मंगलवार, 24 मार्च 2009

घोषणाओं की घुट्टी चुनावी घोषणा पत्र



24 मार्च 09
चुनावी जंग जीतने के लिए राजनीतिक दल उम्मीदवारों के चयन के साथ जिस विषय पर सबसे ज्यादा माथापच्ची करती हैं वो होता है घोषणा पत्र...किन मुद्दों के साथ जनता के बीच जाना है...उसे किस तरह के वादों की घुट्टी पिलानी है...उसे किन सपनों के झुनझुने थमाने हैं और कैसे अपने पक्ष में वोट डालने के लिए प्रेरित करना है...इसी का ताना बाना होता है राजनीतिक दलों का चुनावी घोषणा पत्र...कांग्रेस ने आज इस कवायद को पूरा कर लिया है...दूसरे दल भी आने वाले दिनों में घोषणा पत्र की खुराक लेकर जनता का ध्यान खींचने की कोशिश करेंगे...लेकिन इन सबके बीच अहम सवाल ये कि क्या भारतीय मतदाता पर घोषणा पत्र में दर्ज चुनावी वायदों का कुछ फर्क पड़ता है...क्या वो इन वायदों को ध्यान में रखकर वोट डालता है...क्या उसके वोट को चुनावी घोषणा पत्र के वायदे प्रभावित करते हैं...मुझे तो ऐसा नहीं लगता...क्योंकि पार्टियाम भले ही दावा करें कि उन्होंने अपने घोषणा पत्र में किए गए सभी वादों को पूरा किया लेकिन ऐसा होता नहीं है...उनमें दर्ज ज्यादातर वादे कोरी लफ्फाजी होते हैं...क्योंकि अगर उतने वादे पूरे हो जाएं तो फिर भारतीय राजनीति की तस्वीर आज ऐसी नहीं होती...सरकारें पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आतीं और मतदाता कन्फ्यूज नहीं होता...मैं अपने ब्लॉग पर आने वाले पाठकों से जानना चाहूंगा कि घोषणा पत्र को लेकर उनकी क्या राय है...कृपया जरूर बताएं...

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

मतदाता वादे नहीं काम देखता है। घोषणा पत्र का वोट पर कोई असर नहीं पड़ता।

http://