इसी शिकवे के साथ पार्टी का साथ छोड़ दिया कि उसे बीजेपी परिवार में वो मान सम्मान हासिल नहीं हो रहा था जिसके वो हकदार थे...जी हां मैं भैरों सिंह शेखावत की बात कर रहा हूं...उन्होंने लोकसभा चुनाव लड़ने की इच्छा क्या जताई पूरी बीजेपी उन पर चढ़ बैठी...पार्टी अध्यक्ष राजनाथ का बयान आपको याद होगा...(जो गंगा स्नान कर चुके हों उन्हें कुंए में डुबकी लगाने की ख्वाहिश नहीं रखनी चाहिए)...कल्याण ने भले ही अभी शालीनता की चादर ओढ़ रखी हो लेकिन अपमान की इस आग में जलते शेखावत ने राजस्थान में कूटनीतिक तरीके से बगावत का झंडा बुलंद कर दिया है। आज बीकानेर में जिस तरह से उन्होंने वसुंधरा के शासनकाल में हुए भ्रष्टाचार के मामलों को उठाते हुए गहलोत सरकार से जांच की मांग की...उनके तेवर बीजेपी के लिए किसी लिहाज से शुभ नहीं हैं...इसी बीच कल्याण ने पार्टी छोड़कर शेखावत की ही बात को आगे बढ़ाया है...जाहिर है पार्टी विद डिफरेंस के भीतर कुछ ठीक नहीं चल रहा है। लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने अगर इस नुकसान की तरफ ध्यान नहीं दिया तो कहीं ऐसा ना हो कि लोकसभा चुनाव जीतकर पीएम इन वेटिंग आडवाणी को तख्तो ताज से संवारने का उसका सपना सपना ही रह जाए। कल्याण और शेखावत की हाय बी अपना रंग जरूर दिखाएगी।

2 टिप्‍पणियां:

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…

पार्टी विद डिफरेंसेस है भाजपा . बिना जड़ के नेता अराज्नाथ जैसे लोग इसके खेवनहार है . भाजपा का अर्थ अब भाग रही जनता इस पार्टी से है . कभी भाजपा की वेव साईट देखे उसमे नाम है मनेका गाँधी ,स्मरति ईरानी ,नवजोत सिध्हू ,और बरसाती मेढक के नाम है लेकिन जिन्होंने भाजपा बनाई वह गुमनाम है .

Aadarsh Rathore ने कहा…

कल्याण भी दोषी हैं, राजनैतिक महत्वकांक्षाओं की पूर्ति न होने के कारण मुंह फुला लेना उचित नहीं।

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